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नई दिल्ली: क्या कोरोना वायरस (Coronavirus) से संक्रमित होने के बाद क्या कोई गर्भवती महिला सिजेरियन सर्जरी करवा सकती है. इस मुद्दे पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बेहद अहम सलाह जारी की है. मंत्रालय ने कहा कि कोरोना संक्रमित गर्भवती महिलाएं रिकवर होने पर सिजेरियन सर्जरी से भी डिलीवरी करवा सकती हैं.
दिल्ली के एम्स अस्पताल (Delhi AIIMS) ने अपने यहां दिसंबर 2021 से जनवरी 2022 के बीच हुए ऑपरेशन का आकलन करके एक रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट के मुताबिक, स्टडी की अवधि के दौरान ऐसी 53 सर्जरी हुई, जिन्हें कोविड (Coronavirus) हो चुका था. इनमें से 32 मरीज को लोकल एनेस्थीसिया दिया गया. इन 32 केसेस में से 26 केस सिजेरियन सेक्शन के थे.
सभी केस में सर्जरी कामयाब रही और ऑपरेशन के बाद कोई समस्या नहीं आई. सभी मरीज रिकवर होकर घर चले गए. वहीं 21 मरीज ऐसे थे, जिन्हें जनरल एनेस्थीसिया दिया गया यानी उनका ऑपरेशन पूरी बेहोशी के दौरान किया गया. इन 21 मरीजों में से 4 मरीजों की मौत हो गई. यह सभी बेहद गंभीर मरीज थे. इनकी मौत की वजह कोरोना वायरस (Coronavirus) नहीं था.
इस स्टडी के आधार पर सरकार ने सलाह दी है कि कोरोना संक्रमण से ठीक होने के बाद किसी भी जरूरी सर्जरी को टालने की कोई जरूरत नहीं है. पहले हुई स्टडी के आधार पर माना जाता था कि कोरोना इन्फेक्शन से रिकवर होने के बाद 8 हफ्ते तक सर्जरी नहीं करानी चाहिए. कई अस्पताल भी इसी नियम के आधार पर मरीजों की सर्जरी कर रहे थे. हालांकि अब एम्स की नई स्टडी बता रही है कि कोरोना (Coronavirus) से रिकवर होने के बाद सर्जरी कराई जा सकती है और उससे कोई खतरा नहीं है.
Indian council for medical research ICMR ने देश के 37 अस्पतालों के डाटा का भी अध्ययन किया है. ये अध्ययन दो टाइम में किया गया. पहले चरण में डेल्टा वेरिए़ंट ज्यादा फैला हुआ था और दूसरे चरण यानि जनवरी में ओमिक्रॉन वेरिएंट ज्यादा फैला था. दूसरे चरण में शिकार होने वाले ज़्यादातर लोग 40-45 वर्ष के थे. वहीं औसत उम्र 44 साल के बीच थी. इनमें से तकरीबन आधे लोग यानी 46% को कोई ना कोई दूसरी बीमारी यानी कोमोरबिडिटी थी.
स्टडी के मुताबिक पहले चरण में शिकार होने वाले लोगों की औसत उम्र 55 वर्ष थी और उनमें भी आधे से ज्यादा यानी 66% लोगों को कोई ना कोई बीमारी थी. हालांकि दूसरे चरण में कोरोना (Coronavirus) के इलाज की बेहतर जानकारी होने की वजह से कम दवाओं के इस्तेमाल से मरीज ठीक हो गए.
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दोनों ही चरणों में कुल मिलाकर यह पाया गया कि जिन लोगों को वैक्सीन लगी हुई थी, उनमें 10% मौतें हुई. जबकि जिन लोगों में वैक्सीन नहीं लगी थी, उनमें से 22% की मौत हो गई. आईसीएमआर के मुताबिक इस स्टडी से एक बार फिर वैक्सीन की अहमियत समझ में आती है.
हालांकि स्टडी में परेशान करने वाली एक बात यह भी सामने आई कि भारत के युवा आबादी के आधे से ज्यादा लोगों को कोई ना कोई बीमारी लग चुकी है यानी उन्हें कोई ना कोई कोमोरबिडिटी है.
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