Annu Bhai Sompura: अन्नू भाई गुजरात के अहमदाबाद के रहने वाले हैं. इनकी उम्र 76 वर्ष है. 42 साल की उम्र में पहली बार अयोध्या आए और 34 वर्षों से अयोध्या में राम मंदिर के लिए पत्थर तराश रहे हैं. अन्नू भाई की सबसे बड़ी पहचान ये है कि राम मंदिर के लिए लाये गये पत्थर पर सबसे पहली छेनी इन्होंने ही चलाई थी.
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Ram Mandir Construction: रामायण में आपने नल-नील के बारे में सुना होगा. नल और नील दो वानर थे. इनकी विशेषता ये थी कि समंदर में इनके फेंके पत्थर डूबते नहीं थे. नल और नील की यही ताकत समुद्र में सेतु बनाते समय काम आई. और श्रीराम अपनी सेना के साथ समुद्र पार कर लंका जा सके.
वो त्रेतायुग था और ये कलयुग है. यहां राम के लिए समंदर में सेतु बनाने की जरूरत नहीं थी. यहां जरूरत थी राम के लिए एक भव्य भवन बनाने की और आज की कहानी उस नल के बारे में है जिन्होंने राम मंदिर के पहले पत्थर पर पहली छेनी मारी थी, जिन्होंने अपना जीवन रामकाज में खपा दिया.
श्रीराम का जीवन संघर्षों से भरा रहा है और उनके लिए समर्पित कई भक्तों का भी फिर वो युग त्रेता हो या कलयुग. संघर्ष के पत्थरों से राममंदिर निर्माण में योगदान देने वाले ऐसे ही एक रामभक्त हैं अन्नू भाई सोमपुरा.
42 साल की उम्र में आए थे अयोध्या
अन्नू भाई गुजरात के अहमदाबाद के रहने वाले हैं. इनकी उम्र 76 वर्ष है. 42 साल की उम्र में पहली बार अयोध्या आए और 34 वर्षों से अयोध्या में राम मंदिर के लिए पत्थर तराश रहे हैं. अन्नू भाई की सबसे बड़ी पहचान ये है कि राम मंदिर के लिए लाये गये पत्थर पर सबसे पहली छेनी इन्होंने ही चलाई थी.
अन्नू भाई का ज्यादातर समय राम मंदिर से सिर्फ 2 किलोमीटर दूर स्थित श्रीराम जन्मभूमि न्यास कार्यशाला में गुजरता है, जहां साढ़े 3 दशक से पत्थर जुटाये जा रहे हैं. उन पत्थरों को तराशने का काम हो रहा है और उसके बाद उन्हीं पत्थरों से अयोध्या की राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर बन रहा है.
चंद्रकांत सोमपुरा ने बनाया था नक्शा
अन्नू भाई ने बताया, 'चंद्रकांत सोमपुरा ने राम मंदिर का नक्शा बनाया था. अशोक सिंघल मिले थे सी बी सोमपुरा को. उन्होंने कहा कि मंदिर बनाना है तो नक्शा बनाइए. वो आए यहां. उन्होंने जमीन मापी पैर से. उसके हिसाब से गिनती करके नक्शा बनाया. नक्शा पास हो गया. पहले दो मंजिल का राम मंदिर बनना था. दो मंजिल का नक्शा बनाया गया. फिर कहा गया कि तीन मंजिल का राम मंदिर बनेगा. काम काफी बढ़ गया. भव्य बनेगा.'
उन्होंने कहा, 'मुझे 1990 में भेजा था सी बी सोमपुरा ने. उन्होंने कहा कि 5 कारीगरों के साथ अयोध्या जाइए. कारीगरों ने कहा कि मरने के लिए नहीं जाना है वहां पर. तो हमारा छोटा भाई और बड़ा लड़का. इन दोनों को तैयार किया और अयोध्या आ गए. तब तक पत्थर नहीं आया था. फिर कहीं से पत्थर लाए गए. पूजा-पाठ हुआ और उसके बाद पत्थर पर हमने पहली छेनी चलाई. वो दोनों पत्थर यहीं रखे हैं.'
अयोध्या में 380 फीट लंबा, 250 फीट चौड़ा और 161 फीट ऊंचा भव्य राम मंदिर बन रहा है. ऐसा मंदिर जो तीन मंजिल का होगा. ऐसा मंदिर जिसके हर मंजिल की ऊंचाई 20 फीट होगी. 392 खंभे और 44 द्वार होंगे. मंदिर के चारों ओर आयताकार परकोटा रहेगा. चारों दिशाओं में इसकी कुल लंबाई 732 मीटर और चौड़ाई 14 फीट होगी.
'1990 में सिर्फ 4 लोग थे'
श्रीराम मंदिर के लिए अब तक इस कार्यशाला में एक लाख घन फुट से ज्यादा पत्थर तराशे जा चुके हैं. लेकिन 1990 में जब पत्थर तराशने का काम शुरू हुआ था तो अन्नू भाई को मिलाकर सिर्फ चार लोग थे. विश्व हिंदू परिषद के नेता शरद शर्मा को भी अन्नू भाई का नाम याद है.
विश्व हिंदू परिषद के नेता शरद शर्मा ने कहा, '1989 में जब रामजन्मभूमि का मॉडल प्रस्तावित हुआ तो एक कार्यशाला शुरू हुई. सीबी सोमपुरा के लोग थे. चंद्रकांत भाई सोमपुरा ने उनको भेजा था.इसमें अन्नू भाई सोमपुरा सुपरवाइजर और उनके सहयोगी के तौर पर दो और थे.इन्होंने कार्यशाला को शुरू किया था.'
राम मंदिर का मॉडल तैयार करने वाले सी बी सोमपुरा के निर्देश पर चुपचाप अहमदाबाद से अयोध्या आने वाले अन्नू भाई बताते हैं कि 34 वर्षों से वो अयोध्या में डटे हैं. छोटा भाई चला गया.बड़ा बेटा लौट गया. लेकिन अन्नू भाई परिवार से दूरी बनाकर भी उस प्रण की खातिर डटे हैं, जो उन्होंने अयोध्या आते समय लिया था. जब तक राम मंदिर नहीं बनेगा तब तक अयोध्या नहीं छोड़ने का प्रण.
'साल में एक बार जाता हूं घर'
अन्नू भाई सोमपुरा ने कहा, घर की याद आती है. साल में एक बार जाता हूं. दिवाली पर जाता हूं. एक महीने रुकता हूं. वो कहते हैं कि वहां जाने की क्या जरूरत. यहीं रहिए. मैं कहता हूं नहीं वहां जाएंगे. हमको मंदिर बनाना है, मंदिर बनाकर आएंगे. प्रण करके आए थे. जब तक मंदिर नहीं बनेगा हम जिंदा रहेंगे और मंदिर बनाकर आएंगे.'
उन्होंने आगे कहा, 'मंदिर भव्य बनेगा. सोमनाथ से भी भव्य बनेगा. नागर शैली में बना है. एक पिलर में 16 मूर्तियां हैं. सरिया-बालू का इस्तेमाल नहीं है. सीमेंट का इस्तेमाल किया जाता है. हमको तो मालूम रहता है, दूसरे को नहीं मालूम रहता है.'
वे आगे कहते हैं, 'मुझे तो बहुत खुशी है कि मैं आज तक जिंदा हूं. कई बार बीमार पड़ गया था. मरने की स्थिति आ गई थी. मुझे रामजी ने खड़ा कर दिया. रामजी पर मुझे बहुत भरोसा है. मंदिर अब बनाकर ही जाऊंगा.'
जिस संघर्ष की कहानी अन्नू भाई बता रहे हैं...उस संघर्ष में या कहें उस दौर में राम मंदिर बनाने का संकल्प तो था लेकिन इस संकल्प को सिद्धि कब मिलेगी...दूर-दूर तक किसी को, इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा था.
'जब मोदी आए तो लगा राम मंदिर बनेगा'
वह कहते हैं, 'चुनौतियां बहुत थी. कितनी सरकारें आईं, गईं. कोई कहे हम मंदिर बनाएंगे. कोई कहे हम मंदिर बनाएंगे. किसी की हिम्मत नहीं थी. मोदी जी आए तो हमने सोचा कि मोदी जी आए हैं तो मंदिर बनेगा ही. हमको भी विश्वास हो गया था कि मंदिर बनेगा. उस समय तीन कारीगर थे उसके बाद कारीगरों का आना शुरू हो गया था. अहमदाबाद से जब चले थे तभी से उम्मीद लेकर चले थे कि राम मंदिर बनेगा. सरकार कितनी आ गई. मुलायम की आ गई. मायावती की आ गई. कांग्रेस की आ गई. लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई राम मंदिर की. मोदी जी से मैं मिला नहीं हूं लेकिन वो हमारे गुजरात से ही हैं. उन्होंने काम भी ऐसा किया था कि लगा कि नहीं, ये राम मंदिर बनाएंगे. मोदी लौह पुरुष हैं. किसी से डरते नहीं हैं. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अन्नू भाई को भरोसा हुआ कि अब अयोध्या में राम मंदिर बनकर रहेगा.