एक सात साल की बच्ची अपने ढाई साल के छोटे भाई को पीठ पर लेकर रोज पहाड़ चढ़कर स्कूल जाती है. मनिंग नाम की इस लड़की की कहानी आपको हौसले और संकल्प से सराबोर कर देगी.
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नई दिल्ली: DNA में अक्सर हम आपको उन लोगों की कहानियां दिखाते हैं, जो उम्मीद से भरी होती हैं और जो जीवन में आपका सही मार्गदर्शन कर सकती हैं. इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसी कहानी के बारे में बताना चाहते हैं, जिसमें दृढ़ निश्चय, समर्पण और उम्मीद तीनों छिपी हैं. दो तीन दिन पहले हमने सोशल मीडिया पर मणिपुर के एक गांव में एक सात साल की बच्ची की तस्वीरें देखीं जिसका नाम मनिंग है. मनिंग मणिपुर के तामेंगलोंग जिले में स्थित एक गांव में रहती हैं और उसकी पीठ पर जिस बच्चे को आप देख रहे हैं, वो उसका ढाई साल का छोटा भाई है. अपनी पढ़ाई को जारी रखने के लिए मनिंग ने ऐसा फैसला लिया जिसपर यकीन करना मुश्किल है.
सात साल की ये छोटी सी बच्ची अपने ढाई साल के भाई को हर रोज पहाड़ चढ़कर इसी तरह अपने स्कूल ले जाती है. इस बच्ची को ये अतिरिक्त जिम्मेदारी इसलिए मिली क्योंकि उसके पिता बीमार रहते हैं और मां सुबह होते ही खेतों में काम करने के लिए चली जाती है. इसलिए घर और भाई बहनों का ध्यान इसी बच्ची को रखना पड़ता है. शुरुआत में मनिंग के पास ये विकल्प था कि वो अपने भाई बहनों का ध्यान रखने के लिए स्कूल जाना छोड़ दे. लेकिन उसने तय किया कि वो स्कूल भी जाएगी और अपने भाई बहनों का भी ध्यान रखेगी. सोचिए, सिर्फ सात साल की उम्र में इस बच्ची ने कितना बड़ा फैसला लिया कि वो अपने ढाई साल के भाई को अपनी पीठ पर बांध कर स्कूल ले जाती है, ताकि परिवार की जिम्मेदारियों की वजह से उसकी पढ़ाई ना छूट जाए. शिक्षा के प्रति ऐसा समर्पण और दृढ़ निश्चय शायद ही आपने कहीं देखा होगा.
मनिंग उस मणिपुर से आती हैं, जहां School Drop Out Rate लगभग 9 प्रतिशत है. यानी हर 100 में 9 बच्चे बीच में ही स्कूल की पढ़ाई छोड़ देते हैं और स्कूल छोड़ने की सबसे बड़ी वजह होती है, परिवार की गरीबी और सीमित संसाधन. लेकिन सोचिए.. यही चुनौतियां तो इस बच्ची के भी सामने थीं, लेकिन क्या उसने स्कूल छोड़ा. आज जब बड़े-बड़े शहरों के बच्चे, अपने कंधों पर भारी स्कूल बैग नहीं लादना चाहते और हमारे देश में स्कूल Bags का वजन घटाने की बातें होती रहती हैं. तब इस बच्ची की ये तस्वीरें हमें काफी कुछ सिखाती हैं. उसके मजबूत कंधे, शिक्षा के प्रति उसके दृढ़ निश्चय के बारे में बताते हैं. और उसकी पीठ पर उसके छोटे भाई का बोझ, परिवार के प्रति उसके समर्पण को दिखाता है.
आजकल के जमाने में जब घर आलिशान और रिश्ते जर्जर होते जा रहे हैं, तब आप इस बच्ची से अपने परिवार के प्रति सच्चे समर्पण का भाव सीख सकते हैं. आज मनिंग नाम की ये बच्ची 29 लाख की आबादी वाले उस मणिपुर राज्य की प्रेरणा बन चुकी है, जहां महिलाओं और पुरुषों के बीच साक्षरता का अंतर 20 प्रतिशत से भी ज्यादा है. यानी वहां बेटियों की पढ़ाई पर आज भी कम ध्यान दिया जाता है. लेकिन हमें लगता है कि आज पूरा देश मनिंग से काफी कुछ सीख सकता है.
मनिंग सिनलिव पामेई इस बच्ची का पूरा नाम है. यह मणिपुर की राजधानी इम्फाल से 170 किलोमीटर दूर तामेंगलोंग जिले के डायलॉन्ग गांव में रहती हैं. 7 साल की ये बच्ची अब देश के हर बच्चे के लिये एक प्रेरणा है. वह चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी है. उसकी जिम्मेदारी भी इस वक्त घर में सबसे बड़ी है. पहले खुद स्कूल के लिये तैयार होती है. फिर अपने ढाई साल के भाई चामचुईलांग को पीठ पर बांध लेती है. बाकी दोनों भाई-बहन साथ होते हैं और यहां से शुरू होता है स्कूल का सफर. खेत के टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होते हुए और पीठ पर बस्ते के साथ भाई की जिम्मेदारी का बोझ उठाए मनिंग के लिये ये रोज का संघर्ष है.
इसके बाद शुरू होती है पढ़ाई. मनिंग के पास यहां दोहरी चुनौती होती है. उसे टीचर जो पढ़ा रही हैं उस पर तो फोकस रखना ही है, साथ ही भाई का भी ध्यान रखना है. ये भी ध्यान रखना है कि छोटा बच्चा कहीं उसकी कॉपी ना खराब कर दे. मनिंग ने कहा, 'घर में भाई को देखने के लिए कोई नहीं है. मां खेती के लिये चली जाती हैं. छोटे भाई को घर में अकेला नहीं छोड़ सकती. मैं घर में सबसे बड़ी हूं. इसीलिये इसे साथ ले आती हूं.' हालांकि मनिंग चाहती तो भाई की देखभाल के बहाने स्कूल से तौबा कर सकती थी. लेकिन ये ना तो उसके मन में था ना उसके माता पिता के मन में.
स्कूल में दिनभर की पढ़ाई करने के बाद घर वापसी का सफर भी इसी तरह शुरू होता है. मनिंग फिर छोटे भाई को पीठ पर लेकर घर के लिये निकल पड़ती है. साथ में बाकी दोनों भाई-बहन को भी. बड़ी होने के नाते इन सबको सुरक्षित स्कूल लाना और घर ले जाना उसका जिम्मा है. दरअसल मनिंग के पिता बीमार हैं. ऐसे में उनके हिस्से का काम करने के लिये मनिंग की मां को बाहर जाना पड़ता है. पिता की हालत इतनी भी नहीं कि घर में छोटे बच्चे को संभाल सकें. मां के लिये छोटे बच्चे को साथ रखकर मजदूरी करना कठिन था. ऐसे में मनिंग ने ही तय किया कि वो पढ़ाई का बोझ और घर की जिम्मेदारी का बोझ साथ उठाएगी. मनिंग की मां ने कहा, 'हम खेती करते हैं. हमारे पास रोजगार का एक ही साधन है, इसलिये सुबह-सुबह खेत में जाना पड़ता है. जब खेत में होती हूं तो मेरी बड़ी बेटी बाकी बच्चों को देखती है. हम गरीब हैं तो क्या हमारे बच्चों की पढ़ाई हमारे लिये महत्व नहीं रखती? हमें मेनिंग पर गर्व है क्योंकि वो पढ़ाई भी करती है और छोटे भाई-बहन को भी देखती है.'
मनिंग उन बच्चों के लिये मिसाल है जिनके पास सारे संसाधन हैं. लैपटॉप है, मोबाइल-टेबलेट हैं. महंगे स्कूल के अलावा मोटी-मोटी फीस वाली ट्यूशन्स हैं , तमाम तरह के एजुकेशनल एप्प के सब्सक्रिप्शन हैं लेकिन शायद सबसे जरूरी चीजें जो हैं वो नहीं. मजबूत इच्छा शक्ति, ललक और लगन. कहते भी हैं कि कोई भी व्यक्ति अनुभवों से ज्यादा बेहतर सीख पाता है, संघर्ष की भट्टी में तपता और ज्यादा निखरता है, ज्यादा चमकता है. जैसे इस वक्त मनिंग चमक रही हैं.