जन्म के वक्त बच्चे का वजन बता सकता है कि उसे भविष्य में Type 2 Diabetes होगा या नहीं: स्टडी
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जन्म के वक्त बच्चे का वजन बता सकता है कि उसे भविष्य में Type 2 Diabetes होगा या नहीं: स्टडी

एक नई स्टडी की मानें तो जन्म के वक्त अगर बच्चे का वजन 2.5 किलोग्राम से अधिक है तो इस बात की आशंका ज्यादा है कि उसे वयस्क होने पर टाइप 2 डायबिटीज हो सकता है.

बर्थ वेट और डायबिटीज के बीच है लिंक

नई दिल्ली: अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) की मानें तो दुनियाभर में सिर्फ वयस्कों में ही नहीं बल्कि बच्चों में भी डायबिटीज (Diabetes) के मामले तेजी से बढ़े हैं. अकेले अमेरिका की बात करें तो यहां भी 2002 से 2020 के बीच हर साल 20 साल से कम उम्र के बच्चों और किशोरों में टाइप 2 डायबिटीज के मामलों में हर 4.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी और टाइप 1 डायबिटीज के मामलों में 1.9 प्रतिशत की बढोतरी देखने को मिली है. ऐसे में अब एक नई स्टडी में बताया गया है कि जन्म के वक्त बच्चे का वजन कितना है (Birth weight) इसके जरिए ही यह पता लगाया जा सकता है कि बच्चे को आगे चलकर टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा है या नहीं.

  1. बर्थ वेट और टाइप 2 डायबिटीज के बीच है लिंक
  2. आईजीएफ-1 लेवल और टाइप 2 डायबिटीज के बीच संबंध
  3. बचपन के जोखिम कारक की वजह से भी हो सकती है शुगर की बीमारी

बर्थ वेट और डायबिटीज रिस्क के बीच है लिंक

BMJ ओपेन डायबिटीज रिसर्च एंड केयर नाम के जर्नल में प्रकाशित इस नई स्टडी की मानें तो जन्म के वक्त अगर बच्चे का वजन 2.5 किलोग्राम से अधिक है तो इस बात की आशंका अधिक है कि उसे वयस्क होने पर टाइप 2 डायबिटीज (Type 2 Diabetes) हो सकता है. जन्म के समय बच्चे का वजन यानी बर्थ वेट का संबंध इंसुलिन (Insulin) जैसे ग्रोथ फैक्टर-1 (IGF-1) के सर्कुलेटिंग लेवल से है. यह इंसुलिन से मिलता जुलता हार्मोन है जो बचपन में बच्चे की ग्रोथ को प्रभावित करता है और वयस्कों में एनर्जी मेटाबॉलिज्म को.

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टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम कारक

शोधकर्ताओं की मानें तो स्टडी के सबूतों से यह संकेत मिलता है कि किसी व्यक्ति के जीवन काल में टाइप 2 डायबिटीज होने की संवेदनशीलता शुरुआती जीवन या बचपन में और वयस्क होने पर सामने आने वाले जोखिम कारक (Risk Factors), दोनों पर संयुक्त रूप से निर्भर करती है. IGF-1 के सर्कुलेटिंग लेवल, बर्थ वेट और टाइप 2 डायबिटीज होने के खतरे के बीच क्या संबंध है इसका पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने यूके बायोबैंक स्टडी में शामिल 1 लाख 12 हजार 736 महिलाओं और 68 हजार 354 पुरुषों के डेटा की जांच की. 

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आईजीएफ-1 लेवल और डायबिटीज के बीच है लिंक

स्टडी में शामिल प्रतिभागियों पर औसतन 10 साल तक नजर रखी गई जिसके बाद यह बात सामने आयी कि 3299 लोगों में टाइप 2 डायबिटीज विकसित हुआ. जिन प्रतिभागियों में IGF-1 का लेवल कम था उनमें डायबिटीज के लिए लाइफस्टाइल और क्लिनिकल रिस्क फैक्टर्स ज्यादा थे. IGF-1 के लेवल और टाइप 2 डायबिटीज के बीच एक स्पष्ट जुड़ाव सामने आया: IGF-1 का लेवल जितना कम होगा, टाइप 2 डायबिटीज का खतरा उतना ही अधिक होगा. लेकिन इस जुड़ाव या संबंध में बर्थ वेट की वजह से काफी बदलाव आया, हालांकि केवल उन लोगों के लिए जिनका जन्म के समय वजन 2.5 किलोग्राम या उससे अधिक था, और केवल पुरुषों में.

(नोट: किसी भी उपाय को करने से पहले हमेशा किसी विशेषज्ञ या चिकित्सक से परामर्श करें. Zee News इस जानकारी के लिए जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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