Jivitputrika Vrat Katha 2022: जितिया व्रत करने वाली माताएं जरूर सुने इस कहानी, जानें क्या है कथा का महत्व
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar1353511

Jivitputrika Vrat Katha 2022: जितिया व्रत करने वाली माताएं जरूर सुने इस कहानी, जानें क्या है कथा का महत्व

Jivitputrika Vrat 2022: बिहार और झारखंड की माताएं इस वक्त एक खास व्रत की तैयारी में लगी हुई हैं. इस व्रत को जीवित्पुत्रिका, जितिया व्रत और ज्युतिया व्रत कहा जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया का व्रत मनाया जाता है.

Jivitputrika Vrat Katha 2022: जितिया व्रत करने वाली माताएं जरूर सुने इस कहानी, जानें क्या है कथा का महत्व

पटना: Jivitputrika Vrat 2022: बिहार और झारखंड की माताएं इस वक्त एक खास व्रत की तैयारी में लगी हुई हैं. इस व्रत को जीवित्पुत्रिका, जितिया व्रत और ज्युतिया व्रत कहा जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया का व्रत मनाया जाता है. इस बार  जितिया व्रत 18 सितंबर 2022, यानी रविवार को मनाया जा रहा है. इस दिन माताएं अपने बच्चों के लिए निर्जला उपवास रखती हैं. मान्यता है कि जितिया व्रत कथा सुने बिना अधूरा माना जाता है. ऐसे में हम आपको जितिया व्रत से जुड़े कथा को बताने जा रहे हैं. 

पहली कथा 
जितिया व्रत कथा को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. पौराणिक मान्यता की मानें तो, इस पर्व का महत्व महाभारत काल से भी जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के दौरान अश्वत्थामा अपने पिता गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडवों के शिविर में घुस गया था. जहां अश्वत्थामा ने शिविर में सो रहे पांच लोगों को पांडव समझकर मार दिया. लेकिन अश्वत्थामा ने गलती से द्रौपदी की पांच संतानों को मार दिया. जिसके बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बना लिया और उसके माथे से उसकी दिव्य मणि निकाल ली. अश्वत्थामा ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने का प्रयास किया. युद्ध के अंत में अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया. तब भगवान उत्तरा की अजन्मी संतान को भगवान श्रीकृष्ण ने फिर से जीवित कर दिया. जिसके बाद से इस दिन को जीवित्पुत्रिका कहलाया. तब से ही अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं जितिया का व्रत रखने लगी.  

कहानी चील और सियारिन की
जिउतिया व्रत की कथाओं में ये कहानी सबसे महत्वपूर्ण है. व्रत के दौरान महिलाएं यही कथा सुनाती भी हैं. इस कथा में एक नगर के किसी वीरान जगह पर पीपल का पेड़ था. इसी पेड़ पर एक चील और पेड़ के नीचे एक सियारिन रहती थी. एक बार दोनों ने कुछ महिलाओं को जिउतिया व्रत करते देख इस व्रत को रख लिया. जिस दिन ये व्रत था उसी दिन नगर में किसी की मृत्यु हो जाती है. उसका शव उसी वीरान स्थान पर लाया गया. सियारिन शव को देखकर व्रत की बात भूल गई और उसने मांस खा लिया. वहीं चील ने पूरे मन से व्रत किया और अगले दिन पारण किया. व्रत के प्रभाव से दोनों अगला जन्म कन्याओं अहिरावती और कपूरावती के रूप में हुआ. जहां स्त्री के रूप में जन्मी चील का राज्य की रानी बनी और छोटी बहन सियारिन कपूरावती उसी राजा के छोटे भाई की पत्नी बनी. चील ने सात बच्चों को जन्म दिया, लेकिन कपूरावती बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे. इस बात से जल-भुन कर उसने एक दिन कपूरावती ने सातों बच्चों के सिर कटवा दिए और घड़ों में बंद कर अपनी बहन के पास भिजवा दिया.

उस दिन बड़ी बहन जिऊतिया का व्रत कर रही थी. भगवान जीमूतवाहन को याद करके जब उसने सातों घड़ों पर जल छिड़क दिया तो उसके बेटे जिंदा हो गए. उधर कपूरावती इस बात को लेकर परेशान थी कि उसकी बहन के घर से रोना-पीटना अब तक नहीं सुनाई दिया. ऐसे में असलियत जानने वो खुद ही बहन के घर चली गई, लेकिन उसके सातों बेटों को जिंदा देखकर वह सन्न रह गई. इसी दौरान भगवान जीमूतवाहन भी वहां प्रकट हुए और उन्होंने दोनों बहनों को पूर्व जन्म की कथा सुनाई. कथा सुनने के बाद कपूरावती को बहुत पश्चाताप हुआ और दुख में अपनी जान गंवा बैठी. वहीं बड़ी बहन अहिरावती ने  भगवान जीमूतवाहन से वरदान मांगा कि जो भी माता आज के दिन आपकी पूजा करे उसकी संतान को कोई कष्ट न पहुंचे. तबसे जिउतिया व्रत की परंपरा चल पड़ी.

यह भी पढ़े- Jivitputrika Vrat 2022: 17 या 18 सितंबर किस दिन रखें जितिया व्रत, यहां दूर करें अपनी कन्फ्यूजन

Trending news