DNA ANALYSIS: पुराने Phones को Slow करने की 'पॉलिसी'
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DNA ANALYSIS: पुराने Phones को Slow करने की 'पॉलिसी'

मोबाइल फोन के धीरे धीरे अपने आप खराब हो जाने की शिकायत से परेशान लोगों के लिए ये खबर चिंता करने वाली हो सकती है. अमेरिका में जोरदार जांच शुरू होने के बाद अब एप्पल ने अपनी गलती स्वीकार कर ली है. जबकि दूसरी कंपनियों की जांच जारी है.

DNA ANALYSIS: पुराने Phones को Slow करने की 'पॉलिसी'

नई दिल्ली: आप जिस कंपनी का मोबाइल फोन इस्तेमाल कर रहे हैं. हो सकता है कि उसे बनाने वाली कंपनी जानबूझकर कर आपके मोबाइल फोन की Performance को धीमा कर रही हो.  ऐसा ही आरोप मशहूर मोबाइल फोन Brand Iphone का निर्माण करने वाली कंपनी Apple पर लगा है. इस बात का खुलासा वर्ष 2017 में हुआ था. जब मोबाइल फोन के Processor की स्पीड मापने वाली एक Software कंपनी ने ये दावा किया था कि जैसे जैसे i Phone की बैटरी पुरानी होती जाती हैं. वैसे वैसे iPHONE Slow होने लगते हैं और इसकी बैटरी जल्दी डिस्चार्ज होने लगती है. कुछ iphone तो अचानक बंद भी हो जाते हैं. 

अमेरिका के राज्यों ने एप्पल के खिलाफ जांच शुरू की
अब अमेरिका के कई राज्यों ने इसे ग्राहकों के साथ धोखधड़ी मानते हुए iphone की निर्माता Apple के ख़िलाफ़ जांच शुरू कर दी है.  इस जांच का नेतृत्व अमेरिका का Arizona राज्य कर रहा है. कुछ राज्य इस मामले की जांच अक्टूबर 2018 से ही कर रहे हैं. पिछले हफ़्ते जारी हुए एक दस्तावेज़ के मुताबिक अब इस जांच में अमेरिका का राज्य Texas भी शामिल हो चुका है ।

एप्पल ने मानी बैटरी स्लो करने की बात, मुआवजा देने की घोषणा
हालांकि Apple कंपनी पुरानी बैटरी वाले iphones के Slow हो जाने की बात स्वीकार कर चुकी है. वह इस मामले में माफ़ी मांगने के बाद 3 हज़ार 746 करोड़ रुपये का मुआवज़ा देने के लिए भी तैयार है. Apple ने वादा किया है जिन ग्राहकों के पास iphone 6 से लेकर Iphone 7 Plus सीरीज़ तक के मोबाइल फोन थे  और जो 21 दिसंबर 2017 से पहले IOS 10.2 और IOS 11.2 पर चल रहे थे. उन ग्राहकों को कंपनी 25 Dollars यानी 1800 रुपये मुआवजे के तौर पर देगी. इसके अलावा फ्रांस की सरकार भी इस मामले में Apple पर 157 करोड़ रुपये का जुर्माना लगा चुकी है. 

एप्पल के अलावा दूसरी कंपनियों पर भी धोखाधड़ी के आरोप
ग्राहकों को धोखे में रखने के आरोप में Apple के अलावा अमेरिका की कई दूसरी तकनीकी कंपनियां आलोचना का सामना कर रही हैं. हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस में हुई एक सुनवाई के दौरान Apple, Google, Amazon और Facebook जैसी कंपनियों पर कई गंभीर आरोप लगे. ज़्यादातर मामलों में इन कंपनियों के CEOs ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया. ऐसे में अलग अलग राज्यों द्वारा Apple की इस धोखाधड़ी की जांच उसके लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है. 

अमेरिका के सांसद भी कर रहे हैं कंपनियों पर सुनवाई
अमेरिका के सांसदों ने सुनवाई पूरी होने के बाद कहा कि इन कंपनियों का बाज़ार पर एकाधिकार है और ये एकाधिकार समाप्त होना चाहिए.  इसके लिए चाहे इन बड़ी कंपनियों को अलग अलग छोटी कंपनियों में तोड़ना ही क्यों ना पड़े.  ये सुझाव दिया गया कि इन कंपनियों के कामकाज पर नज़र रखने के लिए नए नियम बनाए जाने चाहिए और इन कंपनियों की जवाबदेही तय होनी चाहिए.

अमेरिकी सांसदों ने कंपनियों का एकाधिकार खत्म करने की मांग की
सुनवाई कर रहे सांसदों ने 130 साल पुरानी एक घटना का भी उदाहरण दिया. कहा कि 1890 में अमेरिका में दो बड़े कारोबारी हुआ करते थे.  जिनके नाम Andrew Carnigie और John D Rock-feller थे.  Andrew Carnigie  की एक बहुत बड़ी स्टील कंपनी थी और Rock-feller की एक तेल कंपनी थी. अमेरिका में स्टील और तेल के कारोबार पर इन्हीं दोनों कंपनियों का एकाधिकार था. इस एकाधिकार को समाप्त करने के लिए 1890 में अमेरिका में एक Anti Trust Act लाया गया.  जिसका मकसद इस एकाधिकार को खत्म करना था. लेकिन आज 130 वर्षों के बाद कई बड़ी कंपनियों ने फिर से दुनिया भर के बाजारों पर एक छत्र राज स्थापित कर लिया है. अब इस एकाधिकार को खत्म करने के लिए वहां पर 130 वर्ष पुराने इस कानून की फिर से व्याख्या की जा रही है. 

दुनिया में 100 करोड़ लोग एप्पल के उत्पाद इस्तेमाल करते हैं
आज पूरी दुनिया में करीब 100 करोड़ लोग Apple कंपनी द्वारा बनाए गए Products का इस्तेमाल करते हैं. इसी तरह Amazon के Products और सेवाएं इस्तेमाल करने वालों की संख्या भी करोड़ों में है.  Google के Products और सेवाएं इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या करीब 500 करोड़ है.  Facebook के Users की संख्या 260 करोड़ है. अगर ये सभी कंपनियां कोई धोखाधड़ी करती हैं तो उसका असर दुनिया की लगभग पूरी आबादी पर पड़ता है.  इन कंपनियों की कुल Market Value पांच ट्रिलियन डॉलर्स यानी 375 लाख करोड़ रुपये है. 

कंपनियों का गलत व्यवहार लोगों के जीवन पर डाल रहा है प्रभाव
ये संख्या भारत की कुल अर्थव्यवस्था से भी दोगुनी है. अगर ये चारों कंपनियां मिलकर अपना एक देश बना लें तो अर्थव्यवस्था के मामले ये देश अमेरिका, चीन और जापान के बाद चौथे नंबर पर होंगी. इन कंपनियों पर लगे आरोप बहुत गंभीर हैं और इनके द्वारा किया जाने वाला व्यवहार लोगों के जीवन पर सीधा असर डालता है. 

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