Bihar Politics: नीतीश कुमार की ये 10 गलतियां आज उन्हीं पर पड़ रही हैं भारी
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Bihar Politics: नीतीश कुमार की ये 10 गलतियां आज उन्हीं पर पड़ रही हैं भारी

Lok Sabha Election 2024: राजनीति विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीति में जिसका स्टैंड क्लियर नहीं होता, उसका भविष्य भी क्लियर नहीं बचता और नीतीश कुमार आज उन्हीं नेताओं में शुमार हैं. आज हम आपको नीतीश कुमार की वह 10 गलतियां बताने जा रहे हैं, जो आज उनके सियासी राह को एक तरह से दोराहे पर लाकर खड़ी कर चुकी है.

फाइल फोटो

Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव में अब मुश्किल से दो महीने का वक्त बचा है, लेकिन विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. में सीट शेयरिंग का गणित सुलझ नहीं पा रहा है. खुद विपक्षी एकता की पहल करने वाले नीतीश कुमार को लेकर I.N.D.I.A. में बने रहने या नहीं रहने को लेकर कयासबाजी हो रही है. नीतीश कुमार को I.N.D.I.A. में वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे. राजनीति विशेषज्ञों का कहना है कि राजनीति में जिसका स्टैंड क्लियर नहीं होता, उसका भविष्य भी क्लियर नहीं बचता और नीतीश कुमार आज उन्हीं नेताओं में शुमार हैं. 2005 से ही बिहार की राजनीति के सिरमौर बने नीतीश कुमार के साथ आज विश्वसनीयता का संकट है, क्योंकि नीतीश कुमार की कुछ गलतियां ही आज उन पर भारी पड़ रही हैं. राजनीतिक कौशल के चलते आज वे मुख्यमंत्री बने हुए हैं लेकिन आज I.N.D.I.A. के नेता इस पसोपेश में हैं कि नीतीश कुमार पता नहीं हमारे साथ होंगे या नहीं. उधर एनडीए के नेता भी इस बात को लेकर कन्फर्म नहीं हैं कि नीतीश कुमार उनके साथ आ ही जाएंगे. ऐसे में नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के वोटरों का भी रुझान भी कुछ इसी तरह रह सकता है. आज हम आपको नीतीश कुमार की वह 10 गलतियां बताने जा रहे हैं, जो आज उनके सियासी राह को एक तरह से दोराहे पर लाकर खड़ी कर चुकी है.

1. बीजेपी से दोस्ती तोड़ना- नीतीश कुमार ने सबसे पहली गलती 2013 में की, जब उन्होंने बीजेपी से दोस्ती तोड़ी. इससे पहले तक बिहार में नीतीश कुमार की राजनीति का कोई तोड़ नहीं था. बीजेपी के साथ उनकी छवि सुशासन बाबू की बन चुकी थी. इसी का नतीजा था कि 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए सरकार पर जनता ने पूरा भरोसा जताया था. उस चुनाव में जदयू-बीजेपी की जोड़ी ने एक तिहाई बहुमत हासिल किया था. जदयू ने 115 और बीजेपी ने 91 सीटें जीती थीं. वहीं राजद को सिर्फ 22 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस सिर्फ 4 सीटों पर सिमट गई थी. इसके बाद नीतीश के अंदर पीएम बनने की महत्वाकांक्षा जगी और उन्होंने 2013 में नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया.

2. 2014 लोकसभा में अकेले जाना- नीतीश ने 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा था. ये उनकी दूसरी गलती थी. 2010 के विधानसभा चुनाव में मिले प्रचंड बहुमत से नीतीश को भ्रम हो गया था कि उनके चेहरे पर इतनी बड़ी जीत हासिल हुई थी और 2014 लोकसभा चुनाव में वह नरेंद्र मोदी के 'विजयरथ' को रोक सकते हैं. हालांकि, चुनाव परिणाम आने के बाद उनका भ्रम टूट गया. उस चुनाव में जेडीयू को सिर्फ 2 सीटें हासिल हुई थीं. राजद को 4 और कांग्रेस सिर्फ 2 सीटें मिली थीं. एनडीए के खाते में 32 सीटें आई थीं. जिसमें से 22 पर बीजेपी अकेले जीती थी. इससे ये क्लियर हो गया था कि बीजेपी के साथ गठबंधन में नीतीश को फायदा मिल रहा था. 

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3. जीतन राम मांझी को सीएम बनाना- लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद नीतीश कुमार ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था. मांझी सरकार को बीजेपी ने समर्थन दे रखा था. नीतीश ने सोचा था कि मांझी 'स्टैंप सीएम' की तरह काम करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मुख्यमंत्री बनने के बाद मांझी अपनी मर्जी से फैसला लेने लगे थे. जिसपर फरवरी 2015 में नीतीश ने मांझी को सीएम पद से हटा दिया. ये उनकी तीसरी गलती थी. मांझी ने नाराज होकर जदयू छोड़कर अपनी अलग पार्टी बना ली. मांझी के साथ महादलित वोटबैंक भी जेडीयू के हाथ से खिसक गया.

4. लालू यादव से दोस्ती- नीतीश कुमार की चौथी गलती और शायद सबसे बड़ी गलती राजद के साथ गठबंधन करने की थी. लोकसभा चुनाव में बीजेपी से मिली हार का बदला लेने के लिए नीतीश कुमार ने 2015 में लालू यादव से हाथ मिला लिया और 2015 का विधानसभा चुनाव राजद के साथ मिलकर लड़ा. इस चुनाव में महागठबंधन को जीत भले मिली, लेकिन नीतीश कुमार की सुशासन बाबू वाली छवि को भारी नुकसान हुआ. इतना ही नहीं 2011 में चारा घोटाले में सजा होने के बाद लालू राजनीति से दूर हो चुके थे और राजद लुप्त होने की कगार पर थी, नीतीश ने बुझी लालटेन में घासलेट (ईधन) डालने का काम किया था. यही नहीं नीतीश ने लालू के दोनों बेटों (तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव) को सरकार में शामिल करके उन्हें राजनीति के गुण भी सिखाए. 

5. राजद से गठबंधन तोड़ना- 2017 में नीतीश ने फिर से पलटी मारी और वापस बीजेपी के साथ खड़े हो गए. अबतक उनकी ही पाठशाला से निकले तेजस्वी यादव मंझे हुए राजनेता बन चुके थे. उन्होंने नीतीश को पलटूराम चाचा कहकर उनको अविश्वसनीय राजनेताओं की कतार में सबसे आगे खड़ा कर दिया. बिहार के आम वोटर से लेकर जदयू कार्यकर्ता तक को अब नीतीश पर भरोसा नहीं होता कि वह किसके साथ चले जाएंगे.  

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6. 2020 में अंतिम चुनाव की घोषणा- पलटूराम के टैग से नीतीश कुमार को 2020 के विधानसभा चुनाव में काफी नुकसान हुआ. इसी चुनाव में नीतीश ने सहानुभूति बटोरने के लिए सीएम ने अपने अंतिम चुनाव की घोषणा भी कर दी. यह दांव भी उल्टा पड़ा. इससे जदयू कार्यकर्ता निराश हो गए और जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बनकर सामने आई. अगर पीएम मोदी मैदान में ना उतरते तो शायद तेजस्वी का राज्याभिषेक हो गया होता. 

7. राजद से फिर हाथ मिलाना- ये नीतीश कुमार की सातवीं गलती थी. उनके इस कदम ने ना सिर्फ उनपर पलटूराम के टैग को पूरी तरह से चिपका दिया, बल्कि जनता के भरोसे को भी तोड़ा. 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश ही जनता को लालू के जंगलराज को याद दिला रहे थे. इसी कारण से जनता ने एनडीए को बहुमत दिया था. लेकिन नीतीश कुमार अपनी पलटी मारने की आदत के चलते राजद को फिर से सत्ता में ले आए. इसके बाद से बिहार के कानून व्यवस्था को लेकर बीजेपी हमेशा मुख्यमंत्री को घेरती रहती है. 

8. पीएम पद की लालसा- पीएम पद की लालसा में नीतीश कुमार ने विपक्ष को एकजुट किया. हालांकि, ऐसा करते वक्त वह यह भूल गए कि विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस पार्टी ही बड़े भाई की भूमिका निभाएगी. 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी यानी जदयू 17 सीटों पर लड़ी थी, जिसमें 16 सीटों पर जीत मिली थी. अगर इस बार भी जदयू सभी 16 सीटें जीत जाए फिर भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार कैसे हो सकते हैं. क्योंकि इंडी अलायंस में तो कई पार्टियां जदयू से अच्छा प्रदर्शन करेंगी. नीतीश अगर खुद को एचडी देवगौड़ा समझ रहे हैं तो देवगौड़ा भी तभी पीएम बने थे, जब उनकी पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी थी. 

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इंडी अलायंस में सबसे ज्यादा नुकसान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को होता दिख रहा है. मोदी को सत्ता से हटाने के लिए नीतीश कुमार ने ही विपक्ष को एकजुट किया था और अब उन्हें ही इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. दरअसल, बिहार में अभी नीतीश कुमार की पार्टी के 16 सांसद हैं, लेकिन इंडी अलायंस में को अपनी सीटें बचाना ही बड़ा मुश्किल नजर आ रहा है. यही वजह है कि सीट शेयरिंग को लेकर अब RJD-JDU में खटपट शुरू हो गई है. 

9. कुशवाहा-आरसीपी को बाहर किया- जदयू के पूर्व अध्यक्ष ललन सिंह के कार्यकाल में जेडीयू के तमाम नेताओं ने पार्टी छोड़ी. इन नेताओं में उपेंद्र कुशवाहा और आरसीपी सिंह भी हैं. जदयू के लव-कुश वोटबैंक को ये गहरा आघात था. ये दोनों नेता इसी वोटबैंक से ताल्लुक रखते हैं. राजनीतिक पंडितों के मुताबिक, ललन सिंह के चलते ही बीजेपी से दोस्ती तोड़ी गई थी. ललन पर लालू से मिलकर जदयू तोड़ने का आरोप लगा था. इसी कारण उन्हें अध्यक्ष पद से हटाया गया. लेकिन अब इस कदम से भूमिहार वोटर नाराज हो गया है. क्योंकि ललन सिंह भूमिहारों के बड़े नेता हैं. 

10. तेजस्वी को उत्तराधिकारी घोषित किया- नीतीश की 10 बड़ी गलती तेजस्वी यादव को प्रोजेक्ट करना है. अक्टूबर 2023 में नीतीश ने सार्वजनिक तौर पर तेजस्वी यादव को प्रोजेक्ट किया था. सीएम नीतीश कुमार ने तेजस्वी की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि हमारा सबकुछ यही है. नीतीश ने अपनी पार्टी में किसी नेता को उभरने नहीं दिया और लालू के बेटे को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. इससे जदयू के कोर वोटर और कार्यकर्ता अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं. 

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