चीन के रॉकेट का मलबा भारत में कैसे गिरा? जानिए क्या है विमान के मलबे का पूरा सच
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चीन के रॉकेट का मलबा भारत में कैसे गिरा? जानिए क्या है विमान के मलबे का पूरा सच

DNA Analysis: गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के आसमान में नजर आने वाले विमान का सच क्या है? इस मामले में अमेरिका ने तो सूचना दे दी लेकिन अब तक चीन इस मुद्दे पर चुप्पी बनाए हुए है.

फोटो साभार: वीडियोग्रैब

नई दिल्ली: कल्पना कीजिए अगर चीन का कोई विमान भारत के हवाई क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद किसी रिहायशी इलाके में दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है तो क्या होगा? ये घटना भारत की सुरक्षा और सम्प्रभुता के लिए सीधी चुनौती होगी और सम्भव है कि इसके बाद दोनों देशों के बीच गतिरोध इस कदर बढ़ जाए कि युद्ध की नौबत आ जाए? यानी इस तरह की घटना दो देशों के बीच युद्ध भी करा सकती है और चिंताजनक बात ये है कि 2 अप्रैल की शाम को भारत के कुछ हिस्सों में ऐसा ही हुआ. बस फर्क इतना है कि इस घटना में विमान की जगह चीन के एक स्पेस रॉकेट का मलबा था, जिसे गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में लोगों ने अलग-अलग समय पर आसमान में देखा.

  1. चीन के स्पेस रॉकेट का मलबा भारत में 
  2. ऐसी घटनाएं बन सकती हैं बड़े युद्ध का कारण
  3. चीन ने क्यों साध रखी है इस मुद्दे पर चुप्पी?
  4.  

उल्का पिंड नहीं चीन के रॉकेट का था मलबा

स्पेस रॉकेट के इस मलबे में आग लगी हुई थी इसलिए शुरुआत में लोगों को लगा कि वहां कोई विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया है. इसके अलावा मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में कुछ लोगों द्वारा स्थानीय पुलिस को ऐसी सूचना दी गई कि ये मलबा उल्का पिंड का हो सकता है. उल्का पिंड पत्थर जैसे उन टुकड़ों को कहा जाता है जो अरबों करोड़ों वर्षों से ब्रह्मांड में तैर रहे हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि सूर्य का चक्कर लगाते समय हर साल कई हजार टन वजन के उल्का पिंड पृथ्वी के वायु मंडल में प्रवेश कर जाते हैं. क्योंकि पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति इन उल्का पिंडों को खींचती है. इसलिए इनकी गति दो लाख किलोमीटर प्रति घंटा से भी ज्यादा हो जाती है और इतनी तेज गति की वजह से ही ये उल्का पिंड वायु मंडल में प्रवेश करते ही जल जाते हैं और छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर जाते हैं. लेकिन जो उल्का पिंड आकार में बड़े होते हैं, उनके कुछ हिस्से जलने के बाद पृथ्वी पर गिर जाते हैं. इस मामले में भी ऐसी ही आशंका जताई गई थी. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इससे इनकार किया है. और Indian Space Research Organisation यानी ISRO की तरफ से कहा गया है कि ये मलबा, चीन के एक स्पेस रॉकेट का हो सकता है, जो फरवरी 2021 को लॉन्च हुआ था.

चीन ने नहीं दी कोई जानकारी

अमेरिका के Space Command स्टेशन ने इस बात की जानकारी एक अप्रैल को ही दे दी थी कि चीन के एक निष्क्रिय स्पेस रॉकेट ने पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश किया है. हालांकि चीन ने अब तक इस मामले में कोई जानकारी नहीं दी है और शायद वो ऐसा करेगा भी नहीं. क्योंकि अगर चीन ये मान लेता है कि उसके रॉकेट का मलबा भारत में आकर गिरा है तो इसके लिए भारत United Nations में जा सकता है.

हो सकती थी बड़ी दुर्घटना

इस रॉकेट का मलबा महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में स्थित एक गांव के पास आकर गिरा. लेकिन अगर ये किसी घर पर गिरता तो बड़ी दुर्घटना भी हो सकती थी और इस दुर्घटना में लोग भी मर सकते थे. इसलिए ये मामला बहुत बड़ा और गम्भीर है. इस मलबे में स्थानीय पुलिस को फुटबॉल के आकार के कुछ हिस्से मिले हैं. इसके अलावा एक अवशेष का आकार रिंग जैसा है और इसमें छेद हो रखे हैं, जिससे ऐसा लगता है कि ये हिस्से किसी रॉकेट के ही है. इसलिए अब बड़ा मुद्दा ये है कि अगर इस मलबे का वजन ज्यादा होता और ये किसी शहर में किसी बड़ी इमारत से टकरा जाता तो क्या होता? क्योंकि जब आसमान से ऐसा कोई मलबा पृथ्वी पर आता है तो उस पर किसी भी तकनीक का नियंत्रण नहीं होता और उसकी दिशा को बदला भी नहीं जा सकता, इसलिए ऐसी घटनाओं में कुछ भी हो सकता है. इससे निपटने की रणनीति किसी के पास भी नहीं है. वर्ष 1978 में सोवियत संघ के एक अंतरिक्ष यान का मलबा कनाडा में आकर गिरा था, जिसके बाद कनाडा और सोवियत संघ में तनाव काफी बढ़ गया था और कनाडा ने तब इस घटना के लिए 6 Million Dollar का हर्जाना मांगा था, जो आज के हिसाब से भारतीय रुपये में लगभग 45 करोड़ रुपये होता है. कहने का मतलब ये है कि पृथ्वी के वायु मंडल में स्पेस रॉकेट और अंतरिक्ष यान का जो कचरा है, उसने दुनियाभर के देशों के सामने एक नई चुनौती पैदा कर दी है.

इतनी तेजी से बढ़ रहे Satellites

वर्ष 1967 तक यानी 54 साल पहले तक पृथ्वी के वायु मंडल में 50 से भी कम Satellites मौजूद थे. लेकिन आज अंतरिक्ष में Active Satellites की संख्या 30 हजार के पार हो चुकी है. इसके अलावा 3 हजार Satellites ऐसे हैं, जिन्होंने काम करना बंद कर दिया है और इन Satellites के टुकड़े और दूसरा कचरा अंतरिक्ष में तैर रहा है. ये कचरा भविष्य में और ज्यादा बढ़ेगा. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया की चार बड़ी प्राइवेट Space Companies, Space-x, Jeff Bezos की Blue Origin, OneWeb और StarNet केवल इसी दशक में 65 हजार नए Satellites अंतरिक्ष में लॉन्च करेंगी. जबकि इसी दौरान पूरी दुनिया में कुल मिला कर एक से दो लाख Satellites अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे.

घटनाएं बन सकती हैं युद्ध का कारण

अब सोचिए, जब पृथ्वी के वायु मंडल में लाखों Satellites तैर रहे होंगे तो क्या होगा. ऐसी स्थिति में दो या उससे ज्यादा Satellites के बीच टक्कर का खतरा बढ़ जाएगा. अगर हम पृथ्वी की बात करें तो यहां सबकुछ निर्धारित है. किस देश के पास कितना भूखंड है, उसकी सीमा कहां तक है, कितने समुद्र पर किसका हक होना चाहिए, नदियों और उनके पानी का बंटवारा कैसे होगा, आसमान में Air Space की सीमा कैसे तय होगी, ये सब निर्धारित है. इसके लिए दुनिया में नियम और कानून भी है और अंतर्राष्ट्रीय अदालतें और संस्थाएं भी हैं. लेकिन अंतरिक्ष को लेकर अब तक कुछ तय नहीं हो पाया है.

वर्ष 1967 में संयुक्त राष्ट्र ने कुछ देशों के साथ मिल कर Outer Space Treaty को लागू किया था, जो ये कहती है कि कोई भी देश अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों से दुनिया को नुकसान नहीं पहुंचाए. लेकिन सच ये है कि ये Treaty आज इतिहास से जुड़ी एक जानकारी बनकर रह गई है. इसका कोई भी पालन नहीं कर सकता. इसलिए जिस तरह पृथ्वी के वायु मंडल में स्पेस रॉकेट और सैटेलाइट का कचरा बढ़ रहा है और पृथ्वी पर इससे दुर्घटनाओं की आंशका बढ़ रही है. इस सबने एक नए संकट को जन्म दिया है और वो संकट ये है कि ये घटनाएं भविष्य में युद्ध का भी कारण बन सकती हैं.

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