समिति ने कहा कि यदि यह व्यवस्था सफल रही तो उपग्रह से ली गई तस्वीरों का इस्तेमाल यमुना के बाढ़ की निगरानी में भी किया जा सकता है.
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नई दिल्लीः राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा गठित एक समिति का कहना है कि यमुना के बाढ़ के कारण मैदानी इलाके में फैले मलबे से होने वाले प्रदूषण के स्तर की निगरानी के लिए ड्रोनों, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) और उपग्रह से ली जानी वाली तस्वीरों का उपयोग किया जा सकता है. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अपनी खाली जगह पर अतिक्रमण रोकने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और क्षेत्रीय दूर संवेदी केंद्र (आरआरएससी) के साथ करार किया है. उसने इसरो के उपग्रहों से प्राप्त तस्वीरों के आधार पर अतिक्रमण का पता लगाने के लिए कंप्यूटरीकृत प्रणाली लगायी है.
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समिति ने कहा कि यदि यह व्यवस्था सफल रही तो उपग्रह से ली गई तस्वीरों का इस्तेमाल यमुना के बाढ़ की निगरानी में भी किया जा सकता है. एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति ए के गोयल ने यमुना सफाई अभियान की निगरानी के लिए जुलाई में दिल्ली के मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा और सेवानिवृत विशेषज्ञ सदस्य बीएस सजवान की समिति बनाई थी. निगरानी समिति ने सिफारिश की, ‘‘इसके साथ ही, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, हवाई मानचित्रण या ड्रोनों से मानचित्रण से भी मलबे की मात्रा और उसकी स्थिति का पता लगाया जा सकता है.’’
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समिति ने यह भी सिफारिश की है कि लोगों को नदी के महत्व का अहसास कराने के लिए जागरुकरता कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए क्योंकि नागरिकों के लिए तब उसका कोई मतलब नहीं बनता है जब वह सांस्कृतिक गतिविधियों, मनोरंजन आदि के लिए कोई मौका प्रदान न करे. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘प्राप्त अपशिष्टों से अगरबत्तियां या अन्य उपयोगी उत्पाद बनाने के प्रयासों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.’’ समिति ने यह भी सुझाव दिया कि राज्य सरकार को प्रदूषण कम करने और छोटे तथा नवोन्मेषी परियोजनाओं पर गौर करने के लिए एनजीओ और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के बोर्ड सदस्यों का कंसोर्टियम बनाना चाहिए.
(इनपुट भाषा)