Navratri Krishna Kali Katha: जानिए कौन हैं कृष्णकाली, क्या कृष्ण किसी देवी के अवतार हैं?
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Navratri Krishna Kali Katha: जानिए कौन हैं कृष्णकाली, क्या कृष्ण किसी देवी के अवतार हैं?

 Navratri Krishna Kali Katha:भगवान श्रीकृष्ण ने काली का रूप लेकर यमुना तट के केशीघाट पर राधाजी को दर्शन दिए थे, तभी से इस पवित्र स्थान को कृष्ण काली पीठ नाम दिया गया है. सती खंड से उत्पन्न पीठों में शामिल श्रीकृष्ण काली पीठ प्राचीन सिद्ध स्थली है. 

Navratri Krishna Kali Katha: जानिए कौन हैं कृष्णकाली, क्या कृष्ण किसी देवी के अवतार हैं?

पटनाः Navratri Kali Katha: नवरात्र के समय में माता के रूप-स्वरूप, महिमा आदि का वर्णन-बखान किया जाता है. लेकिन, माता के असल रूप का वर्णन कोई नहीं कर सकता, वह क्या हैं, क्या नहीं. इसकी वास्तविकता कोई नहीं जानता. जो कुछ भी थोड़ा बहुत कुछ जानता है, वह या तो बहुत कम है या फिर कुछ है ही नहीं. जैसे कि अगर ये बताया जाए कि कृष्ण ही काली के अवतार हैं तो सहसा आप भरोसा नहीं करेंगे. क्योंकि हम यही जानते हैं कि कृष्णावतार भगवान विष्णु का आठवां अवतार है. लेकिन, इस सत्य से परिचित कराता है वृंदावन का कृष्णकाली मंदिर. यहां भगवान कृष्ण की पूजा मां काली के ही रूप में की जाती है. 

यह है कृष्ण काली पीठ का सत्य
भगवान श्रीकृष्ण ने काली का रूप लेकर यमुना तट के केशीघाट पर राधाजी को दर्शन दिए थे, तभी से इस पवित्र स्थान को कृष्ण काली पीठ नाम दिया गया है. सती खंड से उत्पन्न पीठों में शामिल श्रीकृष्ण काली पीठ प्राचीन सिद्ध स्थली है. 500 साल पहले जब वृंदावन में प्रकाश हुआ, तो पीठ का प्रकाश भी चैतन्य महाप्रभु के अनुयायियों ने किया. कृष्ण काली स्त्रोत के अनुसार श्रीराधाजी को प्रसन्न करने के लिए भगवान कृष्ण ने काली का रूप लिया था. मां कृष्ण काली का पांच फीट लंबा दिव्य ग्रह विग्रह है, जिनका मुखारबिंद और चरण श्रीकृष्ण जैसे हैं. लंबी जिव्हा, काली में परिवर्तित हुए कृष्ण की चतुर्भुजा खड़ग बनी वंशी और मुंडमाला में तब्दील हुई बनमाला के दर्शन आज भी हो रहे हैं. 

यह है ब्रज की एक लोक कथा
ब्रज में एक लोक कथा प्रसिद्ध है. जब कृष्ण ब्रज से गए तो राधाजी का विवाह कहीं और हो गया. राधाजी के पति काली भक्त थे. ससुराल जाकर भी राधा निरंतर कृष्ण नाम का जाप करतीथीं. एक बार उनकी ननद ने उन्हें कृष्ण कृष्ण कहते सुना तो वो तुरंत जाकर अपने भाई को बुला लायी और कहती हैं कि देखो अपनी पत्नी को पता नहीं किसी कृष्ण का जप कर रही हैं ! जब राधा जी के पति अंदर आये तो उन्होंने ध्यान से सुना तो उन्हें सुनाई दिया की राधा जी महाकाली महाकाली के नाम का जप कर रही हैं. वह कृष्णा-कृष्णा, कृष्नम्मा कह रही हैं. 

इस तरह नाम पड़ा श्यामा काली
उन्होंने अपनी बहिन को डांटा कि आप मेरी पत्नी पर लाँछन क्यों लगा रही हैं? ये तो मेरी काली माँ का नाम जप रही हैं. ननद को आश्चर्य हुआ की ये कैसे हो गया? मैं गयी तब तो कृष्ण नाम था अब महाकाली कैसे हो गया..? तब राधारानी ने माँ काली से उनकी लाज बचने के लिए धन्यवाद किया क्योंकि असल में तो राधाजी भगवन कृष्ण का ही जप कर रही थी पर माँ काली की सहायता से वो दोनों कृष्ण नाम को काली समझ बैठे . बस उस दिन से माँ काली को भी भगवन कृष्ण का नाम मिल गया और उनको भी कृष्ण का ही स्वरूप माने जाने लगा. इसलिए आज बंगाल में जब भक्त मां काली के दर्शन करने जाते हैं तो जयकारे में कहते हैं- " जय माँ श्यामा काली.

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