'नो स्लीप चैलेंज' देता है मौत को दावत, रिसर्च ने कम सोने और नाइट शिफ्ट करने वालों को चेताया
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'नो स्लीप चैलेंज' देता है मौत को दावत, रिसर्च ने कम सोने और नाइट शिफ्ट करने वालों को चेताया

नींद हमारी सेहत के लिए बेहद जरूरी है, अगर किसी इंसान को पर्याप्त मात्रा में सोने न दिया जाए तो ये उसकी मौत की वजह भी बन सकता है, इसलिए आप दिनभर कितनी भी मेहनत क्यों न करें, लेकिन रात को 7 से 8 घंटे जरूर आराम करें.

 

'नो स्लीप चैलेंज' देता है मौत को दावत, रिसर्च ने कम सोने और नाइट शिफ्ट करने वालों को चेताया

The Dangers Of Sleep Deprivation: एक सुकूनभरी नींद भला किसे अच्छी नहीं लगती, वैज्ञानिक भी कहते हैं कि एक हेल्दी एडल्ट को दिनभर में 7 से 8 घंटे बिना रुकावट के सोना चाहिए, लेकिन कुछ लोग वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के चक्कर में 'नो स्लीप चैलेंज' जैसी खतरनाक कोशिशें करते हैं जो उनकी जान तक ले सकता है. इंग्लैंड के लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी (Lancaster University) के प्रोफेसर एडम टेलर (Adam Taylor)ने बताया कि नींद की कमी होने पर क्या-क्या हेल्थ रिस्क हो सकते हैं.

11 दिन तक नहीं सोया से शख्स

रात में नींद पूरी न होने के बाद की थकान और बेचैनी से तो हम सभी वाकिफ होंगे. सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स ‘नो-स्लीप चैलेंज’ (No Sleep Challenge) में हिस्सा लेकर कई दिन-रात जगकर गुजारने का रिकॉर्ड बनाने की होड़ में जुटे हैं. नॉर्म (19) नाम के एक यू-ट्यूबर ने बिना सोए सबसे ज्यादा समय बिताने का विश्व रिकॉर्ड कायम करने की अपनी कोशिश साइट पर लाइव स्ट्रीमिंग की थी. 250 घंटे का समय बीतने के बाद दर्शक नॉर्म (Norme) की सेहत को लेकर चिंता जताने लगे, लेकिन वह नहीं रुका और 264 घंटे एवं 24 मिनट की अवधि ‘बिना सोए’ गुजार दी.

गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बैन कर चुका है ये चैलेंज

इसके बाद यू-ट्यूब और किक जैसी सोशल मीडिया साइट ने उसे बैन कर दिया. नॉर्म ने सबसे ज्यादा वक्त तक जगे रहने का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ने का दावा किया, जो सही नहीं था. गिनीज बुक में यह विश्व रिकॉर्ड रॉबर्ट मैकडोनाल्ड के नाम दर्ज है, जिसने 1986 में 453 घंटे यानी लगभग 19 दिन बिना सोए बिताए थे. गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने 1997 में सुरक्षा कारणों से सबसे लंबा समय बिना सोए गुजारने के रिकॉर्ड की निगरानी करना बंद दिया. ये एक सही कदम था.

कई दिनों तक नहीं सोने के नुकसान

लंबे समय तक बिना नींद लिए रहना बेहद खतरनाक साबित हो सकता है. वयस्कों को रोज रात को 7 घंटे से अधिक समय की नींद लेने की कोशिश करनी चाहिए. पर्याप्त नींद लेने में लगातार नाकाम रहने पर डिप्रेशन, डायबिटीज, मोटापा, दिल का दौरा, हाई ब्लड प्रेशर और स्ट्रोक जैसी जानलेवा मेडिकल कंडीशन का शिकार होने का जोखिम बढ़ जाता है. नींद हमारी डेली लाइफ का अहम हिस्सा है. ये हमारी शरीर की कई सिस्टम को आराम करने और मरम्मत करने एवं नुकसान से उबरने में सक्षम बनाती है.

नींद के पहले तीन स्टेजेज के दौरान पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम एक्टिव होता है, जो पाचन क्रिया और आराम की अवस्था में जाने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है. इससे हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर कम हो जाता है. आखिरी स्टेज यानी रैपिड आई मूवमेंट (आरईएम) चरण में दिल की गतिविधियां बढ़ जाती हैं और आंखें हरकत करती हैं. ये स्टेज रचनात्मकता, सीखने की क्षमता और यादें संजोने जैसे संज्ञानात्मक कार्यों के लिए जरूरी है.

 

पहला दिन 

सोने से पहले शराब या कैफीन युक्त चीजों का सेवन स्लीप साइकिल को डिस्टर्ब कर सकता है. नींद की कमी की समस्या तेज या लॉन्ग टर्म वाली हो सकती है. तेज समस्या का मतलब एक या दो दिन नींद न आने से हो सकता है. यह भले ही एक छोटी अवधि लगता हो, लेकिन 24 घंटे बिना सोए गुजार देने के एकाग्रता में कमी के अलावा कई और खतरनाक परिणाम हो सकते हैं. इससे आंखें सूजने, डार्क सर्कल (आंखों के किनारे काले धब्बे) पड़ने, चिड़चिड़ापन, याददाश्त में कमी, भ्रम की स्थिति, त्वरित फैसले लेने एवं सूचनाओं का विश्लेषण करने में असमर्थता और खाने की तलब बढ़ने जैसे लक्षण उभर सकते हैं.

दूसरा दिन

दूसरा दिन भी बिना सोए गुजार देने पर लक्षण और तीव्र हो सकते हैं तथा व्यक्ति के व्यवहार में भी बदलाव दिखाई देने लगता है. शरीर को नींद की तलब और प्रबल होने लगती है, जिसके चलते व्यक्ति ‘माइक्रोस्लीप’ लेने लगता है यानी उसे अनचाही झपकी लगने लगती है, जो लगभग 30 सेकंड की हो सकती है. नींद की कमी से खाने की चाह भी बढ़ जाती है और विभिन्न प्रणालियों के अति सक्रिय होने तथा प्रतिरोधक तंत्र के कमजोर पड़ने की शिकायत सामने आती है, जिससे हम बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील बन जाते हैं.

तीसरा दिन

तीसरा दिन जगकर गुजराने पर नींद की तलब और तीव्र हो जाती है, जिससे व्यक्ति के और लंबी अवधि की ‘माइक्रोस्लीप’ लेने, वास्तविक दुनिया से कटा हुआ महसूस करने और भ्रम की स्थिति में रहने की आशंका बढ़ जाती है.

चौथा दिन

वहीं,चौथा दिन बिना सोए बिताने पर लक्षण चरम पर पहुंच जाते हैं और ‘स्लीप डेप्रिवेशन साइकोसिस’ का रूप अख्तियार कर लेते हैं, जहां व्यक्ति वास्तविकता की व्याख्या करने में असमर्थ हो जाता है और हर हाल में सिर्फ सोने की चाह रखने लगता है. नींद की कमी से होने वाली समस्याओं से उबरने की प्रक्रिया हर व्यक्ति में अलग होती है. कुछ लोग महज एक रात को गहरी नींद लेकर ही सारे लक्षणों से निजात पा सकते हैं. वहीं, कई लोगों को इन लक्षणों से पार पाने में कई दिन या हफ्ते का समय लग सकता है.

नाइट शिफ्ट में ड्यूटी करने के नुकसान

हालांकि स्टडी बताती हैं कि नींद की भरपाई अक्सर मेटाबॉलिक फंक्शन में आए बदलावों को नहीं पलटती, जो वजन बढ़ने और ‘इंसुलिन सेंसिटिविटी’ में कमी का कारण बनते हैं. उन मामलों में भी, जिनमें व्यक्ति अपेक्षाकृत छोटी अवधि बिना सोए गुजारता है. अलग-अलग पाली में काम करने वाले पेशेवरों को अक्सर नींद की कमी का सामना करना पड़ सकता है. नाइट शिफ्ट में काम करने वाले डे शिफ्ट में काम करने वालों के मुकाबले आमतौर पर रोजाना औसतन एक से चार घंटे कम सोते हैं. इससे उनकी असामयिक मौत का जोखिम बढ़ सकता है.

कम सोने से मौत को मिलती है दावत

 वैसे, कई अध्ययनों में पहले ही खुलासा हो चुका है कि बहुत कम नींद असामयिक मौत के बढ़ते जोखिम से जुड़ी हुई है. इसी तरह बहुत अधिक नींद का भी असामयिक मौत के बढ़ते जोखिम से कनेक्शन पाया गया है. ऐसे में बेहतर है कि लोग ‘नो-स्लीप चैलेंज’ जैसे सोशल मीडिया चैलेंज में शामिल होने से बचें और रोज रात को सात से नौ घंटे की मीठी नींद लेने की कोशिश करें. आपका शरीर इसके लिए आपका शुक्रगुजार रहेगा। 

(सोर्स-द कन्वरसेशन) 

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