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नई दिल्ली: भारतीय सेना और सुरक्षाबल जम्मू-कश्मीर (Jammu-kashmir) से आतंकियों का नामोनिशान मिटाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. इस सिलसिले में हर आतंकवादी से चुन चुन कर बदला लिया जा रहा है, जिसने घाटी का माहौल खराब करने की कोशिश की.
सुरक्षा बलों ने अक्टूबर और नवंबर में अलग-अलग ऑपरेशनों में लगभग हर उस आतंकवादी को मार गिराया जो इस साल नागरिकों की हत्याओं में शामिल थे. इनमें दवा की दुकान चलाने वाले माखन लाल बिंदरू, दो शिक्षकों और बिहार के मज़दूरों की हत्या में शामिल आतंकवादी भी थे.
सूत्रों के मुताबिक सभी ऑपरेशन इसलिए क़ामयाब रहे क्योंकि स्थानीय लोगों ने ही सुरक्षा बलों को समय पर इन आतंकवादियों की खबरें पहुंचाईं.
7 अक्टूबर को श्रीनगर के सफ़ा कदल में सरकारी स्कूल में घुसकर आतंकवादियों ने एक सिख महिला प्रिंसिपल सुपिंदर कौर और एक हिंदू शिक्षक दीपक चंद की हत्या कर दी. इस हत्याकांड ने देश को हिलाकर रख दिया था. इसके बाद पहले से चल रहे ऑपरेशंस में तेजी आई और ऑपरेशन ऑल आउट कामयाबी से बढ़ता रहा.
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इस वारदार को अंजाम दिया था मेहरान यासीन शल्ला नाम के आतंकवादी ने जिसने 26 जून को श्रीनगर के बरबरशाह चौक को ग्रेनेड से हमला कर एक नागरिक की जान ली थी. सुरक्षा बलों ने आखिरकार 24 नवंबर को रामबाग में शल्ला को ढेर कर दिया. 5 अक्टूबर को आतंकवादियों ने दवा की दुकान चलाने वाले बेकसूर पंडित माखनलाल बिंद्रू को गोली मार दी. इस अपराध का ज़िम्मेदार खुर्शीद डार सुरक्षा बलों के हाथों 16 अक्टूबर को चानपोरा में मार गया.
इसी दिन बिहार के गोलगप्पा बेचने वाले वीरेंद्र पासवान की भी लाल बाज़ार श्रीनगर में हत्या की गई थी. 12 अक्टूबर को ही ये वारदात करने वाले मुख्तियार शाह को सुरक्षा बलों ने मौत के घाट उतार दिया. 16 अक्टूबर को ही अराफ़ात शेख ने श्रीनगर में बिहार के गोलगप्पा बेचने वाले अरविंद साह को मार दिया.
24 नवंबर को सुरक्षा बलों ने पक्की खबर मिलने के बाद अराफ़ात शेख को उसके अंजाम तक पहुंचा दिया. 17 अक्टूबर को आतंकवादी गुलज़ार रेशी ने बिहार से आए दो मज़दूरों की हत्या कर दी और एक को घायल कर दिया. इस आतंकवादी को तीन ही दिन बाद सुरक्षा बलों ने मार गिराया.
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इसी तरह 12 सितंबर को तंज़ील नबी सोफ़ी नाम के आतंकवादी ने श्रीनगर में सब इंसपेक्टर अर्शिद मीर को गोली मार दी. करीब एक महीने बाद 15 अक्टूबर को श्रीनगर में ही इस आतंकवादी को सुरक्षा बलों ने मौत के घाट उतार दिया. 19 फरवरी को उमर मुश्ताक खांडे नाम के आतंकवादी ने श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर पुलिस के दो अफसरों की हत्या की थी. उसे रामपुर में 16 अक्टूबर को मार दिया गया.
2 अक्टूबर को एक नागरिक शफ़ी डार को शाहिद बशीर वानी नाम के आतंकवादी ने मार डाला, दो हफ्तों के अंदर 15 अक्टूबर को श्रीनगर के हब्बाकदल में वो सुरक्षा बलों के हाथों मारा गया.
इसी तरह 5 अक्टूबर को श्रीनगर में शफ़ी लोन की हत्या में शामिल आतंकवादी इम्तियाज़ डार को सुरक्षा बलों ने 11 अक्टूबर को बांदीपोरा में मार डाला. 16 अक्टूबर को अनंतनाग बस स्टैंड पर सहारनपुर के सगीर अंसारी को आतंकवादी आदिल वानी ने मार दिया. केवल चार दिन बाद 20 अक्टूबर को ये आतंकवादी शोपियां में मारा गया.
सूत्रों का कहना है कि ये सभी ऑपरेशन जम्मू-कश्मीर पुलिस और स्थानीय लोगों के सहयोग की वजह से बहुत जल्द और क़ामयाबी से कर लिए गए. पाकिस्तान ने गैर मुसलमान और बाहरी लोगों को कश्मीर से पलायन पर मजबूर करने के लिए चुन-चुनकर हत्या करने की योजना बनाई थी. कश्मीर में आतंकवादियों के पास ज्यादा हथियार नहीं बचे हैं और न ही उनका कोई भी बड़ा सरगना ज़िंदा बचा है.
इसलिए अब वो सुरक्षा बलों पर हमला करने की स्थिति में नहीं हैं. ऐसे में लोगों में डर पैदा करने के लिए उन्होंने आसान शिकारों पर हमला करने की रणनीति अपनाई थी. लेकिन स्थानीय लोगों में आतंकवादियों की इन हरक़तों पर जबरदस्त गुस्सा पैदा हुआ और उन्होंने खुलकर सुरक्षा बलों की मदद की.