कोरोना भले 2019 में आया, लेकिन ये देश पहले भी लॉकडाउन देख चुका था; जानें कब लगी पाबंदियां
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कोरोना भले 2019 में आया, लेकिन ये देश पहले भी लॉकडाउन देख चुका था; जानें कब लगी पाबंदियां

Time Machine: साल 1994, वो साल जब योगी आदित्यनाथ ने दीक्षा ली. साथ ही आज जानिए कि कैसे एक विमान हादसे में इंदिरा गांधी के योग गुरु की जान गई. इसी साल साइंटिस्ट नंबी नारायण को गिरफ्तार किया गया. इसी साल सूरत में लॉकडाउन लगा था और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हुआ था. आइए जानते हैं साल 1994 की दिलचस्प कहानियां...

कोरोना भले 2019 में आया, लेकिन ये देश पहले भी लॉकडाउन देख चुका था; जानें कब लगी पाबंदियां

Time Machine Zee News: टाइममशीन में आज बात साल 1994 की. यानी वो साल जब योगी आदित्यनाथ ने दीक्षा ली. साथ ही आज जानिए कि कैसे एक विमान हादसे में इंदिरा गांधी के योग गुरु की जान गई. इसी साल साइंटिस्ट नंबी नारायण को गिरफ्तार किया गया. इसी साल सूरत में लॉकडाउन लगा था और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हुआ था. आइए जानते हैं साल 1994 की दिलचस्प कहानियां...

योगी आदित्यनाथ की दीक्षा!

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले लोग अजय सिंह बिष्ट के नाम से जानते थे. लेकिन क्या आपको अजय सिंह बिष्ट के योगी बनने की कहानी पता है? योगी आदित्यनाथ उत्तराखंड के पौड़ी जिले की यमकेश्वर तहसील के पंचूर गांव से निकलकर नाथ संप्रदाय से जुड़े. इस फैसले के बाद 15 फरवरी 1994 को नाथ संप्रदाय के सबसे प्रमुख मठ गोरखनाथ मंदिर के उत्तराधिकारी के रूप में उन्होंने अपने गुरु महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली. बसंत पंचमी के दिन हुई दीक्षा के बाद उनका नाम अजय सिंह बिष्ट से योगी आदित्यनाथ हो गया.

गोरखनाथ मंदिर के महंत की गद्दी का उत्तराधिकारी बनाने के चार साल बाद ही महंत अवैद्यनाथ ने योगी को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बना दिया. जिस गोरखपुर से महंत अवैद्यनाथ चार बार सांसद रहे, उसी सीट से योगी 1998 में 26 वर्ष की उम्र में पहली बार लोकसभा पहुंच गए.

इंदिरा गांधी के योग गुरू की मौत

क्या आप जानते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के योग गुरू कौन थे? इंदिरा गांधी के योग गुरु का नाम धीरेंद्र ब्रह्मचारी था. उन्हें इंदिरा गांधी और उनके छोटे बेटे संजय गांधी का काफी करीबी माना जाता था. धीरेंद्र ब्रह्मचारी को भी संजय गांधी की तरह ही विमान उड़ाने का शौक था और उनकी मौत भी संजय गांधी की तरह ही विमान हादसे में हुई. धीरेंद्र ब्रह्मचारी का असली नाम धीरेंद्र चौधरी था और उनका जन्म बिहार के मुधबनी में हुआ. उन्होंने अपने गुरु महर्षि कार्तिकेय के आश्रम में योग और उससे जुड़े विषयों में महारथ हासिल की. 1960 के दशक में उन्हें सोवियत अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने के लिए हठ योग विशेषज्ञ के तौर पर USSR दौरे पर आमंत्रित किया गया. इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी बेटी इंदिरा गांधी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए योग सिखाने को कहा और फिर धीरेंद्र ब्रह्मचारी राजनीतिक तौर से प्रभावशाली हो गए.

इंदिरा गांधी के कार्यकाल में दूरदर्शन पर धीरेंद्र ब्रह्मचारी के योग शिक्षण कार्यक्रम का प्रसारण होता था, जो काफी मशहूर हुआ. 1984 में जब गोली लगने के बाद इंदिरा गांधी को अस्पताल में भर्ती कराया गया तो उस वक्त भी धीरेंद्र ब्रह्मचारी उनके साथ मौजूद थे.

9 जून1994 को धीरेंद्र ब्रह्मचारी की मौत एक विमान दुर्घटना में हुई. ये हादसा उस वक्त हुआ जब उनका विमान मंतलाई स्थित उनके धार्मिक स्थान और योग विद्यालय में लैंड करने ही वाला था कि एक पेड़ से टकरा गया. कहा तो ये भी जाता है कि इंदिरा गांधी को योग सिखाते-सिखाते धीरेंद्र ब्रह्मचारी ने पीएम हाउस पर ऐसी पकड़ बनाई कि दिल्ली की पूरी सत्ता उनके इशारों पर चलने लगी.

रामपुर तिराहा कांड से दहला दिल!

साल 1994 में जहां उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की आवाजें अलग-अलग शहरों से और गांवों से आ रही थीं. इसी बीच आंदोलन कर रहे आंदोलनकारी दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए अलग अलग पहाड़ी इलाकों से बस के जरिए 1 अक्टूबर को रवाना हुए. देहरादून से आंदोलनकारियों के रवाना होते ही इनको रोकने की कोशिश की जाने लगी. इस दौरान पुलिस ने रुड़की के गुरुकुल नारसन बॉर्डर पर नाकाबंदी की, लेकिन आंदोलनकारियों की जिद के आगे प्रशासन को झुकना पड़ा और फिर आंदोलनकारियों का हुजूम यहां से दिल्ली के लिए रवाना हो गया. लेकिन मुजफ्फरनगर पुलिस ने उन्हें रामपुर तिराहे पर रोकने की योजना बनाई और पूरे इलाके को सील कर आंदोलनकारियों को रोक दिया.

आंदोलनकारियों की पुलिस के साथ तनातनी शुरू हो गई. इसी बीच नारेबाजी शुरू हुई और फिर पथराव शुरु हो गया. जिसमें मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह घायल हो गए, जिसके बाद यूपी पुलिस ने बर्बरता की सभी हदें पार करते हुए राज्य आंदोलनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर लाठियों से पीटना शुरू कर दिया और लगभग ढाई सौ से ज्यादा राज्य आंदोलनकारियों को हिरासत में भी ले लिया गया.

उसी रात ना जाने कितनी महिलाओं के साथ बर्बरता की गई. महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया. ये सब रात भर चलता रहा. बताया जाता है कि इसमें सात आंदोलनकारी शहीद हुए और 17 घायल हुए. रामपुर तिराहे पर हुआ ये कांड आज भी लोगों को झकझोर कर रख देता है.

यूनिवर्सिटी का नाम बदलने के लिए हाईजैक!

कभी आपने सुना है कि किसी यूनिवर्सिटी का नाम बदलने के लिए किसी प्लेन हाईजैक किया गया हो. सुनने में आपको ये भले ही अजीब लग रहा हो लेकिन ये सच है.
दरअसल साल 1994 में दिल्ली-चेन्नई एयर इंडिया एयरबस को हाईजैक कर लिया गया. हुआ ये कि 13 जनवरी 1994 को दिल्ली-चेन्नई एयर इंडिया एयरबस 320 में 56 यात्री सवार थे. इन यात्रियों के साथ 7 क्रू मेंबर्स थे. इसी बीच अचानक एक शख्स ने कहा कि उसने क्रू मेंबर्स समेत सभी यात्रियो को किडनैप कर लिया है. इस शख्स के ऐसा करने की पीछे एक बड़ी वजह थी. दरअसल वो शख्स चाहता था कि मराठवाड़ा यूनिवर्सिटी का नाम बदलकर डॉक्टर भीम राव अंबेडकर के नाम पर रखा जाए और इसीलिए उसने दिल्ली-चेन्नई एयर इंडिया एयरबस को हाईजैक किया था.

गिरफ्तार हुए नंबी नारायण!

साल 1994 में साइंटिस्ट नंबी नारायण की मुश्किलें तब बढ़ गईं. जब उन पर जासूसी के आरोप लगे और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. दरअसल साल 1994 में नंबी नारायणन पर पाकिस्तान के लिए जासूसी का आरोप लगा था. तमिलनाडु से ताल्लुक रखने वाले एयरोस्पेस इंजीनियर नंबी नारायणन इसरो के सायरोजेनिक्स विभाग के प्रमुख थे. नवंबर 1994 में नंबी नारायणन पर आरोप लगा था कि उन्होंने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़ी कुछ गोपनीय सूचनाएं विदेशी एजेंटों से साझा की थीं. इसके बाद नंबी नारायण को 1994 में केरल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था. वह स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बनाने में लगे थे. उन पर स्वदेशी तकनीक विदेशियों को बेचने का आरोप लगाया गया.

हालांकि बाद में जब इस केस की जांच CBI ने की तो उन पर लगे सारे आरोप झूठे निकले. 1998 में खुद के बेदाग साबित होने के बाद नारायणन ने उन्हें फंसाने वाले पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए लंबी लड़ाई लड़ी.

असम का फर्जी एनकाउंटर!

साल 1994 में असम में एक फेक एनकाउंटर किया गया और इस एनकाउंटर की गुत्थी बड़े लंबे वक्त बाद सुलझ पाई. दरअसल 18 फरवरी 1994 में एक चाय बागान के एक्जेक्यूटिव की हत्या की आशंका पर सेना ने नौ युवाओं को तिनसुकिया जिले से पकड़ा था. इस मामले में बाद में सिर्फ चार युवा ही छोड़े गए थे, बाकी लापता चल रहे थे. इसके बाद पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता जगदीश भुयन ने लापता लोगों को पता लगाने की ठान ली और फिर उन्होंने हाई कोर्ट के सामने याचिका के जरिए इस मामले को उठाया था. इसी हत्या के संदेह में 18 फरवरी 1994 को तिनसुकिया जिले के विभिन्न हिस्सों से 9 लोगों को उठाया गया. सेना के जवानों ने एक फर्जी मुठभेड़ में इनमें से पांच युवकों को उल्फा का सदस्य बताकर इन्हें गोली मार दी थी. जबकि बाकी चार लोगों को कुछ दिन बाद छोड़ दिया गया. इसके बाद जगदीश भुयान ने गुवाहाटी हाई कोर्ट में 22 फरवरी को उसी वर्ष याचिका लगा कर गायब युवाओं के बारे में जानकारी मांगी.

हाई कोर्ट ने भारतीय सेना को ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के सभी नेताओं को नजदीकी पुलिस थाने में पेश करने का आदेश दिया. जिस पर सेना ने धौला पुलिस स्टेशन पर पांच युवाओं का शव पेश किया. जिसके बाद सैन्य कर्मियों का 16 जुलाई से कोर्ट मार्शल शुरू हुआ और 27 जुलाई को निर्णय कर फैसला सुरक्षित रख लिया गया. इसके बाद साल 2018 में सेना की एक अदालत में हुई सुनवाई में मेजर जनरल सहित सभी 7 सैन्यकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई.

सूरत में प्लेग से तबाही!

भले ही कोरोना महामारी दो साल पहले आई हो लेकिन इससे पहले भी एक ऐसी महामारी थी जिसने हजारों लोगों की जान ली. आइसोलेशन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सालों पहले भी होता था. जब भारत में प्लेग फैला था. दरअसल साल 1994 में देश में प्लेग महामारी फैली थी. जिसके बाद देश में करोड़ों का नुकसान तो हुआ ही था साथ ही कई लोगों की जान भी गई. इसका शुरुआत गुजरात के सूरत शहर से हुई थी. ये प्लेग भी वायरस संक्रमण था जो कि जानवरों के वायरस से इंसानों में पहुंचा था. तब वो दौर था जब सूरत से हजारों लोगों ने इस महामारी के फैलने के बाद पलायन किया था.

यहां रहने वाले लोग जब प्लेग की चपेट में आकर मरने लगे तो यूपी-बिहार से आकर यहां बसे लोग भी वापस अपने घरों की पलायन करने लगे. देखते ही देखते सूरत शहर से 25 फीसदी आबादी बाहर चली गई.

सूरत में मजदूरी करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश और बिहार के गरीब मजदूरों की थी. हालत ये हुई कि वो अपने घरों को लौटे तो उनके साथ प्लेग का वायरस भी वहां पहुंचा और जिससे बीमारी ने विकराल रूप ले लिया. बताया जाता है कि, इस महामारी के चलते देश को 18,00 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.

मिस वर्ल्ड बनीं ऐश्वर्या राय!

खूबसूरती की जब भी बात होती है तो एश्वर्या राय का नाम सबसे पहले जुबा पर आता है. ऐश्वर्या राय बॉलीवुड की सबसे खूबसूरत एक्ट्रेस मानी जाती हैं और यही वजह है कि ऐश्वर्या को विश्व सुंदरी कहा जाता है. साल 1994 में ऐश्वर्या राय ने मिस वर्ल्ड का खिताब जीता था. ऐश्वर्या राय को 1994 में जब मिस वर्ल्ड का टाइटल मिला था. तो उस समय पूरे देश को उन्होनें गर्व महसूस कराया था. ऐश्वर्या को उस साल सिर्फ विश्व सुंदरी का खिताब नहीं बल्कि मोस्ट सक्सेसफुल मिस वर्ल्ड का खिताब मिला था. ऐश्वर्या के एक जवाब ने उन्हें मिस वर्ल्ड का क्राउन जिताया था. मिस वर्ल्ड का खिताब पाने के बाद ऐश्वर्या ने बॉलीवुड में कदम रखा और कई बड़ी हिट फिल्मों में काम किया. ऐश्वर्या ने फिल्म 'हम दिल दे चुके समन', 'ताल', 'देवदास', 'धूम 2', रोबोट, समेत कई फिल्मों में काम किया. ऐश्वर्या ने सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं बल्कि हॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया है.

मिस यूनिवर्स बनीं सुष्मिता सेन

साल 1994 में भारत के लिए बेहद खास रहा. क्योंकि इसी साल देश को बड़े टाइटल्स मिले. एक तरफ जहां ऐश्वर्या राय ने मिस वर्ल्ड बनकर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा किया. तो वहीं दूसरी तरफ रही बची कसर सुष्मिता सेन ने पूरी की. सुष्मिता सेन ने साल 1994 में मिस यूनिवर्स का खिताब जीता था. सुष्मिता फिलीपींस में हुई 43वीं मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता की विजेता बनी थीं. मिस यूनिवर्स प्रतियोगिता में सुष्मिता से पहले किसी भी भारतीय महिला को यह खिताब नहीं मिला था. जबकि इससे पहले 41 बार ये प्रतियोगिता हो चुकी थी. मिस यूनिवर्स बनने के बाद सुष्मिता कई बड़ी बॉलीवुड फिल्मों में नजर आई हैं.

ओले से बना 'ओले-ओले'!

साल 1994 में अक्षय कुमार और सैफ अली खान की फिल्म ये दिल्लगी आई. फिल्म को लोगों ने काफी पसंद किया था. लेकिन फिल्म का एक गाना बेहद ही पॉपुलर हुआ और वो गाना था ओले ओले, जो सैफ अली खान पर फिल्माया गया. दरअसल 'ये दिल्लगी' के म्यूजिक डायरेक्टर दिलीप सेन-समीर सेन थे. इस जोड़ी ने मिलकर फिल्म के 3 गाने तैयार किए. समीर और दिलीप ने प्रोड्यूशर यश चोपड़ा को दो गाने तो सुना दिए थे, लेकिन तीसरा गाना 'ओले-ओले' नहीं सुनाया. इसकी वजह ये थी कि उन्हें लगा कि ये गाना अच्छा नहीं बना है और इसे रिजेक्ट कर दिया जाएगा.

ये तीसरा गाना ओले ओले ही था. जब उन्होंने इस गाने को यश चोपड़ा को सुनाया तो वो सुनकर हंस पड़े थे. लेकिन कुछ देर बाद ही यश चोपड़ा ने दिलीप समीर को कहा कि, ये गाना सुपरहिट होगा और बिल्कुल वही हुआ. लेकिन इस गाने के बनने के पीछे एक मजेदार किस्सा है. दरअसल दिलीप और समीर एक बार कहीं जा रहे थे. अचानक तेज बारिश शुरू हो गई. इस पर दोनों ने अपनी कार एक जगह खड़ी कर दी. कार की छत पर ओले पड़ रहे थे. इस पर दिलीप ने कहा कि समीर, कहीं ओले तो नहीं पड़ रहे हैं? ओलों की तेज आवाज सुनकर समीर ने उनसे कहा कि क्यों न हम अपने नए गाने में 'ओले ओले' को डाल दें? बस उसके बाद ये गाना बना दिया गया.

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