असम: आदिवासियों ने तेंदुए की निर्ममता से हत्या कर की खाने की कोशिश!
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असम: आदिवासियों ने तेंदुए की निर्ममता से हत्या कर की खाने की कोशिश!

आदिवासियों ने एक तेंदुए की न केवल बर्बता से हत्या की, बल्कि तेंदुए की पूंछ और और दूसरे अंगों को काटकर खाने की भी कोशिश की.

फॉरेस्ट सुरक्षा दल अगर मौके पर नहीं पहुंचता तो आदिवासी लोग तेंदुआ को खा जाते.

गुवाहाटी(अंजनील कश्यप): असम के जोरहाट जिला के अंतर्गत मोरियानी से लगभग 25 किलोमीटर भीतर के चावड़ा गांव में आदिवासियों ने एक तेंदुए की न केवल बर्बता से हत्या की, बल्कि तेंदुए की पूंछ और और दूसरे अंगों को काटकर खाने की भी कोशिश की. लेकिन ऐन वक़्त पर वन विभाग के सुरक्षा कर्मियों के घटना स्थल पर पहुंचने और मारा हुआ तेंदुआ को कब्ज़े में लेने से आदिवासियों ने वन्य प्राणी का भक्षण नहीं कर पाए.

मोरियानी के फारेस्ट रेंजर जूगेन गोहाई ने कहा कि वक़्त रहते फॉरेस्ट सुरक्षा दल अगर चावड़ा गांव नहीं पहुंचता तो आदिवासी लोग तेंदुआ को खा जाते. कई बार घना जंगल और अंधेरा होने के कारण वन विभाग समय पर घटना स्थल पर पहुंच नहीं पता और तो और गांववाले कभी भी किसी जंगली जानवर को मारने या जानवर से भिड़ंत होने की सुचना वन विभाग को नहीं देते हैं और चोरी छिपे तेंदुआ को मार खा जाते हैं.

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तेंदुआ की हत्या के आरोप में किसी को गिरफ्तार नहीं करने पर जोरहाट मोरियानी के वन्य जीव NGO HULUNGAPARAA NATURES  सोसाइटी के  सचिव  मुकिब ज़मान अहमद ने रोष जाहिर करते हुए कहा कि वन विभाग को कई बार समय पर तेंदुआ आने की सूचना देने के बाद भी आदिवासियों के हाथों बर्बरता से मारा गया. पर किसी की भी गिरफ्तारी नहीं करने से आदिवासियों में जंगली जानवरों के मारने पर रोक नहीं लग पाएगी.   

इस मुद्दे पर असम सरकार के वन विभाग के पीसीसीएफ प्रमुख आईएफएस, देव प्रकाश बंखवाल ने ज़ी मीडिया से कहा असम और नार्थईस्ट के आदिवासी मांसाहारी हैं, और कई बार आदिवासी एक साथ झुण्ड में तेंदुआ या अन्य जंगली जानवरों का हत्या कर देते हैं जिससे इनके खिलाफ गवाही नहीं मिल पाती है और इस घटना पर भी यही हुआ.

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आदिवासी लोग अपने पालतू पशु के तेंदुआ के शिकार होने से कई बार क्रोधित रहते हैं और बदला स्वरुप तेंदुआ को घेरकर मार डालते हैं और इसका मांस खाने में अपनी शान समझते हैं. केस तो दर्ज हुआ हैं पर 1972 के वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के प्रावधान अनुसार 3 वर्ष से 7 वर्ष तक की अधिकतम सजा का भी प्रावधान है, पर गवाह के अभाव में कई बार गांव वाले बच निकलते हैं.

राज्य वन मंत्री परिमल शुक्लबैद्य ने कहा कि आदिवासियों के बीच जानवरों को न मारने और इनके मांस का भक्षण नहीं करने के लिए जागरूक करना मंत्रालय के लिए चुनौतीपूर्ण काम है, लेकिन आदिवासियों के खान पान की आदत में बदलाव लाने पर ही यह संभव हो पाएगा.

दूसरा अब असम सरकार का वन मंत्रालय जंगली जानवरों को न मारने और वन विभाग को सुचना देकर पकड़वाने में मदद करवाने वाले आदिवासीयो को रिवॉर्ड देने का भी योजना लाने की सोच रही है. बता दें कि आदिवासियों के पालतू जानवरों के तेंदुआ-बाघ के शिकार होने के स्थिति पर वन मंत्रालय आदिवासियों को मारे गए पालतू जानवरों के लिए हर्ज़ाना भी देता है.    

असम में जंगली जानवर और गांववालों के बीच संघर्ष के घटनाएं अक्सर होती रहती हैं, लेकिन गांव में रहने वाले आदिवासी खुद को और अपने पालतू जानवरों को तेंदुआ से बचाने के लिए हिंसक हो जाते हैं. कई बार पालतू जानवरों के तेंदुआ के शिकार करने के कारण भी बदला लेने के लिए उग्र गांववाले निर्ममता से जंगली जानवरों की हत्या कर डालते हैं और बाद में जानवरों का भक्षण भी कर लेते हैं.

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