हिमालय से पुरानी पहाड़ी है झारखंड में मौजूद, फिर क्यों नहीं हो पाया इसका विकास? अंग्रेजों की योजना भी हो गई थी फेल
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हिमालय से पुरानी पहाड़ी है झारखंड में मौजूद, फिर क्यों नहीं हो पाया इसका विकास? अंग्रेजों की योजना भी हो गई थी फेल

झारखंड की राजधानी यूं तो प्राकृतिक सुंदरता की खान है. इस रांची के चारों ओर मानो प्रकृति ने दोनों हाथों से अपनी सुंदरता बिखेरी हो और इसे सजाया है.

(फाइल फोटो)

Ranchi hill Temple: झारखंड की राजधानी यूं तो प्राकृतिक सुंदरता की खान है. इस रांची के चारों ओर मानो प्रकृति ने दोनों हाथों से अपनी सुंदरता बिखेरी हो और इसे सजाया है. बिहार से जब जब झारखंड अलग हुआ उससे पहले बिहार सरकार ने इसके प्राकृतिक संपदा को संजोने की कोशिश नहीं की वहीं जब झारखंड अलग हो गया तो भी यहां उतना विकास नहीं हुआ जितना होना चाहिए था. यहां रांची में स्थित रांची पहाड़ी के बारे में तो भू-वैज्ञानिकों के दावे को सुनकर आपको खुद पर ही भरोसा नहीं होगा. इन वैज्ञानिकों का दावा है कि रांची की पहाड़ी हिमालय से भी ज्यादा पुरानी है. 

बताते हैं कि एक अंग्रेज अफसर ने इस ऐतिहासिक पहाड़ी के चारों ओर तलाब बनाने की योजना बनाई थी लेकिन कुछ कारणों से इसके तीन ओर तलाब नहीं हन पाया और केवल एक तरफ ही यह तालाब रह गया. यह तालाब बड़ा तालाब नहीं बन पाया. बता दें कि यहां एक अंग्रेज ऑफिसर थे कर्नल ओन्सले जिन्होंने यह योजना बनाई की इस पहाड़ी के चारों तरफ तालाब का निर्माण कराया जाएगा. लेकिन इस अंग्रेज अधिकारी की योजना सफल नहीं हो पाई. 

अगर इस पहाड़ी के चारों तरफ तालाब का विस्तार उस समय हो गया होता तो रांची की पहाड़ी पर स्थित शिव मंदिर का नजारा आज अद्भुत होता. इस पहाड़ी के एक तरफ तो बड़े तालाब के निर्माण की योजना को सफल हो गयी. तब इस तालाब के निर्माण में अंग्रेज अधिकारी ने कैदियों की मदद ली थी, लेकिन आज 180 साल बीत जाने के बाद भी जो तालाब बना हुआ है वह शहर का सबसे बड़ा तालाब है. 

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1842 में इस बड़े तालाब का निर्माण कराने में अंग्रेज अधिकारी कर्नल ओन्सले सफल रहा था. इसी तालाब को बाद में झील के रूप में ख्याति मिली. इस तालाब के निर्माण के बारे में कहा जाता है कि अंग्रेजी शासन के अधिकारी कैदी को सुबह भोजन के बाद यहां झील निर्माण के लिए लाते थे और फिर शाम को काम खत्म होने के बाद वापस ले जाते थे. फिर कैदियों की कड़ी मेहनत के बाद कुछ ही महीनों में यह तालाब निर्मित हुआ. इसी तालाब से आसपास के लोगों की पानी की आवश्यकता भी पूरी होती थी. इस तालाब पर पालकोट राजा का बनवाया गया पक्का घाट आज भी है. यहां श्राद्ध की विधियां संपन्न की जाती हैं. 

180 साल पहले जब इस बड़ा तालाब का निर्माण कराने की योजना पर विचार हुआ तो उस समय रांची तो किसी के जेहन में ही नहीं था ‘रिची पहाड़ी’ के नाम से इसे जाना जाता था और धीरे-धीरे इसी से इस शहर का नाम रांची हो गया. भू-वैज्ञानिकों की मानें तो कुछ मानते हैं कि इसकी उम्र जहां 3500 मिलियन वर्ष है वहीं इस रिची पहाड़ी को लेकर कुछ का मानना है कि 4500 मिलियन वर्ष यह पुराना है. यहीं पहाड़ी के ऊपर बने 26 एकड़ में फैले पहाड़ी मंदिर भी कई हजार साल पुराना है जिसके शीर्ष पर नाग देवता का वास है.  

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