भगवान सूर्य के इतिहास प्रसिद्ध मंदिरों में देव वरुणार्क मंदिर भोजपुर जिले में है. करीब द्वापर युग के राजा वरुण और चौथी सदी शताब्दी के बीच गुप्त वंश के शासन काल में मंदिर का निर्माण हुआ था. यह प्रचीन मंदिर तरारी प्रखंड के देव गांव में स्थापित है.
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पटनाः भोजपुर जिलाधिकारी राजकुमार ने जिले के तरारी प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत देव ग्राम स्थित देव वरुणार्क मंदिर की जांच एवं निरीक्षण किया. उन्होंने कहा कि जांच के क्रम में अवस्थित ऐतिहासिक सूर्य मंदिर जलाशय और अन्य कलाकृतियां काफी पुरानी पाई गई. स्थानीय लोगों के अनुसार उक्त मंदिर और कलाकृतियां गुप्त काल से संबंधित है. देव ग्राम में स्थित सूर्य मंदिर एवं अन्य कलाकृतियों को सुरक्षित किया जाना अति आवश्यक है. ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है. उन्होंने उम्मीद जताई है कि इस मंदिर के मूर्तियों एवं कलाकृतियों को सुरक्षित रखने एवं जलाश्य के विकास के लिए जल्द से जल्द दिशा निर्देश जारी करेंगे.
द्वापर युग में मंदिर का हुआ था निर्माण
स्थानीय लोगों के अनुसार भगवान सूर्य के इतिहास प्रसिद्ध मंदिरों में देव वरुणार्क मंदिर भोजपुर जिले में है. करीब द्वापर युग के राजा वरुण और चौथी सदी शताब्दी के बीच गुप्त वंश के शासन काल में मंदिर का निर्माण हुआ था. यह प्रचीन मंदिर तरारी प्रखंड के देव गांव में स्थापित है. काले पत्थरों व बलुआही पत्थरों से निर्मित प्राचीन खंडित व अच्छी अवस्था में करीब 100 मूर्तियां इस मंदिर में विराजमान है. यहां नगर शैली में निर्मित प्राचीन सूर्य मंदिर के अवशेष विराजमान हैं. इस मंदिर की ऊंचाई करीब 7.5 मीटर है. मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित सूर्य की खंडित हो चुकी मंदिर पंचायत व रेखा सीकर से युक्त है. इसका निर्माण 30 सेंटीमीटर, 25 सेंटीमीटर , 5 सेंटीमीटर आकार के ईटों से हुआ है.
मंदिर में बना हुआ रमणीक तालाब
जानकारी के लिए बता दें कि सूर्य मंदिर से पूरब दिशा में कुछ दूर पर स्थित 51 बीघा 19 कट्ठा पिंड सहित रकबा में रमणीक तालाब है. ये देखने में बड़ा मनोरम लगता है. माना जाता है कि द्वापर युग में राजा वरुण ने स्थल आपको बनवाया था. प्राचीन काल में वरुण आर मंदिर से तालाब तक सुरंग थी राजा चंद्रगुप्त का परिवार सुरंग के अंदर से तालाब में जाकर स्नान व मंदिर में पूजा अर्चन करते थे. राजा ने पोखरा के साथ-साथ पांच कुंआ भी बनवाया था. सूर्य मंदिर के 12 मीटर दक्षिण दिशा में शिखर युक्त आधुनिक मंदिर है इसमें मूल स्थान से प्राप्त कई मूर्तियां व स्थापत्य के टुकड़ों को स्थानीय ग्रामीणों ने अपने स्तर पर संरक्षित करके रखा है. किले पर उमा महेश्वर गणेश अष्ट दिगपाल युद्ध दृश्य का फलक शिवलिंग सप्तमातृका चक्र पूर्ण राधा कृष्ण विष्णु वरुण एवं यज्ञ नागों की मूर्तियां अच्छी व खंडित अवस्था में है. कई अनजान देवी-देवताओं की मूर्तियां यहां पर अवस्थित है जो यहां की शोभा बढ़ा रहे हैं.
मंदिर में बना हुआ है शिलालेख
देव स्थल पर पत्थर से बने 7 फीट ऊंची व डेढ़ फीट चौड़े आठ स्तंभ है जिन पर शिलालेख भी हैं या शिलालेख किस लिपि या भाषा में है या किसी को पता नहीं है. सरकारी व पुरातत्व स्तर से इसे पढ़ने का कभी कारगर प्रयास नहीं किया गया. वर्ष 2012 में भारत सरकार के भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग पटना के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉक्टर ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण दिल्ली के निदेशक को तत्कालीन सांसद मीना सिंह के प्रतिवेदन पर नई दिल्ली के अधीक्षण पुरातत्वविद कीजिए के ध्यानाकर्षण में जिक्र किया था. इस मंदिर के लिए एस के मंजुल ने पर्यटन स्थल को पर्यटकों के लिए संग्रहित करने की अनुशंसा की थी. निरीक्षण करता सहायक पुरातत्व विभाग भागीरथी सहायक पुरातत्विक शंकर शर्मा सहायक पुरातत्वविद सचिन कुमार तिवारी व छायाकार ग्रेड का एक जिक्र करके लिखा है. कि मंदिर स्थल पर संपूर्ण देश का पहला 50 मीटर उत्तर दक्षिण और 36 मीटर पूरब पश्चिम में नपा गया.