Sharad Purnima पर अलग ही चमकता है मिथिलांचल, जानिए क्या है यहां की परंपरा
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Sharad Purnima पर अलग ही चमकता है मिथिलांचल, जानिए क्या है यहां की परंपरा

Sharad Purnima 2021: मिथिलांचल में इस पर्व का महत्व विवाह संस्कार से जुड़ा हुआ है. जिन घरों में नई-नई शादियां हुईं रहती हैं, वहां उत्सव जैसा माहौल होता है. वर पक्ष के घर वधू पक्ष से मखाने-बताशे, मिठाइयां और कई सारे पकवान भात-भार के तौर पर दिए जाते हैं. लगभग सभी चीजें सफेद रंग होती हैं, जिनमें संदेश छिपा होता है कि नवदंपती का जीवन भी ऐसे ही सफेद, उजला, चमकता रहे.

Sharad Purnima पर अलग ही चमकता है मिथिलांचल, जानिए क्या है यहां की परंपरा

पटनाः Sharad Purnima 2021: मिथिलांचल के पौराणिक इतिहास के कारण बिहार की धरती कई लोकपर्वों और लोकरंगों की रंगोली है. यहां की संस्कृति में तीज-त्योहार का ऐसा मेल है जो हर दिन आपको प्रकृति से जुड़ाव का अहसास कराएगा. आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि जिसे देशभर में शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, बिहार में यह चांदनी भरी रात कोजागरी, कोजागरा या फिर कोजागिरी की रात कहलाती है. 

  1. कोजगरा के प्रदोष काल में माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है
  2. मिथिलांचल में इस पर्व का महत्व विवाह संस्कार से जुड़ा हुआ है

मखाना-बताशा बांटने की है परंपरा
मिथिलांचल में इस पर्व का महत्व विवाह संस्कार से जुड़ा हुआ है. जिन घरों में नई-नई शादियां हुईं रहती हैं, वहां उत्सव जैसा माहौल होता है. वर पक्ष के घर वधू पक्ष से मखाने-बताशे, मिठाइयां और कई सारे पकवान भात-भार के तौर पर दिए जाते हैं. लगभग सभी चीजें सफेद रंग होती हैं, जिनमें संदेश छिपा होता है कि नवदंपती का जीवन भी ऐसे ही सफेद, उजला, चमकता रहे.

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उसमें कहीं से कोई दाग न लगे और न ही जीवन में कोई अंधकार आए.  कोजगरा के अवसर पर समाज के लोगों में मखाना-बताशा और पान बांटने की परंपरा है. पान मैत्री संबंध को बढ़ावा देने वाला माना जाता है. राजाओं के काल में जब दो राजा साथ में पान खाते थे तो ये एक शपथ होती थी कि दोनों एक-दूसरे की सुरक्षा करेंगे. 

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वर को पहनाते हैं पाग
मिथिलांचल में दही, धान, पान, सुपारी, मखाना, चांदी से बने कछुआ, मछली, कौड़ी के साथ वर का पूजन किया जाता है. इसके बाद चांदी की कौड़ी से वर और कन्या पक्ष के बीच एक खेल होता है. इस खेल में जीतने वाले के लिए वर्ष शुभ माना जाता है. पूजा के बाद सगे-संबंधियों और परिचितों के बीच मखाना, पान, बताशे, लड्डू का वितरण किया जाता है.

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इस अवसर पर वर एक खास तरह की टोपी पहनते हैं जिसे पाग कहते हैं. मिथिला में पाग सम्मान का प्रतीक माना जाता है. घर के बड़े बुजुर्ग इस दिन वर को दही लगाकर दुर्घायु और सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद देते हैं.

देवी लक्ष्मी की होती है पूजा
कोजगरा के प्रदोष काल में माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है. घरों की स्त्रियां नवविवाहित दूल्हे को सोने या चांदी से चूम कर उनके सुखमय जीवन की प्रार्थना करती हैं. इसके बाद लोगों के बीच मखाना-बताशा, पान आदि बांटे जाते हैं. शरद पूर्णिमा की रात का नाम कोजगरा इस लिए पड़ा क्योंकि इस रात में जागरण का विशेष महत्व होता है.

माना जाता है कि कोजगरा की रात आसमान से अमृत तो बरसता ही है, देवी लक्ष्मी भी कृपा बरसाती हैं. पूरे वर्ष में शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा सबसे अधिक शीतल और प्रकाशमान प्रतीत होते हैं. 

रात में होता है जागरण, इसलिए है कोजागर
मिथिला के क्षेत्र में और बंगाल का प्रभाव होने से यहां की परंपराएं भी मिलती-जुलती हैं. बंगाल-बिहार में इस दिन को लक्ष्मी पूजन का दिन मानते हैं. दरअसल, बंगाल में दीपावली की रात को काली पूजन का दिन माना जाता है. जबकि शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी का दिन मानते हैं. दीपावली अमावस्या का त्यौहार है.

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इस तिथि की असल देवी काली ही हैं. वहीं देवी लक्ष्मी पूर्णिमा की देवी हैं. दीपावली की रात अष्टलक्ष्मी में एक महालक्ष्मी की पूजा होती है. माना जाता है कि भगवान विष्णु के पातालनिद्रा में चले जाने के कारण देवी लक्ष्मी वैकुंठ में अकेले रह जाती हैं. तब इसी बीच शरद पूर्णिमा की रात चांद खिला देखकर वह पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आती हैं. इसीलिए इस दिन जागरण का महत्व होता है. 

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