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Badaun Jama Masjid Case Update: उत्तर प्रदेश में अयोध्या, काशी और मथुरा के बाद अब बदायूं की मस्जिद का विवाद कोर्ट पहुंच चुका है. हिन्दू पक्ष ने बदायूं की जामा मस्जिद शम्सी में पूजा के अधिकार और मस्जिद के ASI द्वारा सर्वेक्षण की मांग की है. जिला अदालत 4 अक्टूबर को मामले की सुनवाई करेगी और तय करेगी कि मामला आगे सुनवाई के योग्य है या नहीं. बदायूं की जामा मस्जिद शम्सी पर हिन्दू पक्ष ने दावा किया है कि यहां भारत में इस्लामिक आक्रांताओ के आने से पहले भगवान शिव का मंदिर था. इस मंदिर का नाम नीलकंठ मन्दिर था और बदायूं के सूबेदार रहने के दौरान भारत के पहले इस्लामिक शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के दामाद इल्तुतमिश ने भगवान शिव के मंदिर को तोड़कर यहां जामा मस्जिद शम्सी बनवाई थी.
ज़ी न्यूज के हाथ लगे एक्सक्लूजिव प्रमाण
हिन्दू पक्ष के दावों में कितना दम है, इसके लिए हमने गहन रिसर्च की और हमारी रिसर्च में जो तथ्य और साक्ष्य निकल कर आये वो हिन्दू पक्ष के दावों को और मजबूत करते हैं. साथ ही ये Exclusive साक्ष्य बदायूं की जामा मस्जिद शम्सी के हिन्दू मन्दिर को ध्वस्त कर बनाये जाने का एक अहम प्रमाण भी साबित हो सकते हैं.
मूर्तियां जमीन में गाड़ी?
पहला प्रमाण Archeological Survey of India (ASI) की वर्ष 1875 से 1880 तक बदायूं से लेकर बिहार तक किये गए सर्वेक्षण की 148 वर्ष पुरानी 'TOURS IN THE GANGETIC PROVINCES from Badaon to Bihar' नाम की रिपोर्ट है. जिसे ASI के संस्थापक ALEXANDER CUNNINGHAM ने तैयार किया था. इस रिपोर्ट के पहले पन्ने पर ही बदायूं की विवादित जामा मस्जिद शम्सी की सर्वेक्षण रिपोर्ट है. इस सर्वेक्षण रिपोर्ट में लिखा है कि बदायूं में इस्लामिक आक्रांताओं के शासन से पहले यहां के राजा महिपाल ने हरमंदर नाम से एक हिन्दू मन्दिर बनवाया था. जिसे मुस्लिम आक्रांताओ ने तोड़ दिया था और इसी स्थान पर बदायूं की जामा मस्जिद को बनवाया था. रिपोर्ट में आगे ALEXANDER CUNNINGHAM लिखते हैं.. बदायूं के लोगों का एक सुर में मानना है कि हिन्दू मन्दिर को ध्वस्त करने के बाद मन्दिर की मूर्तियों को इस्लामिक आक्रांताओ ने जहां नमाज़ पढ़ी जाती है, उसके सामने कहीं जमीन के भीतर गाड़ दिया है.
मस्जिद में मौजूद 4 गुम्बद मंदिर के खंबे?
ALEXANDER CUNNINGHAM की इसी रिपोर्ट के पेज 4 पर लिखा है कि जामा मस्जिद शम्सी जो भारत की सबसे बड़ी मस्जिद में से एक है, उसकी दीवार का निचला भाग ध्वस्त किये गए हिन्दू मन्दिरों के अवशेष से ही बनाया गया है. साथ ही रिपोर्ट के पेज नंबर 6 पर लिखा हुआ है कि मस्जिद में मौजूद 4 गुम्बदों के खम्बे असल में उस हिन्दू मन्दिर के हैं, जिसे ध्वसत कर मस्जिद का निर्माण किया गया था.
एक और सर्वे में चौंकाने वाला खुलासा
वर्ष 1926 में ASI के एक और अधिकारी JF BLAKISTON ने भी बदायूं की जामा मस्जिद का सर्वेक्षण किया. उन्होंने THE JAMI MASJID AT BADAUN AND के इतर BUILDINGS IN THE UNITED PROVINCES नाम की अपनी रिपोर्ट के पेज 4 पर जामा मस्जिद के केंद्रीय गुम्बद को सहारा दे रहे छोटे खम्बों को ध्वस्त हिन्दू मन्दिरों का खम्बा बताया.
सरकारी गैजेटर में भी मिले साक्ष्य
अंग्रेजों के जमाने के सबूत के बाद आईये अब आपको आजाद भारत के भी एक सबूत के बारे में बताते हैं. जो जामा मस्जिद शम्सी के हिन्दू मन्दिर को ध्वस्त कर उसके मलबे से बने होने की पुष्टि करता है. यह उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 1986 में जारी किया गया बदायूं जनपद का गैज़ेटर है. जिसे उत्तर प्रदेश की तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय मे जारी किया गया था. इस सरकारी गैज़ेटर के पेज 249 पर साफ-साफ लिखा हुआ है कि मुस्लिम आक्रांता इल्तुतमिश मौलवी टोला स्थित जामा मस्जिद शम्सी का निर्माण, ध्वस्त हिन्दू मन्दिर की जगह पर किया है. निर्माण में ध्वस्त हिन्दू मन्दिरों के अवशेषों का प्रयोग किया गया है.
जानें याचिकाकर्ता ने क्या कहा?
मस्जिद को ध्वस्त मन्दिर मान कर वहां पूजा-पाठ की अनुमति मांगने वाले हिन्दू पक्ष ने अदालत में वर्ष 2002 में बदायूं जिला सूचना विभाग द्वारा जारी की गई जनसूचना निदर्शनी सबूत के तौर पर लगाई गई है. जिसके पेज 13 पर स्पष्ट लिखा है कि इल्तुतमिश ने जामा मस्जिद शम्सी का निर्माण भगवान शिव के नीलकंठ मन्दिर को तोड़ कर किया था. अदालत में पेश किया गया यह सबूत भी हमारे पास है. बदायूं की जिला अदालत में याचिकाकर्ता हिन्दू महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल का दावा है कि मस्जिद परिसर में आज भी किसी बन्द कमरे में ध्वस्त मन्दिर की मूर्तियां रखी हुई हैं.
मुस्लिम पक्ष के वकील ने क्या कहा?
उनकी मांग मस्जिद ध्वस्त करने की नहीं, बल्कि उन्हें और उनके जैसे करोड़ो हिंदुओं को आराध्यों की पूजा करने देने की है. अगर मूर्तियां दफन कर दी गयी हैं, तो अदालत ASI को आदेश देकर परिसर में सर्वेक्षण भी करवाये. जिससे मस्जिद में मौजूद मूर्तियां जिन्हें मन्दिर के विध्वंस के दौरान दबा दिया गया था वो सामने आ सके. विवादित जामा मस्जिद शम्सी की इंतजामिया कमेटी के वकील असरार अहमद हैं. उनके मुताबिक यह सारा विवाद जानबूझकर कर किया जा रहा है, ताकि एक विशेष पार्टी को चुनाव में फायदा हो. वकील असरार अहमद के मुताबिक याचिका को स्वीकार करना ही Places of Worship Act 1991 का उल्लंघन है. ऐसे में उन्होंने पूरी तैयारी कर रखी है और जल्द ही अदालत में जीत मुस्लिम पक्ष की ही होगी.
हिन्दू पक्ष नकार रहा ये दलील
मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता की PLACES OF WORSHIP ACT 1991 की दलील को ही हिन्दू पक्ष नकार रहा है. हिन्दू पक्ष के वकील विवेक रेंडर के मुताबिक PLACES OF WORSHIP ACT 1991 में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है कि अगर कोई स्थल राष्ट्रीय स्मारक है, तो फिर 15 अगस्त 1947 के वक्त वाली यथास्थिति और कोर्ट में सुनवाई के रोक वाले प्रावधान उस पर लागू नहीं होते. इसी दलील को स्वीकार कर जिला न्यायालय ने मामले को स्वीकार किया है. सारे साक्ष्य हिन्दू पक्ष के समर्थन में हैं.
क्या है मुस्लिम आक्रांता इल्तुतमिश का इतिहास?
मुस्लिम आक्रांता इल्तुतमिश का इतिहास ही हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ने वाला रहा है. भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के निदेशक डॉ ओम जी उपध्य्याय के मुताबिक इल्तुतमिश ने सिर्फ बदायूं ही नहीं बल्कि उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर तक पर हमला कर वहां विध्वंस किया था. इल्तुतमिश के दरबारी लेखक मिन्हास ई सिरज ने अपनी किताब 'तबकैत ई नासिरी' में लिखा है कि जब वर्ष 1232 में इल्तुतमिश ने उज्जैन के महाकाल मंदिर पर हमला कर उसका विध्वंस किया था, तो वहां पर मौजूद मूर्ति को क़ुतुब मीनार स्थित कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद जिसका उस नाम जामी मस्जिद था उसके पास फेंक दिया था. ताकि लोग इस पर लात मारें और खण्डित करें. भिलसा के मंदिर, ग्वालियर स्थित शस्त्र बाहु मन्दिर, तेलिका मन्दिर इन मन्दिरों को लूटपाट करके इल्तुतमिश ने विध्वंस किया था.
बदायूं की जामा मस्जिद का विवाद
बदायूं की जामा मस्जिद का विवाद पिछले महीने ही सामने आया था. जब अगस्त में हिन्दू महासभा के प्रदेश संयोजक मुकेश पटेल ने बदायूं की जिला अदालत में मस्जिद में पूजा पाठ करने की याचिका दायर की थी. जिसे 2 सितम्बर को सुनवाई के दौरान बदायूं की जिला अदालत ने स्वीकार कर लिया और 15 सितम्बर तक मस्जिद की इंतजामिया कमेटी, सुन्नी वक्फ बोर्ड, ASI और उत्तर प्रदेश शासन से जवाब मांगा था. लेकिन गुरुवार को बदायूं में बार काउंसिल की हड़ताल की वजह से सुनवाई नहीं हो सकी. मस्जिद की देखरेख करने वाली इंतजामिया कमेटी ने याचिका की कॉपी ना मिलने का हवाला देते हुए कोई जवाब दाखिल नहीं किया था. जिसके बाद अब बदायूं की जामा मस्जिद का मामला जिला अदालत 4 अक्टूबर को सुनेगी और तय करेगी कि मामला आगे सुनने योग्य है या नहीं.
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