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नई दिल्ली: वैसे तो हर गर्भवती महिला यही चाहती है कि उसकी प्रेगनेंसी में किसी तरह की कोई दिक्कत या जटिलता (Complication) न हो. लेकिन कई बार गर्भावस्था (Pregnancy) के दौरान महिला को प्री-एक्लेम्प्सिया (Pre-eclampsia) या जेस्टेशनल डायबिटीज (Gestational Diabetes) जैसी दिक्कतें हो जाती हैं जिसका महिला की सेहत पर बुरा असर पड़ता है और भविष्य में आगे चलकर कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं.
एक नई स्टडी में यह बात सामने आयी है कि अगर प्रेगनेंसी के दौरान किसी तरह की जटिलता का सामना करना पड़े या फिर अगर किसी महिला को उम्र से पहले ही मेनोपॉज (Menopause) शुरू हो जाए तो इन दोनों ही वजहों से महिला को भविष्य में हृदय रोग (Heart Disease) होने का खतरा काफी बढ़ जाता है. इस स्टडी को यूरोपियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित किया गया है. इस स्टडी में हृदय रोग विशेषज्ञ (Cardiologist), स्त्री रोग विशेषज्ञ (Gynaecologist) और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट (Endocrinologist) भी शामिल थे और सभी ने मिलकर यह सुझाव दिया कि किस तरह से मिडिल एज महिलाओं में हार्ट प्रॉब्लम्स को कम किया जा सकता है.
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इस स्टडी में बताया गया कि दुनियाभर की करीब 50 प्रतिशत महिलाओं में 60 की उम्र से पहले ही हाई ब्लड प्रेशर की समस्या विकसित हो जाती है लेकिन उसके जो लक्षण महिलाओं में नजर आते हैं जैसे- घबराहट, कंपकंपी या हॉट फ्लशेज उन्हें मेनोपॉज का संकेत मान लिया जाता है. यही कारण है कि पुरुषों में हाई बीपी को हाइपरटेंशन कहा जाता है लेकिन महिलाओं में इसे स्ट्रेस या मेनोपॉज के लक्षण के तौर पर देखा जाता है.
नीदरलैंड्स के रैडबोड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर स्थित वीमेन्स कार्डिएक हेल्थ प्रोग्राम की डायरेक्टर प्रोफेसर ऐन्जेला मास कहती हैं, 'पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ब्लड प्रेशर का इलाज कम ही हो पाता है जिसकी वजह से महिलाओं में हृदय संबंधित कई बीमारियों जैसे- ऐट्रिअल फाइब्रिलेशन, हार्ट फेलियर और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. ये ऐसी बीमारियां हैं जिन्हें होने से रोका जा सकता है.'
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जिन महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान प्री-एक्लेम्प्सिया हो जाता है उनमें हार्ट फेलियर और हाइपरटेंशन का खतरा 4 गुना अधिक होता है और स्ट्रोक का खतरा दोगुना. तो वहीं जिन महिलाओं में 40 की उम्र से पहले ही मेनोपॉज शुरू हो जाता है उनमें भी कार्डिवस्कुलर डिजीज का खतरा अधिक होता है.
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