नदी-नालों और तालाबों में पैदा हुई जलकुंभी काफी समस्याओं का कारण बन जाती थी. इसे हटा पाना भी आसान नहीं है. वहीं अब जमशेदपुर के ये युवा अब जलकुंभी को रिसाइकल करके साड़ी और लैंपशेड समेत बहुत सारे प्रोडक्ट बना रहे हैं.
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Entrepreneurship News: नदियों, तालाबों, जलाशयों पर कब्जा कर लेने वाली जलकुंभी (water hyacinth) अभिशाप मानी जाती हैं, लेकिन झारखंड के जमशेदपुर में रहने वाले गौरव आनंद, रौनक राठौर और पंकज उपाध्याय जैसे युवाओं ने इसे रोजगार का साधन बना लिया. वो अब जलकुंभी से लाखों रुपये महीना कमा रहे हैं और तकरीबन 10 हजार लोगों को रोजगार दे रहे हैं. नदी-नालों और तालाबों में पैदा हुई जलकुंभी काफी समस्याओं का कारण बन जाती थी. इसे हटा पाना भी आसान नहीं है. वहीं अब जमशेदपुर के ये युवा अब जलकुंभी को रिसाइकल करके साड़ी और लैंपशेड समेत बहुत सारे प्रोडक्ट बना रहे हैं. जलकुंभी के बने प्रोडक्ट इतने बेहतर क्वालिटी के होते हैं कि बाजार में आते ही हाथों हाथ बिक जाते हैं.
इन उद्यमियों की सोच ने सबसे पहले तो बेकार पड़े जलकुंभी को उपयोगी वस्तु की श्रेणी में ला दिया है. दूसरी बड़ी बात यह है कि इन्होंने स्थानीय महिलाओं को रोजगार देकर अपने पैरों पर खड़ा होने का मौका दिया है. डैम और तालाबों से जलकुंभी को निकालने के काम से लेकर उनकी साफ-सफाई, कटाई-छंटाई समेत प्रोसेसिंग की पूरी प्रक्रिया में स्थानीय महिलाएं करती हैं. इससे उनको बड़े पैमाने पर काम मिलना शुरू हो गया है. कम शारीरिक मेहनत और स्थानीय स्तर पर काम मिलने के कारण महिलाएं भी इस काम को प्राथमिकता दे रही हैं. रोजगार मिल जाने से अब इनके जीवन में भी बदलाव देखने को मिल रहा है. हाथ पर चार पैसे आने से महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं.
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जलकुंभी से बने उत्पादों की डिमांड बाजार में काफी अच्छी है. इसे देखते हुए इस सेक्टर में रोजगार की भी अपार संभावनाएं हैं. रौनक राठौर बताते हैं कि जलकुंभी से जुड़े काम में फिलहाल सैकड़ों महिलाएं शामिल हैं. उनका मकसद है कि आने वाले समय में इस काम से दस हजार परिवारों को जोड़ा जाए. यदि ऐसा होता है तो इलाके में महिलाओं और पुरुषों को रोजगार मिलेगा, साथ ही उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी. पंकज उपाध्याय इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन इंजीनियर है, इनका कहना है कि नदी और तालाब को दूषित होने से बचाने के साथ बेकार पड़ी जलकुंभी को उपयोग में लाना उनका मकसद है. इनका कहना है कि जलकुंभी से बने उत्पाद को देश के कई राज्यों में भेजने के बाद उनका लक्ष्य है कि यहां के बने सामान विदेशों तक जाएं. गौरव आनंद को टाटा स्टील कंपनी के साथ भारत सरकार के कई प्रोजेक्ट में अपनी सेवा देने का अनुभव रहा है. इन्होंने सड़क निर्माण में प्लास्टिक के उपयोग और किचन वेस्ट इससे बायोगैस बनाने पर भी काम किया है.
रिपोर्ट- आशीष तिवारी