Sharda Sinha: शारदा सिन्हा ने बीते एक अक्टूबर को अपने दिवंगत पति को याद करके एक बड़ा ही भावुक पोस्ट किया था. इस पोस्ट से पता चलता है कि वह अपने जीवनसाथी को कितना प्रेम करती थीं और उन्हें कितना मिस कर रही थीं.
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Sharda Sinha Emotional Post: बिहार की स्वर कोकिला पद्मश्री शारदा सिन्हा के निधन से समूचा भोजपुरी समाज दुखी है. उनका पार्थिव शरीर पटना पहुंच चुका है, जहां उनके अंतिम दर्शन के लिए लोगों का तांता लगा है. इसमें सामान्य लोगों से लेकर वीवीआईपी तक शामिल हैं. शारदा सिन्हा को शायद पिछले महीने ही अपनी मौत का ऐहसास हो गया था. तभी तो उन्होंने अपने दिवंगत पति ब्रजकिशोर सिन्हा को याद करके लिखा था- मैं जल्द ही आऊंगी... शारदा जी के फेसबुक पेज को देखने से पता चलता है कि वह अपने पति को बहुत मिस कर रही थीं. इतना ही नहीं वह सुहागिन मरना चाहती थीं, लेकिन यह हो न सका तो उन्होंने बेटे से कहा था मेरा अंतिम संस्कार मेरे पति की जगह पर ही करना. अब कल यानी गुरुवार (7 नवंबर) को उनका अंतिम संस्कार होना है.
शारदा सिन्हा ने बीते एक अक्टूबर को अपने दिवंगत पति को याद करके एक बड़ा ही भावुक पोस्ट किया था. इसमें उन्होंने लिखा था- जब सब घर में सो रहे होते थे, आज के दिन सिन्हा साहब , चुपके से उठ कर फूल वाले के पास जाते थे, दो गुलाब और कुछ चटपटा नाश्ता, हाथ में लिए, एक नटखट सी हंसी अपने आंखों में दबाए, घर आते थे, बिना आवाज किए, मेरे सिरहाने में रखी कुर्सी पर बैठ कर, इंतजार करते थे कि कब मैं उठूं, और वो मुझे वो दो गुलाब दे कर कहें, "जन्मदिन हो आज तुम्हे मुबारक, तुम्हे गुलसितां की कलियां मिले, बहारे न जाएं तुम्हारे चमन से, तुम्हे जिंदगी की खुशियां मिलें". फिर मैं अर्ध निद्रा में, आंखे मलते हुए उठती, उन्हें हाथ जोड़ प्रणाम करती, और इससे पहले कि मैं अच्छी शब्दावली का चयन कर उन्हे धन्यवाद कहती, वे अधीर हो पूछ बैठते थे , ...." अरे भाई, आज तो कुछ खास होना चाहिए खाने में, फिर वो चटपटा नाश्ता मेरे ठीक सिरहाने रख कर कहते, हांजी ये सबके लिए है".
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उन्होंने आगे लिखा कि मैं उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखने के हिसाब से उन्हें मना करती, "मत खाइए ये सब , तबियत खराब हो जाएगी.... अरे छोड़ो जी...मस्ती में रहो कह कर चल देते . मैं बच्चों से कहती, उनको मत देना इस नाश्ते में से, वो पक्का पहले ही खा चुके होंगे... चश्में के ऊपर से वो मुझे घूरते और कहते..नही नही, मैं उन्हें और जोर से घूरती तो चुप चाप कह देते थे, ...थोड़ा खाया था मैंने . फिर मैं बच्चों से उनकी दावा दिलवा कर उन्हे आराम करने को कहती थी. बिना सिन्हा साहब के ये दिन शूल सा गड़ता है मुझे, आज मैं क्या पूरी दुनियां ही उन्हें फूलों से सजा रही है . एकाद्शा/ द्वादशा की तैयारियां हैं, अब थोड़ा नाश्ता क्या पूरा भोज सामने है. ये कौन सा तोहफा दे गए सिन्हा साहब ?!?
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शारदा ने सिन्हा ने लिखा कि उनसे अंतिम मुलाकात 17 सितंबर की शाम हुई, जब मैंने कहा था, 3 दिनों में मैं लौट कर आ जाऊंगी, आप अपना ध्यान रखिएगा. उन्होंने मुझे कहा मैं बिल्कुल ठीक हूं, आप बस स्वस्थ रहिए.. और जल्दी लौट जाईयेगा ". हाथ जोड़ कर ढब ढबाती आंखें मुझे आखरी बार देख रही थीं ये कौन जानता था. आज का दिन बहुत भारी है. सिन्हा साहब की मौजूदगी का एहसास मुझे तो है ही, दोनो बच्चों वंदना और अंशुमन को तो ऐसा लगता है जैसे पिताजी कहीं गए हैं, थोड़ी देर से लौट आएंगे. ये चीरता सन्नाटा, ये शूल सी चुभन, हृदय जैसे फट कर बाहर आ जाएगा! आखिरी मुलाकात की एक तस्वीर बची है, सबके दर्शनार्थ यहां साझा कर रही हूं. पोती उनकी गोद में है, आंखे उनकी भरी भरी, मैं द्रवित सी, दिलासा देती साथ खड़ी हूं. मैं जल्द ही आउंगी... मैंने बस यही कहा था उनसे ......!
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