तीसरे पड़ाव पर भंगस या फिर पर्दे के पीछे का रहस्य आना बाकी! ओडिशा से खाली हाथ लौटे नीतीश कुमार
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तीसरे पड़ाव पर भंगस या फिर पर्दे के पीछे का रहस्य आना बाकी! ओडिशा से खाली हाथ लौटे नीतीश कुमार

नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि उनका दौरा राजनीतिक नहीं था और वे अपने पुराने मित्र नवीन पटनायक से गपशप करने भुवनेश्वर आए थे. नवीन पटनायक ने भी कहा कि इस मुलाकात में विपक्षी एकता पर कोई चर्चा नहीं हुई.

तीसरे पड़ाव पर भंगस या फिर पर्दे के पीछे का रहस्य आना बाकी! ओडिशा से खाली हाथ लौटे नीतीश कुमार

पटना: पिछले दो दिन से बिहार में महागठबंधन के नेता नीतीश कुमार के 9 मई को ओडिशा और 11 मई को मुंबई की यात्रा का ढोल पीट रहे थे. खुद जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह भी पत्रकारों को सलाह दे रहे थे कि वे इंतजार करें और देखें कि इन दोनों यात्राओं में क्या होता है. उनका तो यहां तक कहना था कि सब साथ आएंगे, आप देखते रहिए. नीतीश कुमार ओडिशा गए जरूर और वहां के सीएम नवीन पटनायक के साथ लंच भी किया पर शायद जायके और राजनीति की तूकबंदी मिली नहीं या फिर बात नहीं बनी या फिर पर्दे के पीछे कुछ ऐसा हुआ, जिसका पता नहीं चल रहा. बाद में नीतीश कुमार ने पत्रकारों से जो कहा उससे तो यही लगता है कि नीतीश कुमार के नवीन पटनायक खट्टे अंगूर साबित हुए. तभी तो नीतीश कुमार ने कहा कि उनकी यात्रा राजनीतिक नहीं थी और विपक्षी एकता के बारे में नवीन पटनायक से बात नहीं हुई.

अब उनकी यात्रा राजनीतिक नहीं थी तो एक दिन पहले ललन सिंह क्यों इतने बड़े-बड़े दावे कर रहे थे. आप ही सोचिए, इस समय नीतीश कुमार किसी नेता से मिलें और विपक्षी एकता या गैर बीजेपी गठबंधन की बात न हो, ऐसा हो सकता है भला. नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि उनका दौरा राजनीतिक नहीं था और वे अपने पुराने मित्र नवीन पटनायक से गपशप करने भुवनेश्वर आए थे. नवीन पटनायक ने भी कहा कि इस मुलाकात में विपक्षी एकता पर कोई चर्चा नहीं हुई. नीतीश कुमार अकेले नहीं गए थे, बल्कि पार्टी अध्यक्ष ललन सिंह और संजय झा भी उनके साथ थे. खैर, हो सकता है कि नवीन पटनायक ने विपक्षी एकता की छतरी में आने से इनकार कर दिया हो. अब नीतीश कुमार और जेडीयू का सारा फोकस 11 मई को मुंबई में शरद पवार और उद्धव ठाकरे पर टिक गया है. 

नीतीश कुमार ने कहा, नवीन पटनायक के पिताजी से उनके पुराने व्यक्तिगत संबंध थे और नवीन बाबू से भी अच्छे रिश्ते हैं. कोरोना महामारी के चलते मुलाकात नहीं हो रही थी. बीच में एक बार आए भी तो मीटिंग नहीं हुई. हमारी इनसे मुलाकात की इच्छा थी, इसलिए यहां आ गए. बहुत सारे टूरिस्ट ओडिशा आते रहते हैं, अब मैं भी आ गया. नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि हमलोगों के बीच कोई भी राजनीतिक बातचीत नहीं हुई और हमारे संबंध इतने प्रगाढ़ हैं कि ये सब सोचने की जरूरत ही नहीं है. इसलिए अन्य लोगों के साथ हमारी तुलना मत कीजिए. 

नीतीश कुमार और नवीन पटनायक की बातों का निहितार्थ निकाला जाए तो इतना तो तय है कि दोनों नेताओं में विपक्षी एकता पर बात नहीं बनी. दोनों मिले और राजनीतिक बातचीत न हुई हो, इस पर विश्वास करने में कठिनाई हो रही है. दिल्ली में कांग्रेस का आशीर्वाद लेकर लौटे नीतीश कुमार पटना से बाहर ममता बनर्जी और अखिलेश यादव से मिल चुके हैं और दोनों ने सकारात्मक रुख दिखाया है. ममता बनर्जी ने तो पटना में विपक्षी दलों की आॅल पार्टी मीटिंग बुलाने की सलाह दे डाली, जिसे कर्नाटक चुनाव परिणाम आने के बाद अमलीजामा पहनाया जा सकता है. इस तरह ममता और अखिलेश के बाद नीतीश कुमार की विपक्षी एकता के नाम पर यह तीसरी मुलाकात थी,  जो शायद सफल नहीं रही या उसके पीछे का रहस्य आना अभी बाकी है.

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