'रंग दे बसंती' की 'दुर्गा भाभी' का जानें किस्‍सा, जो भगत सिंह की 'पत्‍नी' भी बनीं
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'रंग दे बसंती' की 'दुर्गा भाभी' का जानें किस्‍सा, जो भगत सिंह की 'पत्‍नी' भी बनीं

कभी सोहा अली खान ने आमिर खान की मूवी ‘रंग दे बसंती’ में किरदार निभाया था, दुर्गावती देवी यानी दुर्गा भाभी का. 

फाइल फोटो

नई दिल्लीः 1999 का दिन था, तारीख थी 15 अक्टूबर, गाजियाबाद के एक फ्लैट में एक बूढ़ी महिला की लाश मिलती है. अचानक से उस सोसायटी में हलचलें तेज हो जाती हैं, शाम होते- होते तो वहां जमावड़ा लगने लगता है. फिर तो जिस किसी ने भी उस महिला का परिचय जाना, वो दंग रह गया, उसकी पहली ही प्रतिक्रया थी कि क्या वो अब तक जिंदा थीं? सच में किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि जिस महिला ने कभी भगत सिंह की जान बचाई थी, जिसके पति आजादी की लड़ाई के इतने बड़े सिपाही थे और जो खुद बम फोड़ती थी, वो इतने सालों से उनकी सोसायटी में रहती थीं.

रंग दे बसंती में सोहा अली खान ने निभाया दुर्गा भाभी का किरदार
कभी सोहा अली खान ने आमिर खान की मूवी ‘रंग दे बसंती’ में किरदार निभाया था, दुर्गावती देवी यानी दुर्गा भाभी का. 16 नवंबर 1926 का वाकया है, शहर था लाहौर. भगत सिंह, भगवती चरण बोहरा समेत कई क्रांतिकारी इकट्ठे थे. भगत सिंह ने अपने गुरु और 1915 में फांसी की सजा पाने वाले गदर क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा को श्रद्धाजंलि देकर एक दमदार भाषण दिया तो उनकी बातों से जोश में आ गईं दुर्गा भाभी ने फौरन भगत के माथे पर तिलक लगा दिया.

भगत सिंह के संगठन नौजवान भारत को दुर्गा के पति भगवती ने किया था तैयार
क्रांतिकारियों के संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन (एचआरएसए) के मास्टर ब्रेन प्रो. भगवती चरण बोहरा की पत्नी दुर्गा का परिवार और मायका दोनों सम्पन्न थे. उनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे, जबकि बाबा महेश प्रसाद भट्ट जालौन में थानेदार थे. 10 साल की उम्र में ही उनका विवाह एक रेलवे अधिकारी के बेटे से हो गया. शुरू से ही पति भगवती चरण बोहरा का रुझान क्रांतिकारी गतिविधियों में था, भगवती को न सिर्फ बम बनाने में महारथ हासिल थी बल्कि वो अपने संगठन के ब्रेन भी कहे जाते थे. भगत सिंह के संगठन ‘नौजवान भारत सभा’ का मेनिफेस्टो भगवती ने ही तैयार किया था. जब चंद्रशेखर आजाद की अगुआई में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के रूप में दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में फिर से गठन हुआ तो भगवती को ही उसके प्रचार की जिम्मेदारी दी गई.

बम बनाना सीख गई थीं दुर्गा भाभी
एचएसआरए के मेनिफेस्टो को भी भगवती ने ही आजाद के सहयोग से तैयार किया, जो कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में जमकर बांटा गया और पढ़ा गया. गांधीजी और उनकी अहिंसा की नीतियों में भरोसे के बावजूद तमाम कांग्रेसी नेता इन क्रांतिकारियों को काफी पसंद करते थे. ऐसे माहौल में रह रही थीं दुर्गा भाभी, तो उनके विचारों में भी क्रांति का प्रभाव आना ही था. वो खुद भी बम बनाना सीख गई थीं. 
 
सांडर्स को गोली मारने के बाद दुर्गा के घर पहुंचे थे भगत सिंह
19 दिसंबर 1928 का दिन था, भगत सिंह और सुखदेव सांडर्स को गोली मारने के दो दिन बाद सीधे दुर्गा भाभी के घर पहुंचे. भगत सिंह जिस नए रूप में थे, उसमें दुर्गा उन्हें पहचान नहीं पाईं, दरअसल उन्होंने सिख पगड़ी की जगह हैट पहन रखा था. भगत सिंह ने अपने बाल कटा लिए थे, हालांकि दुर्गा इस बात से खुश नहीं थी कि स्कॉट बच गया. क्योंकि इससे पहले हुई एक मीटिंग में दुर्गा भाभी ने खुद स्कॉट को मारने का ऑपरेशन अपने हाथ में लेने की गुजारिश की थी, लेकिन बाकी क्रांतिकारियों ने उन्हें रोक लिया था. लाला लाजपत राय पर हुए लाठीचार्ज और उसके चलते हुई मौत को लेकर उनके दिल में काफी गुस्सा भरा हुआ था.

रूप बदलने में माहिर थे भगत सिंह
इधर लाहौर के चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात थी. भगत सिंह का लाहौर से बचकर निकलना नामुमकिन था. दुर्गा ने उन्हें कोलकाता निकलने की सलाह दी, उस वक्त कांग्रेस का अधिवेशन कोलकाता में चल रहा था और भगवती चरण बोहरा भी उसमें भाग लेने गए थे. तीनों अगले दिन लाहौर रेलवे स्टेशन पहुंचे. सूट बूट और हैट पहने हुए भगत सिंह, उनके साथ उनका सामान उठाए नौकर के रूप में राजगुरू और थोड़ा पीछे अपने बच्चे के साथ आतीं दुर्गा. बिलकुल एक भारतीय पैसे वाले परिवार का अभिनय कर रहे थे वो सारे. 

500 पुलिस वालों की नजरों से ऐसे बचे भगत सिंह
चूंकि सम्पन्न परिवार की तरह पेश आना था, सो टिकट भी फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट के ही खरीदे गए. दो फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट की टिकटें लेकर भगत सिंह और दुर्गा, मियां बीवी की तरह बैठ गए और सर्वेन्ट्स के कम्पार्टमेंट में राजगुरू बैठ गए. इसी ट्रेन में एक तीसरे डिब्बे में चंद्रशेखर आजाद भी थे, जो तीर्थयात्रियों के ग्रुप में शामिल होकर रामायण की चौपाइयां गाते हुए सफर कर रहे थे. पांच सौ पुलिस वाले ट्रेन और प्लेटफॉर्म पर थे, उस वक्त लाहौर से निकलने के दो ही रास्ते थे, या सड़क के रास्ते या फिर रेल के रास्ते. सो अंग्रेजों की सारी फोर्स इन दो जगह पर तैनात थी. ऐसे में सभी का बचकर निकलना चमत्कार जैसा था.

दुर्गा भाभी की वजह से देश के महान क्रांतिकारियों की जान बच गई थी. इधर अंग्रेजों ने भी लाहौर से जिस जिस बड़े स्टेशन के लिए ट्रेनें थीं, उन सब पर भी सुरक्षा बढ़ा दी. ये अंदाजा इन लोगों को भी हो गया था, सो ट्रेन सीधे कोलकाता की नहीं ली. आजाद भी रास्ते में ही किसी छोटे स्टेशन पर उतर गए. ये लोग भी कानपुर स्टेशन पर उतर गए. कानपुर से उन्होंने लखनऊ के लिए ट्रेन ली, दुर्गा ने लखनऊ से भगवती चरण बोहरा को टेलीग्राम भेजा कि वो आ रही हैं, लेने हावड़ा स्टेशन आ जाएं. वहां से उन्होंने हावड़ा स्टेशन की ट्रेन ली. सीआईडी हावड़ा स्टेशन पर तैनात थी लेकिन वो सीधे लाहौर से आने वाली ट्रेन्स पर नजर रख रही थी. सब लोग सुरक्षित निकल गए. राजगुरू लखनऊ से ही बनारस के लिए निकल चुके थे.
 
भगत सिंह की बेल के लिए बेच दिए थे गहने
कोलकाता में कुछ दिन रहकर वहां के कई क्रांतिकारियों से मुलाकात की. वहां से वो फिर बच्चे का साथ लाहौर आ गईं, लेकिन इतने बड़े क्रांतिकारियों को इतने बड़ा खतरा मोल लेकर ब्रिटिश पुलिस की नाक के नीचे से निकाल कर ले जाने का जो काम उन्होंने किया, उसका महिमामंडन होता तो कम से कम उनकी सोसाटयी के लोग तो उन्हें जानते. उसके बाद असेम्बली बम कांड के बाद भगत सिंह आदि क्रांतिकारी गिरफ्तार हो गए. आपको ये जानकर यकीन नहीं होगा कि दुर्गा भाभी ने उन्हें छुड़ाने के लिए वकील को पैसे देने की खातिर अपने सारे गहने बेच दिए और वकील को तीन हजार रुपए की फीस उन पैसों से दी.

फिर गांधीजी से भी अपील की कि भगत सिंह और बाकी क्रांतिकारियों के लिए कुछ करें. दुर्गा भाभी की ननद सुशीला देवी भी कम नहीं थी, उन्होंने अपनी शादी के लिए रखा 10 तोले सोना भी क्रांतिकारियों के केस लड़ने के लिए उस वक्त बेच दिया था. सुशीला और दुर्गा ने ही असेम्बली बम कांड के लिए जाते भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को माथे पर तिलक लगाकर विदा किया था. ये बात भी कम लोगों को पता है.

देश की आजादी था लक्ष्य
इधर 63 दिन की भूख हड़ताल के बाद लाहौर जेल में ही जतिन्द्र नाथ दास यानी जतिन दा की मौत हो गई तो उनकी लाहौर से लेकर कोलकाता तक ट्रेन में और कोलकाता में भी अंतिम यात्रा की अगुवाई दुर्गा भाभी ने ही की. इधर उनके पति भगवती चरण बोहरा ने इरविन की ट्रेन पर बम फेंकने के बाद भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव समेत सभी क्रांतिकारियों को छुड़ाने की योजना बनाई और इसके लिए वो रावी नदी के तट पर लाहौर में बम का परीक्षण कर रहे थे, 28 मई 1930 का दिन था कि अचानक बम फट गया और भगवती चरण बोहरा की मौत आ गई. दुर्गा भाभी को बड़ा शॉक लगा, लेकिन वो जल्द उबर गईं और देश की आजादी को ही अपने जीवन का आखिरी लक्ष्य मान लिया.

दुर्गा ने सिखाया था अंग्रेजों को सबक
तब दुर्गा भाभी ने अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए पंजाब प्रांत के एक्स गर्वनर लॉर्ड हैली पर हमला करने की योजना बनाई, दुर्गा ने उस पर 9 अक्टूबर 1930 को बम फेंक भी दिया, हैली और उसके कई सहयोगी घायल हो गए, लेकिन वो घायल होकर भी बच गया. उसके बाद दुर्गा बचकर निकल गईं. दिलचस्प बात थी कि ये भी अक्टूबर का ही महीना था. लेकिन जब मुंबई से पकड़ी गईं तो उन्हें तीन साल के लिए जेल भेज दिया गया. लेकिन दुर्गा भाभी के लिए सबसे मुश्किल समाचार उनके अपने जन्मदिन के दिन ही मिला था, यानी आज के दिन यानी 7 अक्टूबर 1930 को, कोर्ट ने भगत सिंह को फांसी की सजा के ऐलान के लिए यही ताऱीख चुनी थी. हालांकि फांसी 23 मार्च 1931 को दी गई.

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