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Boroline interesting facts: स्किन से संबंधित किसी भी समस्य के लिए बोरोलिन एक चमत्कारी इलाज है. यह हम नहीं बल्कि सालों से इस एंटीसेप्टिक क्रीम का इस्तेमाल कर रहे इसके कस्टमर्स का मानना है. डार्क हरे रंग के ट्यूब में बिकने वाली बोरोलिन एंटीसेप्टिक क्रीम पर लोगों का 90 साल का भरोसा अब भी कायम है. कटने, फटने, जलने, सूजन से लेकर सर्दी के मौसम में ड्राई स्किन की समस्या का लगभग एक सदी से एक ही जवाब बोरोलिन रहा है! अतीत के पन्नों में झांके तो बोरोलिन क्रीम भारत के अच्छे से बुरे दौर की गवाह रही है. आइये आपको बताते हैं इस क्रीम से जुड़े कई रोचक तथ्य...
90 साल पहले बोरोलीन का जन्म
पहले आपको बताते हैं बोरोलिन के शुरुआत की कहानी. 90 साल पहले गौर मोहन दत्ता ने इस क्रीम की शुरुआत की थी. तब भारत पर ब्रिटिश शासन था और बंगाल विभाजित हो चुका था. बंगाल में बोरोलिन न केवल एक भरोसेमंद स्वदेशी एंटीसेप्टिक क्रीम के रूप में उभरी, बल्कि देश की आत्मनिर्भरता का प्रतीक भी बनी.
अब भी सबकी भरोसेमंद
आज तक यह स्वदेशी प्रोडक्ट्स में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किए जाने वाला और भरोसेमंद प्रोडक्ट बना हुआ है. 1929 में, दत्ता की जीडी फार्मास्युटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड ने इस क्रीम का निर्माण शुरू किया और इसे एक हरे रंग की ट्यूब में पैक किया. इसे न केवल रोज इस्तेमाल की जाने वाली स्किनकेयर और मेडिकल प्रोडक्ट के रूप में देखा गया, बल्कि विदेशी प्रोडक्ट्स के खिलाफ एक खुले विरोध के रूप में भी देखा गया. तब के समय में भारतीय, अंग्रेजों द्वारा निर्मित प्रोडक्ट्स पर निर्भर हुआ करते थे. अंग्रेज अपने प्रोडक्ट ऊंची कीमत पर बेचते थे.
बोरोलीन को सबने सराहा
चौंकाने वाली बात यह है कि यह क्रीम समय उलटफेर के साथ कहीं आगे निकल गई और स्किनकेयर प्रोडक्ट की रेस में आजाद भारत में भी एक भरोसेमंद स्वदेशी प्रोडक्ट बनी हुई है. अपनी ड्राई या पिंपल वाली स्किन पर इस क्रीम का इस्तेमाल करने वाले युवाओं से लेकर मां और दादी-नानी ने भी हमेशा इस क्रीम को घर के सदस्य की तरह माना है.
इसे क्या विशेष बनाता है?
पश्चिम बंगाल में जन्मी, 'एंटीसेप्टिक आयुर्वेदिक क्रीम' अनिवार्य रूप से बोरिक एसिड (टंकन आंवला), जिंक ऑक्साइड (जसद भस्म), इत्र, पैराफिन और ओलियम (आवश्यक तेलों के लिए लैटिन शब्द) से बनी है. इसकी खासियत यह भी है कि पहले की ब्रिटिश कंपनियां और न ही आज की मल्टीनेशनल कंपनियां इसकी लोकप्रियता को हरा नहीं पाई हैं. इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि भारतीय मॉडल पर स्थापित कंपनी जीडी फार्मास्युटिकल्स पिछले 90 वर्षों में सरकार का एक रुपये का कर्जदार नहीं रही है!
1,00,000 ट्यूब मुफ्त में बांटे?
इससे जुड़ा एक और रोचक इतिहास है जो इसे बेहद खास बना देता है. कहा जाता है कि जब 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी मिली, तो कंपनी ने बोरोलीन के लगभग 1,00,000 ट्यूब मुफ्त में बांटे थे.
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