Jharkhand: नारायण सेवा आश्रम को महालय पर मिली नवजात, कुछ यूं हरे राम पांडेय ने किया स्वागत
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Jharkhand: नारायण सेवा आश्रम को महालय पर मिली नवजात, कुछ यूं हरे राम पांडेय ने किया स्वागत

झारखंड के देवघर जिले में बेसहारा बच्चों के लिए संचालित होने वाले एक आश्रम में रहने वालों की नींद नवरात्रि के पहले दिन रविवार तड़के एक नन्ही बच्ची के रोने की आवाज के साथ खुली, जिसे किसी ने आश्रम के द्वार पर छोड़ दिया था.

 (फाइल फोटो)

देवघर: झारखंड के देवघर जिले में बेसहारा बच्चों के लिए संचालित होने वाले एक आश्रम में रहने वालों की नींद नवरात्रि के पहले दिन रविवार तड़के एक नन्ही बच्ची के रोने की आवाज के साथ खुली, जिसे किसी ने आश्रम के द्वार पर छोड़ दिया था. साल 2009 में नारायण सेवा आश्रम की स्थापना करने वाले हरे राम पांडेय (67) का मानना है कि यह नन्ही बच्ची देवी दुर्गा का आशीर्वाद है. आश्रम में इस बच्ची का 35वीं दुर्गा के तौर पर स्वागत किया गया, जहां पहले से 34 अन्य लड़कियां रह रही हैं. इनमें से ज्यादातर लड़कियों को उनके माता-पिता ने छोड़ दिया है. 

 

हरे राम पांडेय ने कहा, 'हम कलश स्थापना कर रहे हैं और हमने इस बच्ची का नाम महागौरी रखा है, क्योंकि वह नवरात्र के अवसर पर आश्रम को मिली है. भगवान ही हमारे पास दुर्गा और लक्ष्मी भेजते हैं.' उन्होंने बताया कि 19 साल पहले (2004 के) दिसंबर की एक सर्द रात उनके जीवन में अहम साबित हुई. पांडेय ने कहा, 'मैंने देखा कि एक शिशु झाड़ियों में पड़ी हुई थी और उसके शरीर पर चींटियां रेंग रही थी. इससे मैं विचलित हो गया. मैं उसे अस्पताल ले गया, जहां वह मौत से जूझ रही थी. वह पहली बेटी थी जिसे मैं घर लाया था और मेरे परिवार के सदस्यों ने उसका स्वागत किया.' 

नारायण सेवा आश्रम में अब 35 लड़कियां और एक लड़का रहता है. पांडेय सोमवार को लोकप्रिय क्विज़ शो 'कौन बनेगा करोड़पति' में आएंगे. उन्होंने कहा, "ठीक एक साल बाद 2005 में, मुझे एक और बच्ची मिली, जिसकी गर्भनाल भी जुड़ी हुई थी... मैं उसे भी घर ले आया. मंदिर नगरी देवघर में लोग अक्सर अपनी बच्चियों को यहां छोड़ देते हैं.' उसके बाद पांडेय ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उन्होंने अपनी पत्नी, बहू और उसकी मां की मदद से आश्रम की स्थापना की. 

इसमें रहने वाले सभी बच्चियों-बच्चे के भोजन, आवास और शिक्षा का ख्याल रखा जाता है. पांडेय बिहार के एक अस्पताल में कंपाउंडर के रूप में काम किया करते थे. उन्होंने अपनी पैतृक जमीन बेचकर आश्रम के लिए धन का प्रबंधन किया. उनके आश्रम की कई लड़कियां प्रतियोगी परीक्षाओं में भी बैठ चुकी हैं. उन्होंने कहा, 'स्कूल पिता के नाम के बिना बच्चियों को दाखिला देने के लिए तैयार नहीं थे. इसलिए स्कूल रिकॉर्ड में मैं उनका पिता बन गया. मेरी पहली बेटी तापसी अब उच्च-माध्यमिक की पढ़ाई करती है और दूसरी बेटी खुशी डॉक्टर बनने का सपना देख रही है... मैंने अपनी चार बेटियों की शादी कर दी है और वे अपने परिवार के साथ खुशी से रह रही हैं.'' 

जिला प्रशासन या अन्य की ओर से मदद मिलने के बारे में पूछे जाने पर, पांडेय ने कहा कि लगभग 10,000 दानकर्ता चावल और दाल दान करके उनके उद्देश्य में साथ निभा रहे हैं. उन्होंने कहा, "प्रशासन ने अभी तक कोई मदद नहीं की है... लेकिन, किसी तरह हम करीब डेढ़ लाख रुपये का मासिक खर्च पूरा कर लेते हैं." 

(इनपुट भाषा के साथ) 

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