UP: 2017 लड़के हारे, 2022 लड़कियों के सहारे; प्रियंका गांधी बिना सेना के कैसे जीतेंगी?
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UP: 2017 लड़के हारे, 2022 लड़कियों के सहारे; प्रियंका गांधी बिना सेना के कैसे जीतेंगी?

हमारे देश में महिला सशक्तिकरण के नाम पर इस तरह की राजनीति कोई नई नहीं है. महिलाओं को चुनाव में पार्टियों की ओर से टिकट तो दिए जाते हैं, लेकिन ये भी सच है कि ये टिकट उन्हीं महिलाओं को मिलता है, जिनके परिवार के सदस्य सक्रिय राजनीति में होते हैं. 

UP: 2017 लड़के हारे, 2022 लड़कियों के सहारे; प्रियंका गांधी बिना सेना के कैसे जीतेंगी?

पॉडकास्ट सुनें:

  1. यूपी में प्रियंका गांधी का बड़ा ऐलान
  2. महिलाओं पर दांव खेलेगी कांग्रेस
  3. कांग्रेस का स्लोगन बनाम असलियत

नई दिल्ली: आपने अक्सर देखा होगा कि जब किसी नई फिल्म की शूटिंग शरू होती है तो आजकल उसके प्रचार के लिए सबसे पहले एक पोस्टर जारी किया जाता है. बिल्कुल उसी अंदाज में आज कांग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश चुनाव में अपने प्रचार की शुरुआत एक पोस्टर के जरिए की और इस पोस्टर में लिखे स्लोगन में ही उनकी रणनीति छिपी हुई है. पोस्टर पर लिखा है लड़की हूं..लड़ सकती हूं. आपको याद होगा वर्ष 2017 जब पिछली बार यूपी चुनाव हुए थे, तब कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने मिल कर चुनाव लड़ा था और इन दोनों पार्टियों का स्लोगन था, ''अपने यूपी के लड़के''.

कांग्रेस को यूपी की लड़की से उम्मीद!

ये लड़के थे राहुल गांधी और अखिलेश यादव. लेकिन उस समय यूपी के लोगों ने यूपी के इन लड़कों को उत्तर प्रदेश की 403 सीटों में से 15 प्रतिशत सीटें भी नहीं दीं. तब कांग्रेस 105 सीटों पर लड़ी थी और 7 सीटों पर जीती थी जबकि समाजवादी पार्टी 298 सीटों पर लड़ी थी और 47 सीटें ही जीत पाई थी. बीजेपी ने 312 सीटें जीत कर प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई थी. हालांकि कांग्रेस को उम्मीद है कि जो वोट पिछली बार के चुनाव में लड़के नहीं दिला पाए, वो यूपी की लड़की दिला देगी. इसी कोशिश में आज 49 वर्षीय प्रियंका गांधी वाड्रा ने लखनऊ में एक बहुत बड़ा ऐलान किया.

उन्होंने कहा कि अगले साल होने वाले यूपी चुनाव में कांग्रेस 40 प्रतिशत सीटों पर महिलाओं को टिकट देगी. यानी कुल 403 सीटों में से 161 सीटों पर कांग्रेस की तरफ से महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ेंगी. अब तक किसी भी राज्य के चुनाव में ऐसा नहीं हुआ, जब एक पार्टी ने लगभग आधी सीटों पर ही महिला उम्मीदवारों को टिकट दे दिया हो. इसलिए प्रियंका गांधी की इस कोशिश की हम प्रशंसा करते हैं और हम मानते हैं कि वो कांग्रेस को मजबूत करने के लिए काफी मेहनत कर रही हैं. लेकिन यहां चुनाव के साथ वास्तविकता को भी समझना जरूरी है और इसे आप उस तस्वीर से समझ सकते हैं जो प्रियंका गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान खींची गई.

स्लोगन और असलियत में अंतर

इस फोटो में प्रियंका गांधी के साथ मंच पर कुल 10 लोग थे. इनमें से सात तो केवल पुरुष थे जबकि प्रियंका गांधी को मिला कर केवल 3 ही महिलाएं थीं. ये हमारे देश की राजनीति की असली तस्वीर है. प्रियंका गांधी ने चुनावी कैंपेन के लिए स्लोगन तो अच्छा दिया है लेकिन वास्तविकता आप इस तस्वीर से समझ सकते हैं.

सोचिए जो पार्टी लड़कियों और महिलाओं के नाम पर अपना चुनावी कैंपेन लॉन्च कर रही है, उसमें भी सबसे ज्यादा भागीदारी पुरुषों की ही है. हालांकि यहां मुद्दा सिर्फ ये तस्वीर नहीं है. प्रियंका गांधी के साथ मंच पर जो दो महिला नेता मौजूद भी थीं, उनके परिवार की जड़ें भी राजनीति में रही हैं. इनमें एक का नाम है सुप्रिया श्रीनेत, जिनके पिता हर्षवर्धन सिंह उत्तर प्रदेश की महाराजगंज लोक सभा सीट से दो बार कांग्रेस के सांसद रहे हैं और दूसरी नेता हैं आराधना मोना मिश्रा, जो कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी की बेटी हैं.

महिलाओं के पास फैसले लेने का अधिकार नहीं

हमारे देश में महिला सशक्तिकरण के नाम पर इस तरह की राजनीति कोई नई नहीं है. महिलाओं को चुनाव में पार्टियों की ओर से टिकट तो दिए जाते हैं, लेकिन ये भी सच है कि ये टिकट उन्हीं महिलाओं को मिलता है, जिनके परिवार के सदस्य सक्रिय राजनीति में होते हैं. उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के पंचायती राज चुनाव में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं और पिछले चुनाव में वहां 3 लाख महिलाएं जीत कर आई थीं. लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 77 प्रतिशत महिला प्रतिनिधि ये मानती हैं कि उनके हाथ में फैसले लेने के अधिकार नहीं हैं. फैसले या तो उनके पति या उनके परिवार के दूसरे लोग लेते हैं. यानी इस तरह से महिलाएं राजनीति में आ भी जाएं तो ज्यादा कोई बड़ा बदलाव नहीं होता.

इसलिए प्रियंका गांधी ने कोशिश तो अच्छी की है, लेकिन ये सुनिश्चित करना भी जरूरी है कि टिकट सिर्फ राजनीतिक परिवारों की महिलाओं को ही ना मिले. हालांकि आज जब प्रियंका गांधी से इस पर सवाल हुआ तो उन्होंने कहा कि वो इसे गलत नहीं मानती. उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस की महिला उम्मीदवार ऐसे परिवारों से होंगी, जो पहले से राजनीति में हैं. यानी हो सकता है कि जिस पुरुष नेता को किसी सीट से टिकट मिलना था, अब उसकी जगह उसकी पत्नी या बेटी को टिकट मिल जाए और हमें लगता है कि ऐसा होने से राजनीति में महिलाओं की मजबूत दावेदारी को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता.

यूपी चुनाव में गेम चेंजर महिलाएं

उत्तर प्रदेश के चुनाव में महिलाएं किसी भी पार्टी के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती हैं. राज्य में कुल 14 करोड़ 12 लाख वोटर्स हैं, जिनमें से 6 करोड़ 44 लाख महिला वोटर्स हैं जबकि 7 करोड़ 68 लाख पुरुष वोटर्स हैं. पिछली चुनाव में जब बीजेपी को साढ़े तीन करोड़ वोट मिले थे, तब उसने 403 में से 312 सीटें थीं. अब मान लीजिए अगर साढ़े 6 करोड़ महिला वोटों में से आधे भी किसी एक पार्टी को मिल जाए तो वो आसानी से चुनाव जीत लेगी और शायद यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं को टिकट देने का ट्रेंड तेजी से बदल रहा है. 2017 के यूपी चुनाव में पहली बार वहां सबसे ज्यादा 38 महिला उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी, जिनमें से दो महिला विधायक कांग्रेस से जीती थीं.

हालांकि प्रियंका गांधी को उम्मीद है कि ये टेली इस बार सुधर जाएगी. इसके अलावा प्रियंका गांधी ने यूपी चुनाव लड़ने की सम्भावनाओं से भी इनकार नहीं किया है. प्रियंका गांधी के इस चुनावी कैंपेन पर आज बीजेपी से लोक सभा सांसद रीता बहुगुणा जोशी की भी प्रतिक्रिया आई, जो पहले कांग्रेस पार्टी में हुआ करती थीं. उन्होंने आरोप लगाया कि जब वो कांग्रेस में थीं, तब भी इसी तरह के ऐलान होते थे. लेकिन इसके बाद महिलाओं को ऐसी सीटों से टिकट दे दिया जाता था, जहां से कांग्रेस के हारने की पूरी सम्भावना होती थी.

तुष्टिकरण की सियासत करती है कांग्रेस

कांग्रेस ने हमेशा से तुष्टिकरण की राजनीति की है. पहले उसने धर्म के नाम पर तुष्टिकरण किया, फिर जाति के नाम पर तुष्टिकरण किया और अब महिलाओं के नाम पर कांग्रेस पार्टी तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है. बस फर्क इतना है कि जब कांग्रेस धर्म और जाति के नाम पर तुष्टिकरण की राजनीति करती थी, तब माहौल उसके अनुकूल था लेकिन आज राजनीति की हवा उसके खिलाफ चल रही है.

प्रियंका गांधी को शुरुआत से कांग्रेस में इंदिरा गांधी की विरासत का उत्तराधिकारी माना गया है. लेकिन वो कभी भी चुनावी परीक्षा में अच्छे नम्बर के साथ खुद को साबित नहीं कर पाई हैं. यानी राजनीति में इंदिरा गांधी की पहचान पर उनका डेब्यू तो हुआ, लेकिन वो चुनावों की पिच पर कांग्रेस पार्टी के लिए रन नहीं बना पाईं. लेकिन कांग्रेस पार्टी उन्हें हर चुनाव में अलग-अलग तरीकों से लॉन्च करती है. ये ठीक वैसा ही है जैसे एक फिल्म रिलीज होने के बाद फ्लॉप हो जाए लेकिन कुछ समय के बाद उसे दोबारा से रिलीज कर दिया जाए.

प्रियंका गांधी के सामने इस बार सबसे बड़ी चुनौती ये है कि कांग्रेस पार्टी का संगठन अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है. केन्द्रीय संगठन में गांधी परिवार के खिलाफ बड़े नेता बगावत कर रहे हैं तो राज्य स्तर पर पार्टी के पास मजबूत नेताओं और कार्यकर्ताओं की सेना नहीं हैं. प्रियंका गांधी मेहनत कर रही हैं, जो अच्छी बात है, लेकिन ये बात वो भी जानती हैं कि बिना सेना के कोई भी चुनावी युद्ध नहीं जीता जा सकता.

राजस्थान में अन्याय क्यों याद नहीं?

प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा है कि कांग्रेस का प्रचार अभियान उन महिलाओं को समर्पित है, जिनके खिलाफ पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश में अन्याय हुआ है. लेकिन वो ये बात कहते हुए राजस्थान को भूल जाती हैं, जहां आजकल बलात्कार के मामले बढ़ते जा रहे हैं और कानून व्यवस्था की स्थिति भी अच्छी नहीं है.

राजस्थान के जोधपुर में कांग्रेस विधायक मीना कंवर के एक रिश्तेदार का शराब पीकर गाड़ी चलाने के कारण चालान कट गया. जब ये बात उन तक पहुंची तो उन्होंने पुलिस को फोन करके उसे छोड़ने की बात कही. पुलिस नहीं मानी तो वो अपने पति के साथ थाने पहुंच गईं और बोलीं- सबके बच्चे पीते हैं, क्या हुआ इसने भी थोड़ी पी ली तो? प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में तो महिलाओं के मुद्दे पर राजनीति करती हैं. लेकिन उनका ध्यान राजस्थान पर नहीं जाता.

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