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Zee News Time Machine: आज टाइममशीन में हम आपको लेकर चलेंगे वर्ष 1991 में. यानी वो साल जब भारत की जेब तंगहाली से गुजर रही थी. इसी साल राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी. ये वही साल था जब एक खूंखार आतंकी ने 20 कश्मीरी हिंदुओं को गोली मारी थी और खुद कैमरे के सामने कुबूलनामा किया था. 1991 ही वो साल था, जब उत्तरप्रदेश के पीलीभीत में फेक एनकाउंटर किया गया था और इसी साल भारत ने अमेरिका की परवाह ना करते हुए एक भूखे देश को खाना खिलाया था. तो चलिए टाइममशीन की सुई को घुमाते हैं और आपको लेकर चलते हैं वर्ष 1991 में और बताते हैं उस साल की बेहद दिलचस्प कहानियां...
राजीव गांधी की हत्या!
21 मई 1991 के दिन चेन्नई के पास श्रीपेरंबदूर में जब राजीव गांधी से लोग मुलाकात कर रहे थे, उसी दौरान उन्हें फूलों का हार पहनाने के बहाने तेनमोजि राजरत्नम नाम की लिट्टे की महिला आतंकी आगे आई. राजीव गांधी के पास आकर महिला उनके पांव छूने के लिए नीचे झुकी, इसी दौरान उसने अपने कमर में बंधे बम में विस्फोट कर दिया. धमाका इतना जोरदार था कि हमलावर महिला और राजीव गांधी समेत 16 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, आतंकी महिला को सुरक्षाकर्मी राजीव गांधी के पास आने से रोक रहे थे. लेकिन, खुद राजीव गांधी ने ही पुलिसकर्मी से कहा कि क्यों रोक रहे हैं, आने दीजिए. शायद यही राजीव गांधी की जिंदगी की सबसे बड़ी गलती साबित हुई जिस वजह से देश में आधुनिकता की नींव रखने वाले प्रधानमंत्री को आत्मघाती बम धमाके में अपनी जान गंवानी पड़ी
बिट्टा कराटे, जिसने 20 कश्मीरियों को एक साथ मारा
90 के दशक में कश्मीर से लाखों कश्मीरी हिंदुओं का पलायन हुआ. इसमें ना जाने कितने कश्मीरी पंडितों को मारा गया. उनका घर परिवार उजाड़ा गया. महिलाओं की मांग सूनी की गई और बच्चों को अनाथ कर दिया गया. इसी बीच साल घाटी आतंकी बिट्टा कराटे का खौफ फैलने लगा और उसने एक साथ 20 कश्मीरियों हिंदुओं को गोलियों से छलनी किया था. साल 1988 में बिट्टा कराटे को जेकेएलएफ चीफ कमांडर अशफाक मजीद वान ने LoC पार कराके PoK भेजा, ताकि वो आतंक की ट्रेनिंग ले सके. इसके बाद वो वापस आया और उसने कश्मीरी पंडितों को मारना शुरू कर दिया. एक-एक करके वो घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडितों को मारने लगा.
खुद बिट्टा कराटे ने 1991 के एक टीवी इंटरव्यू में कहा था कि उसने 20 से ज्यादा कश्मीरी हिंदुओं की हत्या की. उसने ये भी कहा था कि 'हो सकता है 30-40 से ज्यादा पंडित मारे हों.' इसके अलावा उसने इस इंटरव्यू में ये भी कहा कि अगर उसे अपनी मां या भाई का कत्ल करने का आदेश भी मिलता तो भी वह नहीं हिचकता और उनकी हत्या कर डालता.
भारत ने की अपने भूखे दोस्त की मदद!
साल 1991 में एक तरफ जहां अमेरिका पूरी दुनिया को अपनी ताकत दिखा रहा था तो उसी दौरान भारत ने अमेरिका की परवाह किए बिना क्यूबा की आवाम का पेट भरा था. दरअसल किस्सा 1991 का है, जब सोवियत यूनियन के भरोसे अमेरिका से टक्कर लेने वाला क्यूबा बेहद ही खराब स्थित में पहुंच गया था. अमेरिका के डर की वजह से कोई भी क्यूबा की मदद करने को तैयार नहीं था. कई देशों ने क्यूबा पर प्रतिबंध लगा रखा था. उस वक्त भारत में नरसिम्हा राव की सरकार की थी और भारत की जेब उस दौरान तंगी से गुजर रही थी. इसी बीच कम्यूनिस्ट नेता हरकिशन सिंह सुरजीत का ध्यान क्यूबा के संकट पर गया. क्योंकि क्यूबा के साथ भारत के हमेशा ही गहरे रिश्ते रहे थे. नेहरू से लेकर इंदिरा और उसके बाद राजीव गांधी तक सभी के क्यूबा से अच्छे संबंध रहे.
इसी संकट की घड़ी में हरकिशन सिंह सुरजीत ने अपनी पार्टी की मदद से क्यूबा को दस हजार टन गेहूं भिजवाने की जिम्मेदारी ले ली. इसके बाद गेंहू इकट्ठा किया गया और पंजाब से गेहूं लदी विशेष ट्रेन कोलकाता बंदरगाह पहुंचवाई गई. दस हजार साबुन भी रखवाए गए. जब जहाज क्यूबा पहुंचा तो फिदेल कास्त्रो ने खासतौर पर सुरजीत को न्यौता भेजा. फिदेल कास्त्रो ने कहा था कि अब क्यूबा कुछ दिनों तक सुरजीत सोप और सुरजीत ब्रेड से जिंदा रहेगा. दुनिया ने उस दिन अमेरिकी हेकड़ी के सामने भारत का हौसला देखा था. वो भारत दोस्तों की मदद करता था, चाहे खुद भारी गरीबी से जूझ रहा हो.
पाकिस्तान में सुनाई गई सरबजीत को फांसी की सजा!
अनजाने में पाकिस्तान सीमा पर पहुंचे सरबजीत सिंह ने कभी नहीं सोचा होगा कि उनके लिए साल 1991 उनके लिए नासूर बन जाएगा. दरअसल 1990 में सरबजीत सिंह जाने अनजाने में पाकिस्तानी सीमा में पहुंच गए, इसके बाद पाक आर्मी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद सरबजीत ने पाक आर्मी को बताया कि वो गलती से सीमा पार कर पाकिस्तान में आ गए हैं. इसके बाद लाहौर फैसलाबाद में बम धमाके हुए. इन धमाकों में करीब 10 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी और इन बम धमाकों का आरोप सरबजीत सिंह को भी बनाया गया. आतंकवाद और जासूसी के इल्जाम में सरबजीत सिंह फंस गए और उन्हें जेल में डाल दिया गया. इसके बाद सरबजीत सिंह को सजा ए मौत सुनाई गई.
अप्रैल 2013 में सजा से पहले ही लाहौर की सेंट्रल जेल में कुछ कैदियों ने सरबजीत पर हमला कर दिया था और 5 दिन बाद अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया.
अमिताभ की सुरक्षा में अफगानिस्तान की आर्मी
अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी की सुपरहिट फिल्म 'खुदा गवाह' की शूटिंग 1991 में अफगानिस्तान में हो रही थी और उस वक्त आंतक के पैर परासने की वजह से अफगानिस्तान जंग से जूझ रहा था. ऐसे में अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति नजीबुल्लाह अहमदजई ने अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी की सुरक्षा में आधी ऐयरफोर्स को लगा दिया था. राष्ट्रपति नजीबुल्लाह अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े फैन हुआ करते थे और उन्हें हिंदी फिल्मों का शौक भी था. इसलिए जब फिल्म का यूनिट अफगानिस्तान पहुंची तो राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि अफगान सरकार खुद इस फिल्म की सुरक्षा का जिम्मा उठाएगी. इस फिल्म की शूटिंग को लेकर अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में लिखा.
'सोवियत के लोग देश छोड़कर जा चुके थे और सत्ता आ चुकी थी नजीबुल्ला अहमदजई के हाथों जो खुद लोकप्रिय हिंदी सिनेमा के बड़े वाले प्रशंसक थे. वो मुझसे मिलना चाहते थे. जैसे ही हम अफगानिस्तान के आर्मी जहाज से नीचे उतरे वैसे ही मुझे वहां के लोगो ने उठाकर अपने कंधे पर बिठा लिया. उसके बाद मुझे मजार ए शरीफ ले जाया गया जहां हमारा आदर सत्कार बिल्कुल शाही अंदाज में हुआ. हमसे कहा गया कि हमारी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हमें होटल में नहीं बल्कि एक महल में रहना होगा और वो महल वहां के राष्ट्रपति का था.
क्या है पूजा स्थल अधिनियम 1991?
भारत एक ऐसा देश जहां, हर धर्म, हर जाति और हर संस्कृति के लोग रहते हैं और देश में सभी को अपने अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है. साल 1991 में पूजा स्थल अधिनियम आया. इसे प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 या उपासना स्थल अधिनियम, 1991 कहा जाता है. ये केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था. 1991 में लागू किया गया ये प्लेसस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता. अगर कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है. ये कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार 1991 में लेकर आई थी. ये कानून तब आया जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था. हालांकि ये कानून कई बार सवालों के कटघरे में भी रहा है और इस कानून को रद्द करने की मांग भी की गई है.
पीलीभीत का फेक एनकाउंटर!
साल 1991 में उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में एक ऐसा एनकाउंटर हुआ, जिसने पूरे देश में बवाल खड़ा कर दिया था. दरअसल साल 1991 में पीलीभीत में पुलिस ने तीर्थ यात्रियों से भरी बस से 10 सिख युवकों को उतारकर उन्हें आतंकी बताकर मौत के घाट उतार दिया था. पीलीभीत का ये फर्जी एनकाउंटर देशभर में चर्चा का विषय रहा. दरअसल 12 जुलाई 1991 को सिख तीर्थ यात्री बिहार में पटना साहिब और महाराष्ट्र में हुजूर साहिब के दर्शन कर वापस लौट रहे थे, तभी पीलीभीत के पास उन्हें पुलिस ने बस से उतार लिया. बस से पुलिसवालों ने 10 तीर्थ यात्रियों को नदी के किनारे उतार कर नीली बस में बिठाया और दिन भर इधर-उधर घुमाने के बाद रात में उन्हें तीन गुटों में बांट दिया. एक दल ने 4, दूसरे दल ने 4 और तीसरे दल ने दो युवकों को कब्जे में लेकर अलग-अलग थाना क्षेत्रों के जंगलों में ले जाकर मार डाला.
पुलिस ने कहा था कि उसने 10 आतंकवादियों को एनकाउंटर में मार गिराया, लेकिन जब यह पता चला कि वे सिख तीर्थ यात्री थे तो हंगामा खड़ा गया. इस मामले में 57 पुलिसकर्मियों को आरोपी बनाया गया था, लेकिन मामले की जांच के दौरान 10 पुलिस वालों की मौत हो गई. ऐसा कहा गया कि इन हत्याओं का मकसद आतंकियों को मारने पर मिलने वाला पुरस्कार था.
नागपुर से फिर नहीं उड़ पाया बोइंग 720
21 जुलाई 1991 को बोइंग 720 की नागपुर एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंडिग कराई गई. बोइंग 720 के इंजन में खराबी आ गई थी. इसलिए इसे इमरजेंसी लैंडिंग की परमिशन दे दी गई. उस वक्त ये जहाज एक प्राइवेट जेट के तौर पर उड़ान भर रहा था. ये जहाज कॉन्टिनेंटल एविएशन प्राइवेट लिमिटेड (CAPL) के नाम पर रजिस्टर्ड था. जहाज के मालिक ने इसे वापस ले जाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. जहाज की पार्किंग फीस बढ़ती गई. CAPL ने ये पैसे नहीं दिए. बाद में ये मामला बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा. कानूनी पचड़े में फंसने के बाद जहाज रनवे पर ही पड़ा रहा, लेकिन बाद में दूसरे जाहजों के ऑपरेशन में दिक्कतें आने लगीं. लिहाजा इसे रनवे से 150 मीटर दूर खिसका दिया गया और साल 2015 में नया नागपुर एयरपोर्ट बनने के दौरान 29 सितंबर को इस जहाज को रनवे से हटाकर नागपुर फ्लाइंग क्लब भेजा गया.
सोने की मदद से सुधरी देश की अर्थव्यवस्था!
साल 1991 में भारत की जेब तंग थी. देश की अर्थव्यवस्था उस वक्त गड़बड़ाई हुई थी. सरकार इसका हल निकालने में जुटी हुई थी कि कैसे करके देश की अर्थव्यवस्था को सुधारा जाए. इसी बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह की सरकार ने उस दौरान रिजर्व बैंक के साथ साझेदारी में एक बेहद ही कठिन फैसला किया और ये फैसला रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास मौजूद सोना और सरकार द्वारा जब्त किए गए सोने के इस्तेमाल का था.
देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था और भारत के पास सिर्फ 15 दिन की विदेशी मुद्र बची थी. उस वक्त सरकार ने विदेश में सोना गिरवी रखकर ही अपनी लाज बचाई थी. उस वक्त तत्तकालीन सरकार ने रिजर्व बैंक में पड़ा 67 टन देश का सोना आईएमएफ के पास गिरवी रखकर मुद्रा का भयानक संकट टाला था. आरबीआई ने 47 टन सोना हवाई जहाज से बैंक ऑफ इंग्लैंड पहुंचाया था जबकि 20 टन सोना स्विटजरलैंड के यूनियन बैंक में पहुंचाया था और बदले में 600 मिलियन डॉलर हासिल किए थे.
उत्तरकाशी में दहली धरती!
1991 में उत्तरकाशी में एक ऐसा जलजला उठा. जो ना जाने कितने लोगों के लिए काल बन गया. दरअसल 1991 में 19 अक्टूबर को रात को लोग चैन की नींद सो रहे थे. लेकिन इसी बीच एक ऐसा भूकंप आया जो मौत की नींद सुलाकर चला गया. 19 अक्टूबर को रात 3 करीब बजे आए भूकंप ने ना जाने कितने लोगों की सोते वक्त ही जान ले ली. रेक्टर स्केल पर ये भूकंप 6.1 मापा गया था. उत्तरकाशी में आए भूकंप ने कई गांव तबाह कर दिए थे. बताया जाता है कि, करीब साढ़े सात सौ से ज्यादा लोग इस भूकंप में मारे गए थे. जबकि डेढ़ हजार से ज्यादा लोग घायल हुए थे. जामक गांव के साथ ही गणेशपुर, गिनडा समेत मनेरी और अन्य गांव में भारी नुकसान हुआ था. कई लोग उस काली रात को याद कर सिहर जाते हैं.
तो टाइममशीन में आज अपने सफर किया है वर्ष 1991 का. जहां आपने जाना कैसे पाकिस्तान की कोर्ट में सुनाई थी सरबजीत सिंह को सजा ए मौत. कैसे अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने खुद किया अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी का भव्य स्वागत और आपने देखा कि कैसे उत्तरकाशी में रात 3 बजे प्रकृति के जलजले ने लोगों को हमेशा के लिए मौत की नींद सुला दिया.
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