रतन खत्री ने सबसे पहले जुआरियों का भरोसा जीता. मटके का नंबर भी वह खुद नहीं निकालता था, बल्कि वहां मौजूद पब्लिक से ही यह काम कराता था. हर खेल में ताश की नई गड्डी प्रयोग होती थी. यह भी सुनने को मिलता है कि चुने गए पत्तों में रतन खत्री खरोंच मार देता था, ताकि कोई हेराफेरी न कर सके.
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Satta Matka King Ratan Khatri: सट्टा मटका किंग रतन खत्री नई इबारत लिखने में भरोसा रखता था. तभी तो वह मटके से पर्ची निकालने का सिस्टम खत्म कर ताश के पत्तों से सट्टे का नंबर निकालने लगा. बताया जा रहा है कि खेल के नए तरीके में गड्डी से गुलाम, बादशाह और बेगम वाले पत्ते हटा दिए जाते थे. गड्डी में केवल इक्के से लेकर दहल तक होता था और कई बार हाथ में फेरने के बाद एक पत्ता निकाला जाता था. दोबारा शफल करने और तीनों बार शफल किए पत्तों के जोड़ में जो अधिक नंबर लाता था, वो विजयी होता था. रतन खत्री के बारे में कहा जाता था कि वइ बेईमानी के इस खेल में बहुत ईमानदारी बरतता था.
कहा जाता है कि रतन खत्री ने सबसे पहले जुआरियों का भरोसा जीता. मटके का नंबर भी वह खुद नहीं निकालता था, बल्कि वहां मौजूद पब्लिक से ही यह काम कराता था. हर खेल में ताश की नई गड्डी प्रयोग होती थी. यह भी सुनने को मिलता है कि चुने गए पत्तों में रतन खत्री खरोंच मार देता था, ताकि कोई हेराफेरी न कर सके. 60 के दशक में रतन खत्री ने अपना सिक्का इस गंदे धंधे में जमाया. तब चवन्नी की भी बाजी लगती थी और ढाई रुपये तक कमाया जा सकता था. उसका कारोबार इसलिए फैला, क्यों वह रियल टाइम सट्टा खेलता और खिलवाता था. धंधा गैरकानूनी था पर यह सरकार के टेलीफोन महकमे की मदद से चलता था.
रतन के बारे में जो जानकारी है, उसके अनुसार वह एक सिंधी था और बंटवारे के बाद पाकिस्तान के सिंध से मुंबई आया था. उस समय वह 15 साल का था. इस दौरान उसका संपर्क कल्याण भगत से हुआ. कल्याण कपास का सट्टा लगाता था. कपास का सट्टा न्ययाॅर्क कॉटन एक्सचेंज के भाव खुलने पर हफ्ते में 5 दिन ही होता था. कल्याण ने 1962 में वर्ली मटका चालू किया था. उसमें एक मटके में पर्चियां डालकर लकी नंबर निकाले जाते थे. जल्द ही रतन खत्री उसका मैनेजर बन गया और 2 मई 1964 को रतन खत्री ने रतन मटका चालू किया और जल्द ही सभी को पीछे छोड़ता चला गया.
आपातकाल में रतन खत्री जेल भी गया और 19 महीने तक अंदर रहा. बाहर निकलने पर उसने दोबारा अपना धंधा शुरू किया और 90 के दशक तक मटका किंग बना रहा. इस बीच वह कई दफा जेल गया पर उसका धंधा निरंतर आगे बढ़ता रहा. भारत में सट्टा 1867 से ही गैरकानूनी है, इसलिए यह धंधा शुरू करने वालों ने मुंबई के माफिया गैंगों की मदद ली. बताया जाता है कि 1970 के दशक के अंत तक माफिया की आमदनी सबसे ज्यादा मटके से हुआ करती थी. इस धंधे में कमाई देखकर माफिया गैंग ने कल्याण और रतन को इस धंधे से बेदखल कर दिया और खुद इससे मोटी कमाई करने लगे. 1990 के दशक में रतन खत्री ने तो इस धंधे से संन्यास ले लिया था.
पुलिस जिस सट्टे को कई दशकों में खत्म नहीं कर पाई, माफिया ने उसे एक झटके में कर दिया लेकिन माफिया खुद वह काम करने लगे. कल्याणजी के बेटे वसंत शाह की सनसनीखेज हत्या के बाद मुंबई में सट्टा पूरी तरह माफिया के हाथ चला गया.
रतन खत्री के बारे में कहा जाता है कि वह रंगीन मिजाज आदमी था. उसे फिल्म बनाने वालों से दोस्ती बनाने का नशा जैसे था. बताया जाता है कि 1975 में जब धर्मात्मा फिल्म बनी थी, जिसमें प्रेमनाथ के चरित्र पर रतन खत्री के जीवन की झलक देखने को मिलती है. खत्री ने फिल्म की स्क्रिप्ट लिखने में बहुत मदद की थी. बाद में रतन खत्री ने खुद रंगीला रतन फिल्म बनाई, जिसमें लीड रोल में ऋषि कपूर और परवीन बॉबी थे.
88 साल की उम्र में 2020 में रतन खत्री की मौत हो गई. जीवन के अंतिम दिनों में रतन खत्री मुंबई रेस कोर्स का चक्कर लगाता रहता था और घोड़ों पर दांव लगाता था. इसलिए कहा जाता है कि चोर चोरी से जा सकता है हेराफेरी से नहीं.
(Disclaimer: भारत में सट्टा खेलना गैरकानूनी है और Zee Media ऐसी किसी भी गतिविधि को प्रोत्साहित नहीं करता.)