Bihar Politics: बिहार की राजनीति के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक अध्याय हैं. उनको लेकर की गईं भविष्यवाणियां फेल होती रही हैं, जिसका मतलब यह होता है कि उन्हें आप जज नहीं कर सकते.
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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नाहक ही नेता नहीं बने हैं. वर्षों की तपस्या, धैर्य, समर्पण, त्याग करने की उनकी क्षमता ने उन्हें एक बेहतर राजनीतिज्ञ बना दिया है, जिसके लिए वे जाने जाएंगे. राजनीति खतरों को भांपना और समय से पहले उससे सतर्क होने की कलाबाजी भी नीतीश कुमार से सीखने वाली है. जॉर्ज फर्नांडीज जैसे दिग्गज की छतरी तले भी नीतीश कुमार अपनी लौ जलाते रहे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान में एक हादसा होने पर नैतिकता दिखाते हुए मंत्री पद से त्यागपत्र देने की क्षमता रखते हैं. इसलिए समय के साथ नीतीश कुमार की राजनीति निखरती चली गई और जनता ने उन्हें बिहार की राजनीति का अपराजेय योद्धा बना दिया है. बिहार की राजनीति अगर घूमती है तो नीतीश कुमार घुमाते हैं और यदि नहीं घूमती है तो भी उसके केंद्र में नीतीश कुमार ही होते हैं. एक शे'अर अर्ज किया है, कौन पढ़ पाया है नीतीश कुमार के मन की, जो पढ़ता है अपने हिसाब से बखान करता है.
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अब आप ही बताइए. अच्छा खासा भाजपा के साथ जेडीयू का गठबंधन चल रहा था. फिर भी नीतीश कुमार ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बहाने डिनर कैंसिल कर दिया था और गुजरात सरकार को बाढ़ राहत के नाम पर दी गई राशि को लौटा दिया था. नीतीश कुमार संदेश देने की राजनीति करते हैं और मुसलमानों को संदेश देने के लिए इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता था.
अच्छा भला भाजपा से गठबंधन की दो तिहाई बहुमत वाली सरकार चला रहे थे नीतीश कुमार लेकिन नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया गया तो उन्होंने एकला चलो की नीति अपनाई. यह एक ऐसी नीति रही है, जो उनको आलोचना के दायरे में लाती है, क्योंकि इस घटना और इससे बाद की जुड़ी हुई घटनाओं ने नीतीश कुमार की साख पर सवाल खड़े किए.
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लोकसभा चुनाव, 2014 में वे अपनी हार पचा नहीं पाए और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन जब वे भाजपा की ओर जाने लगे तो फिर लालू प्रसाद यादव को साथ लेकर 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और एनडीए को कड़ी पटखनी दी थी. हालांकि, 2017 में वे अपनी विश्वसनीयता को कम करते हुए एक बार फिर एनडीए के साथ आ गए थे.
2020 का विधानसभा चुनाव भाजपा और जेडीयू ने साथ में लड़ा पर 2022 के जुलाई महीने तक में वे भाजपा से उकता गए और तेजस्वी के साथ मिलकर महागठबंधन की सरकार बना ली. समय ने करवट ली और 2024 के पहले महीने के अंत तक 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का रिकॉर्ड बना डाला.
नीतीश कुमार को लेकर राजनीतिज्ञों की भविष्यवाणियां भी अकसर गलत साबित हुई हैं. जब लोकसभा चुनाव 2024 में सारे राजनीतिज्ञ और विशेष जेडीयू के कम सीट आने की बात कह रहे थे, तब नीतीश कुमार ने भाजपा के बराबर 12 सीटें लाकर सभी की बोलती बंद कर दी थी और पूरे महागठबंधन को केवल 10 पर समेट दिया था.
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अब नीतीश कुमार के फिर से पलटने के कयास लगाए जा रहे हैं. अगर नीतीश कुमार खतरे से खेलने और एडवेंचर के लिए पलटासन करने का मन बना रहे हैं तब तो कोई बात नहीं, अन्यथा अभी उनके पास पलटासन करने का कोई बहाना नहीं नजर आता. केवल अमित शाह का यह बयान कि बिहार के मुख्यमंत्री पद पर कौन बैठेगा, इसका फैसला समय आने पर होगा, यह पलटने का बहाना नहीं हो सकता. फिर भी मैं यह कहता हूं कि नीतीश कुमार वो किताब ही नहीं हैं, जिन्हें पढ़ लिया जाए. अगर पढ़ ही लिया तो फिर वो किताब कैसी?