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Rajya sabha Election 2022: समाजवादी पार्टी (SP) प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) राज्यसभा के जरिए 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के समीकरण साधने में जुट गए है. इसलिए राज्यसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal), रालोद प्रमुख जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) और जावेद अली खान (Javed Ali Khan) को भेज रहे. इससे एक तीर से कई निशाने सध जाएंगे.
दरअसल, इन दिनों सपा से नाराज चल रहे आजम खान को मनाने के लिए उनके वकील रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल को सपा ने अपने समर्थन से प्रत्याशी बनाया. वहीं दूसरी ओर जयंत चौधरी को प्रत्याशी बनाकर गठबंधन धर्म निभाने का संदेश दिया है. संभल के जावेद अली खां पर पार्टी ने दोबारा भरोसा जताया है. साथ ही पार्टी ने आजम से बढ़ती दूरियों के बीच मुस्लिम मतदाताओं को भी साधने का प्रयास किया है.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो कपिल सिब्बल को समर्थन देनें के पीछे अखिलेश के इस फैसले से पार्टी को राज्यसभा में एक बुलंद आवाज मिलेगी, तो वहीं पार्टी के अंदर चल रही अंदरूनी राजनीति भी खत्म हो सकेगी. इसके साथ ही मुलायम सिंह यादव की बढ़ती उम्र, स्वास्थ्य और खुद की यूपी में सक्रिय मौजूदगी की मजबूरी के चलते अखिलेश के लिए दिल्ली की सियासत में अपने लिए किसी ऐसे प्रभावी पैरोकार की जरूरत थी, जिसका न सिर्फ दिल्ली के महत्वपूर्ण स्थानों पर बैठना हो बल्कि सक्रिय और दूसरे राज्यों के प्रमुख दलों के नेताओं से भी संपर्क व संवाद हो. इसके लिए सिब्बल से उपयुक्त होंगे.
सपा आजम और शिवपाल के बगावती रूख से खासी परेशान है. ऐसे में माना जा रहा है कि आजम को मनाने में कपिल सिब्बल बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. विधानसभा चुनाव में जिस तरह अल्पसंख्यक समुदाय ने एकतरफा सपा का साथ दिया उससे यह तय माना जा रहा था कि राज्यसभा चुनाव में सपा किसी मुस्लिम चेहरे को मौका देंगे. उम्मीद के मुताबिक जावेद अली खान को सपा ने राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया है.
जयंत से गठबंधन करने से सपा मुखिया को विधानसभा में कुछ लाभ हुआ था. आगे लोकसभा पश्चिमी यूपी में और बेहतर हो गठबंधन की गांठ और मजबूत हो इसके लिए अखिलेश ने जयंत को राज्यसभा भेजकर उदारता दिखाई है. विधानसभा चुनाव में अखिलेश और जयंत की जोड़ी ने भाजपा का गढ़ बन चुके पश्चिमी यूपी में चुनौती बढ़ा दी थी. किसान आंदोलन से प्रभावित रहे गन्ना बेल्ट में भले ही भाजपा एक बार फिर मिठास चखने में सफल रही, लेकिन कई सीटों पर उसे जोरदार झटका लगा और गन्ना मंत्री सुरेश राणा तक चुनाव हार गए. जयंत के प्रत्याशी बनाने से रालोद के वोटरों पर अच्छा संदेश जाएगा. इसके अलावा गठबंधन के साथियों को भी मजबूती मिलेगी. क्योंकि सपा ने 2017 में कांग्रेस से गठबंधन किया था हार के बाद यह टूट गया. इसी प्रकार 2019 के लोकसभा में बसपा के साथ हुआ लेकिन परिणाम अच्छे न रहने पर टूट गया. इस कारण सपा अपने छोटे दलों को बांधे रखना चाहती है.
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(इनपुट- आईएएनएस)
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