जिनकी जमीन से 50 साल से निकल रहा हीरा, वो क्यों रो रहे बदहाली के आंसू
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जिनकी जमीन से 50 साल से निकल रहा हीरा, वो क्यों रो रहे बदहाली के आंसू

Diamond Mines: ज़ी न्यूज़ (ZEE NEWS) की टीम दिल्ली से तकरीबन 800 किलोमीटर दूर पन्ना जिले में पहुंची जहां पर बीते पांच दशक से भी ज्यादा समय से हीरे का खनन हो रहा है. हमारी एक्सक्लूसिव ग्राउंड रिपोर्ट यहां के लोगों की कहानी बयां करती है. 

जिनकी जमीन से 50 साल से निकल रहा हीरा, वो क्यों रो रहे बदहाली के आंसू

नई दिल्ली: जिनकी जमीन हीरा उगल रही है, वो लोग मजदूरी के लिए दिल्ली और जम्मू जैसी जगहों पर पलायन कर रहे हैं. पिछले 50 वर्षों से इनकी जमीन से हीरा निकल रहा है, लेकिन फिर भी ये लोग बदहाली में जीने को मजबूर हैं. आज हम आपके लिए पन्ना के हीरा खदान से ज़ी न्यूज़ की एक्सक्लूसिव ग्राउंड रिपोर्ट लेकर आए हैं, जो यहां के लोगों की कहानी बयां करती है. 

5 दशक से भी ज्यादा समय से हो रहा हीरे का खनन 

ज़ी न्यूज़ (ZEE NEWS) की टीम दिल्ली से तकरीबन 800 किलोमीटर दूर पन्ना जिले में पहुंची जहां पर बीते पांच दशक से भी ज्यादा समय से हीरे का खनन हो रहा है. 

यहां बता दें कि देश में इस बात पर बहस चल रही है कि मध्य प्रदेश के छतरपुर में हीरे के लिए जंगल को काटा जाए या न काटा जाए. ये जिला पन्ना जिले के बगल में है. छतरपुर जिले के बक्सवाहा के जंगलों को महज इसलिए काटा जाना है कि वहां जमीन में हीरा दबा है.

गरीबी और बुनियादी सुविधाओं का आभाव 

पन्ना जिले की शुरुआत में हीरा खदान की तरफ ज़ी न्यूज़ की टीम जैसे-जैसे आगे बढ़ रही थी हीरे की चमक से उलट गरीबी और बुनियादी सुविधाओं का एहसास कराने वाली तस्वीरें सामने आईं.

बुंदेलखंड के घने जंगलों के बीच हीरे की खदान है. रास्ते में आगे बढ़े तो हमारी मुलाकात एक महिला से हुई जो साईकिल पर पानी ले जा रही थी.

55 साल की महिला साइकिल के जरिए अपने घर के लिए पीने का पानी 1 किलोमीटर दूर से हर दिन लाती है. कुछ और आगे बढ़े तो हमें एक बुजुर्ग महिला मिली जिन्होंने एक और दिल दुखाने वाली या कहें तो प्रशासन के मुंह पर तमाचा मारने वाली तस्वीर उजागर की.

यहां से कुछ ही किलोमीटर दूरी पर बीते 50 साल से ज्यादा समय से हीरा निकल रहा है, लेकिन आसपास के गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. पानी की टंकी खराब है और पाइप सड़ा हुआ है. बुजुर्ग महिला हमें आगे लेकर बढ़ी और बताया कि कैसे गांव में पानी की टंकी और पाइप लाइन महज नाम के लिए डाली गई है, न टंकी में कभी पानी आया और न पाइपलाइन गांव वालों तक पहुंची.

पानी की भारी किल्लत

गांव की महिलाओं पानी दूर-दूर से साइकिल के जरिए खेतों में भरकर लाना पड़ता है. जरुआपुर गांव की महिलाएं हर दिन ऐसे ही पानी के लिए साइकिल के जरिए जाती हैं. पन्ना जिले में जहां हीरे की खदान है, उस जगह को मझगवां कहते हैं और यह सड़क मार्ग से 17 किलोमीटर अंदर है. रास्ते में चारों तरफ अलग-अलग गांव हैं जो नजदीक है हैं और जिनके आसपास के जंगलों से लगातार कई सालों से हीरा निकल रहा है.

जरुआपुर गांव से हम आगे बढ़े और सड़क के बगल में ही दूसरे गांव में पहुंचे. हमें आश्चर्य इस बात का था कि जिस इलाके से लगातार 50 साल से ज्यादा समय से हीरा निकलता रहा है वह इलाका इतना बदहाल कैसे हैं. 

डायमंड को बेचने के बाद जो पैसा आता है...

एनएमडीसी खनन मंत्रालय के तहत आने वाली सरकारी कंपनी है जो 1968 से पन्ना जिले के मसूदा में हीरा खनन का काम कर रही है हमने मैनेजमेंट से बात की और उनसे जानने की कोशिश की कि आखिर वह इस इलाके से जो डायमंड खुदाई कर ले जाते हैं डायमंड को बेचने के बाद जो पैसा आता है, उस पैसे का इस्तेमाल होता कहां है, लेकिन मैनेजमेंट का कोई भी अधिकारी कैमरे पर बोलने को तैयार नहीं हुआ.

हमें जानकारी दी गई कि हीरा खनन फिलहाल बंद है क्योंकि, आगे पन्ना टाइगर नेशनल पार्क के हिस्से में भी हीरे का खनन करना है, लिहाजा मामला कोर्ट में है और खुदाई रुकी हुई. सुरक्षाकर्मी तो ज़ी न्यूज़ की टीम को शूट करने से भी रोकने लगे.

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आपको यह भी बता दें की छतरपुर जिले की बकस्वाहा में हीरा खनन के लिए 215000 से ज्यादा हरे भरे पेड़ पौधे वाला जंगल काटा जाना है. पन्ना जिले का मजदूर जहां बीते 50 साल से ज्यादा समय से हीरा खनन हो रहा है, वह भी घने जंगलों के बीचों-बीच ही है.

मझगवां हीरा खदान के बाहर जो लोग मिले हमें, अपने गांव की तरफ ले गए बदहाली की सूरत दिखाने. टूटी पानी की पाइप लाइन की हालत और मकानों की जर्जर तस्वीर से आप बेहतर अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस इलाके की जमीन हीरा उगल रही है. असल में उस इलाके के लोगों को तस्वीर और तकदीर कितनी बदली है

मजदूरों के बगल में ही हिनौता गांव लगा हुआ है और वहां के लोगों की समस्याओं को सुनो तो ऐसा लगता है की बुनियादी सुविधाओं के लिए यह लोग कैसे जूझ रहे हैं

 हिनौता गांव की महिलाओं और पुरुषों का कहना है कि जिस राशन पर निर्भर हैं, वो राशन नहीं मिलता, पानी के लिए भटकना पड़ता है उस पर रोजगार या मजदूरी भी नहीं मिलती.

गांव के आसपास सिवाय हीरा खनन के कोई दूसरा काम नहीं, लेकिन ये काम तो आम आदमी को मिलता नहीं, वो एनएमडीसी कर रही है. उसने इलाके में कहने को फ्री बस चलाने और पानी उपलब्ध कराने की कुछ कोशिश जरूर की है, लेकिन 50 साल में ये ऊंट के मुंह में जीरे के समान है.

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क्या हीरा खनन करने वाली कंपनी बदलेगी तस्वीर ? 

हम हीरा खदान के आसपास के चारों तरफ से गांव की ये रिपोर्ट आपके लिए इसलिए लेकर आए है क्योंकि, आपको यह सोचना और समझना चाहिए क्या बक्सवाहा के जंगलों को काट कर अगर वहां के लोगों की रोजी-रोटी का जरिया छीना गया तो क्या हीरा खनन करने वाली कंपनी वहां की तस्वीर बदलेगी? अगर आप इसकी तुलना पन्ना के हीरा खदान से करेंगे, तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी.

इसके बाद हम हीरे की खदान से कुछ किलोमीटर कैमासिन गांव पहुंचे. घर के बाहर महिला बैठी थी हमने उनसे बात की. सब्जी बेचने का काम करने वाली महिला इलाके की सूरत की एक पूरी तस्वीर बयां कर रही है.

आपने सुना होगा दूर के ढोल सुहावने होते हैं हीरे की खदान के लिए प्रसिद्ध मझगवां और उसके आसपास के गांव भले ही दूर-दराज तक डायमंड के लिए चर्चा में रहे हों और यहां से पांच दशक से ज्यादा समय से डायमंड लगातार देश और दुनिया में जाता भी रहा है, लेकिन असल में डायमंड जिनकी जमीन में है, उसका फायदा उनको आज तक नहीं मिला.

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