Bihar Liqour Ban: शराबबंदी को तो तस्करों ने तरह तरह के हथकंडे अपनाकर बदनाम कर दिया है और पुलिस भी इसमें कम भागीदार नहीं है. फिर भी यह खुद पर है कि साढ़े 8 साल की शराबबंदी को सफल माना जाए या फिर असफल.
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8 साल और 5 महीने की शराबबंदी... मतलब शराबबंदी की बाल्यावस्था. साढ़े 8 साल होती ही कितनी उमर है. अभी तो किशोरावस्था, जवानी की अवस्था, अधेड़ावस्था और वृद्धावस्था आना बाकी है. पता नहीं, शराबबंदी अपना बुढ़ापा देख पाएगी या नहीं. क्या पता कि तरुणाई ही न देख पाए और हम यह कोई बड़ी बात नहीं कह रहे हैं. बिहार की राजनीति में अब शराबबंदी को समाप्त करने की चर्चा तो कम से कम हो ही रही है. खैर, हम अभी शराबबंदी के बालकाल में ही रहते हैं, जिसमें जहरीली शराब से एक की मौत हो जाती है और 2 की दुनिया ब्लैक एंड व्हाइट में तब्दील हो गई है. अगर बालकाल में ऐसा हो रहा है तो तरुणाई और बुढ़ापे में शराबबंदी क्या क्या गुल खिलाएगी.
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बालकाल में ही शराबबंदी ने क्या क्या दिन नहीं दिखाए. नदी की पानी के नीचे रेत की परतों के नीचे शराब का जखीरा बरामद होना, मधुमक्खी के छत्ते से शराब की तस्करी, एंबुलेंस से तस्करी और न जाने कैसी कैसी तस्करी. खबरें रोज आती हैं. लोग चटकारे लेकर पढ़ते हैं, मजे लेते हैं, दो चार देसी भाषा में दिस दैट बोलते हैं और फिर अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं. अब देखो न, बिहार के वैशाली जिले में जहरीली शराब का कहर देखने को मिला है. अब आप सोच रहे हैं कि बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू हैं तो जहरीली शराब कैसे मिली और लोगों ने पीया कैसे? अरे भाई! बिहार में सब मिलता है. नहीं मिलती है तो एक ही चीज और वो है शराबबंदी. अब आप ही बताओ, जिस राज्य में शराब की होम डिलीवरी कराई जा रही हो, वहां किस बात की शराबबंदी भाई. काहे की शराबबंदी.
अरे भाई, जिस परिवार का बच्चा मरा है, उस परिवार की आंखें अभी नम हैं. समय उनका भी घाव या जख्म भर देगा. कहा जाता है कि गुरुवार देर रात तीन लोगों ने पहले दारू की पार्टी की, मुर्गा तोड़ा और फिर घर आकर सो गए. सोए भी ऐसे कि उठने का नाम न लें. तीनों को अस्पताल ले जाया गया, जिनमें से एक की मौत हो गई, जबकि बाकी 2 लोगों ने आंख से दिखाई न देने की शिकायत की. दोनों का आईसीयू में इलाज चल रहा है. परिवारवाले शराब की उन बूंदों को कोस रहे हैं, जिनके चलते उनके लाडलों की ऐसी हालत हो गई.
शराबबंदी लागू होने के बाद नीतीश कुमार ने कहा था, जो पीएगा सो मरेगा. हालांकि 17 अप्रैल 2023 को नीतीश कुमार का दिल पसीज गया और उन्होंने शराबबंदी से मरने वाले के परिजनों को मुआवजा देने का ऐलान किया. उन्होंने कहा था कि दुख इस बात का है कि लोग जहरीली शराब से मर रहे हैं. इतने प्रयासों के बाद भी लोग पी रहे हैं और कुछ लोगों की मौत से भी लोग सबक नहीं सीख रहे हैं. मृतकों के लिए 4-4 लाख मुआवजे का ऐलान करते हुए उन्होंने कहा था, ये पैसे मुख्यमंत्री राहत कोष से दिए जाएंगे.
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मुआवजा बाद की बात है. एक परिवार की दुनिया उजड़ गई है और दो की ब्लैक एंड व्हाइट हो गई है. अब तय करो कि शराबबंदी फायदेमंद है या फिर नुकसानदेह. नुकसान दोनों में है. फायदे की बात करना यहां बेमानी है, क्योंकि दोनों ही तरफ से शरीर आपका झेलेगा. मौत हो जाने की स्थिति में तो कोई विकल्प नहीं है पर अगर और किसी प्रकार से नुकसान होता है तो फिर आपको कम नुकसान और अधिक नुकसान में से एक को चुनना होगा. जाहिर है कि आप कम नुकसान की ओर झुकेंगे.
पर नशा, लत, व्यसन, तलब ये सब किसी तराजू में तौलकर न तो बेचे जा सकते हैं और न ही खरीदे जा सकते हैं. जब आदमी नशा करता है तो वह कम या अधिक नुकसान की सोचकर नहीं करता. वह तो केवल खुद को वैक्यूम में लेकर जाने और वहां से ले आने की सोचता है. इस आने और जाने के बीच का रोमांच वह जीना चाहता है. आवाज भले ही लटपटाती रहे, भर्राती रहे, दिमाग काम करना बंद कर दे, ऐसे निर्वात में विचरण करने का मन करता है. ऐसे में नफा या नुकसान और महंगा या फिर सस्ता की बात यहां बेमानी हो जाती है.