पनीरसेल्वम, बाबूलाल गौड़ और जीतनराम मांझी, चंपई सोरेन किसके रास्ते पर चलना पसंद करेंगे?
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पनीरसेल्वम, बाबूलाल गौड़ और जीतनराम मांझी, चंपई सोरेन किसके रास्ते पर चलना पसंद करेंगे?

Jharkhand Politics: झारखंड एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता से गुजरता दिख रहा है. चंपई सोरेन की जगह हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं. ऐसे में चंपई सोरेन किस रास्ते पर चलेंगे, यह देखने वाली बात होगी.   

बाबूलाल गौड़, चंपई सोरेन, जीतनराम मांझी और पनीरसेल्वम

पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के जेल से बाहर आने के बाद झारखंड में एक बार फिर से नेतृत्व परिवर्तन हो रहा है. चंपई सोरेन को हटाकर हेमंत सोरेन फिर से झारखंड के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. बताया जा रहा है कि चंपई सोरेन विधानसभा चुनाव सिर पर होने के कारण नेतृत्व परिवर्तन के मूड में नहीं थे, लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा के सभी विधायकों और गठबंधन के सहयोगी दलों की एकराय के सामने उनकी बात नहीं सुनी गई. अब सबसे बड़ा सवाल यह कि चंपई सोरेन के सामने क्या रास्ते हैं, जिन पर वे चलना पसंद करेंगे. क्या वे हेमंत सोरेन की सरकार में फिर से मंत्री बनेंगे? क्या सरकार के बदले पार्टी में उनको वरीयता दी जाएगी? अगर ये दोनों विकल्प उनको सूट नहीं करता तो फिर क्या नाराजगी को आगे बढ़ाते हुए चंपई सोरेन जीतनराम मांझी वाला रास्ता ​अख्तियार करेंगे? इस रास्ते में भी उनके सामने दो विकल्प हो सकते हैं. पहला, वे अपनी पार्टी खड़ी करें या फिर पाला बदल लें. अब यह कोल्हान के टागइर पर डिपेंड करता है कि वे किस रास्ते पर चलते हैं.

पनीरसेल्वम ने निभाई जे. जयललिता से वफादारी

पनीरसेल्वम तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री और एआईएडीएमके प्रमुख दिवंगत जे. जयललिता के खास विश्वासपात्र थे. जयललिता के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की सूरत में 2 बार पनीरसेल्वम को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला था. सबसे पहले 2001 में पनीरसेल्वम मुख्यमंत्री बने थे और उसके बाद 29 सितंबर 2014 को उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी. कहा जाता है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद भी पनीरसेल्वम ने जे. जयललिता के प्रति ऐसी निष्ठा दिखाई कि वो जिस चैंबर में बैठती थीं, पनीरसेल्वम उसमें कभी बैठे ही नहीं. जयललिता की मृत्यु के बाद भी पनीरसेल्वम ही सर्वसम्मति से मुख्यमंत्री बने थे.

मुख्यमंत्री के बाद फिर से मंत्री बने थे बाबूलाल गौड़ 

2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मध्य प्रदेश में उमा भारती के नेतृत्व में बड़ी जीत हासिल की थी. उमा भारती मुख्यमंत्री बनी थीं, लेकिन एक साल बाद 2004 में कर्नाटक के हुबली शहर में सांप्रदायिक तनाव भड़काने के आरोप में उमा भारती के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी हो गया था. उमा भारती की गिरफ्तारी की आशंका थी, लिहाजा भाजपा आलाकमान ने उमा भारती से पद छोड़ने को कहा और उसके बाद बाबूलाल गौड़ को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था. बाबूलाल गौड़ 23 अगस्त 2004 से 29 नवंबर 2005 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को सुशोभित करते रहे. आलाकमान ने बाद में शिवराज सिंह चौहान पर भरोसा जताया और बाबूलाल गौड़, शिवराज की सरकार में मंत्री बन गए थे.

नीतीश कुमार की नैतिकता से चमकी थी जीतनराम मांझी की किस्मत 

2014 का लोकसभा चुनाव जेडीयू ने अपने बूते लड़ा था और उसमें पार्टी को जबर्दस्त शिकस्त झेलनी पड़ी थी. नीतीश कुमार ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और 20 मई 2014 को जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी. नीतीश कुमार को लगा था कि जीतनराम मांझी यस मैन हो सकते हैं, लेकिन कुछ समय के बाद नीतीश कुमार की आंखों में जीतनराम मांझी की कुर्सी खटकने लगी थी. दूरियां बढ़ने लगी थीं. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहते जीतनराम मांझी को मांझी समाज की ताकत का पता चल गया था. 20 फरवरी 2015 को जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था और उसके बाद उन्होंने हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के नाम से अपना दल बना लिया था.

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