बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक कासिम रसूल इलियास ने कहा कि अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही सबको मान्य होगा.
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नई दिल्ली: अयोध्या मामले (Ayodhya case) में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी (Babri Masjid Action committee) के संयोजक कासिम रसूल इलियास (qasim rasool ilyas) ने बयान दिया है कि उन्हें अब किसी भी तरह की बातचीत मंजूर नहीं. इलियास ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अब तक 50 प्रतिशत सुनवाई हो चुकी है. कोर्ट का फैसला ही सबको मान्य होगा. बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law board) की कमेटी है. अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार है.
इलियास का यह बयान जमात उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष शोहेब कासमी के बयान के बाद आया है. कासमी ने कहा है कि अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के प्रभावशाली लोगों को शामिल कर बातचीत होगी. ‘विवाद सुलझाने के लिए कई प्रयास हुए, पहले हुई मध्यस्थता प्रक्रिया में कमजोर नेताओं को शामिल किया गया था.
जमात उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सुहैब कासमी ने कहा कि 2016 में अयोध्या वार्ता कमेटी का गठन किया गया था. कमेटी एक बार फिर भूमि विवाद को सुलझाने के लिए दोनों पक्षों के प्रभावशाली लोगों को शामिल कर बातचीत करेगी. मध्यस्थता प्रक्रिया उम्मीद के मुताबिक अक्टूबर से शुरू होगी.
कासमी ने कहा, "अयोध्या विवाद को सुलझाने के लिए कई प्रयास हुए. पहले हुई मध्यस्थता प्रक्रिया में कमजोर नेताओं को शामिल किया गया. इसके चलते कोई नतीजा नहीं निकल सका. कई मुस्लिम चाहते हैं कि अयोध्या में राम मंदिर बने. वे यह भी चाहते हैं कि मंदिर के पास ही मस्जिद का निर्माण हो. इससे धार्मिक सौहार्द का संदेश जाएगा."
इधर, अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को 24वें दिन की सुनवाई पूरी हुई. मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि पूजा के अधिकार पर जो दलीलें रखी गई हैं, उससे लगता है कि ईसाइयों को बस वेटिकन और मुसलमानों को मक्का पर हक है. पूरे जन्मस्थान को पूजा की जगह बता हमारा दावा कमज़ोर करने की कोशिश की जा रही है.
राजीव धवन ने कहा कि आप मंदिर या मस्जिद की भूमि का अधिग्रहण कर सकते हैं, लेकिन आप एक देवता भूमि नहीं प्राप्त कर सकते हैं. धवन ने आरोप लगाया कि रामजन्मभूमि न्यास पूरी ज़मीन पर कब्ज़ा करना चाह रहा है और एक नया मन्दिर बनने की बात कर रहा है.
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राजीव धवन ने कहा कि 1949 तक विवादित ढांचे के बाहरी आंगन में पूजा की जाती थी, मूर्ति अंदरूनी हिस्से पर किसी भी तरह का दावा नही किया गया था, बाहरी हिस्सा विश्व हिंदू परिषद द्वारा जबर्दस्ती कब्ज़े में लिया गया था. धवन ने कहा कि अगर 1885 से भी प्रारंभिक अधिकार मांग को माना को देंखे तो उन्होंने बाहरी आंगन की मांग की है क्यों मठरी बाहरी आंगन में रखी हुई थे.
मुस्लिम पक्ष के राजीव धवन ने कहा कि जब देवता अपने-आपको प्रकट करते है तो किसी विशिष्ट रूप में प्रकट होते है और उसकी पवित्रता होती है. जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या आप कह रहे हैं कि एक देवता का एक रूप होना चाहिए? राजीव धवन ने कहा कि हां, देवता का एक रूप होना चाहिए जिसको भी देवत माना जाए, भगवान का कोई रूप नहीं है, लेकिन एक देवता का एक रूप होना चाहिए. धवन ने कहा कि पहचान के उद्देश्य से एक सकारात्मक कार्य होना चाहिए, वह सकारात्मक अभिव्यक्ति के लिए दावा नहीं कर रहे हैं. वह विश्वास के आधार पर दावा कर रहे हैं. राजीव धवन ने कहा मूर्ति की पूजा की हमेशा बाहर के चबूतरे पर होती थी. 1949 में मंदिर के अंदर शिफ्ट किया जिसके बाद यह पूरी ज़मीन पर कब्ज़े की बात करने लगे.