बदलती परिस्थितियों और जीवन की तमाम जद्दोजहद ने हर इंसान को परेशानियों से घेर लिया है. फिर चाहे वो आर्थिक तंगी हो या फिर जीवन की कम होती खुशियां. इन सब के चलते पूरे विश्व में आत्महत्याओं का ग्राफ बढ़ता जा रहा है.
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पटनाः बदलती परिस्थितियों और जीवन की तमाम जद्दोजहद ने हर इंसान को परेशानियों से घेर लिया है. फिर चाहे वो आर्थिक तंगी हो या फिर जीवन की कम होती खुशियां. इन सब के चलते पूरे विश्व में आत्महत्याओं का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. कम होती खुशियां और जीवन की जरूरतें इस कदर बढ़ चुकी हैं कि लोग बहुत अधिक दबाव महसूस करते हैं और डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. विश्व के कुछ ऐसे देश है जहां पर सबसे ज्यादा आत्महत्या होती है. विश्व में लगभग 8 लाख से 10 लाख लोग हर वर्ष आत्महत्या करते हैं.
इन दस देशों में सबसे ज्यादा लोग करते हैं आत्महत्या
तकरीबन तीन साल पहले यानी साल 2019 में एक रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में विश्व के दस ऐसे देशों को शामिल किया गया. जहां आत्महत्या की दर सबसे ज्यादा है. इस रिपोर्ट में बताया गया कि विश्व में दस ऐसे देश हैं. जहां हर रोज आत्महत्या करने वालों का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है. इस रिपोर्ट के मुताबिक इन देशों में एक लाख हर मिनट आत्महत्या होती है. इस लिस्ट में पहले नंबर पर लिसोथो को रखा गया है. यहां सुसाइड रेट 72.4 है. दूसरे नंबर पर गुयाना को रखा गया है. जहां आत्महत्या दर 40.3 प्रतिशत है. वहीं इस लिस्ट में तीसरे नंबर पर इस्वातिनी को रखा गया है और दक्षिण कोरिया को इस लिस्ट में चौथे नंबर पर रखा गया है. जहां आत्महत्या दर 29.4 प्रतिशत है. किरिबाती को इस लिस्ट में पांचवें नंबर पर रखा गया है. यहां आत्महत्या दर 28.3 है. माइक्रोनेशिया के संघीय राज्य को छठवें नंबर पर है और लिथुआनिया को सातवें नंबर रखा गया है. यहां आत्महत्या दर 28.2 जबकि लिथुआनिया में 26.1 दर्ज किया गया है. सूरीनाम में 25.4 है जो कि आठवें नंबर पर है, रूस को नौवें नंबर पर रखा गया है. यहां सुसाइड रेट 25.1 है और दसवें नंबर पर दक्षिण अफ्रीका है. जहां सुसाइड रेट 23.5 है.
बीते तीन सालों में क्यों बढ़ गई आत्महत्या
बीते तीन सालों की अगर हम बात करें तो इन वर्षों में आत्महत्या की दर बढ़ गई है. लेकिन ऐसे में जो सवाल उठ रहा है वो है आखिर तीन वर्षों में ऐसा क्या हुआ. जिसकी वजह से सुसाइड रेट में इस तरह बढ़ोतरी हो गई. सुसाइड रेट में इजाफा होने की वजह कोरोना भी है. जिसके चलते लोगों की जीवन शैली में बदलाव आया, नौकरियों के जाने से आर्थिक तंगी और विषमता आई और बीमारियों ने लोगों को बहुत ज्यादा डराया भी है. हर व्यक्ति धीरे-धीरे अवसाद का शिकार भी हुआ और जब इन समस्याओं से उसे निकलने का रास्ता नहीं सूझा तो उसने आत्महत्या को असान समझा. यही कारण है कि लोगों ने न सिर्फ अपना जीवन समाप्त किया बल्कि परिवार के सदस्यों को भी मौत को गले लगाने के लिए बाध्य किया.
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