Winning Trophy: 1970 के समय में शिकारी एक जीप में बैठकर जंगल में घूमा करते थे. जब जीप लौटकर आती थी तो गली में खेल रहे बच्चे जीप के पास जमा हो जाते थे और ट्रेलर में एक विशाल बाग को देख चौक जाते थे.
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Tiger Hunting: देश में बाघों की कमी ने एक बार फिर से लोगों की चिंता बढ़ा दी है. एक वक्त था जब देश के अंदर इतने बाग हुआ करते थे कि लोग इनका शिकार करते थे और फिर उन्हें ट्रॉफी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. अब बाघों की संख्या इतनी कम हो गई है कि उन्हें बचाने की मुहिम शुरू हुई है. बात अगर 1972 की करें तो उस दौर में शिकार एक प्रकार का खेल हुआ करता था और उस खेल की ट्रॉफी मरे हुए जानवर होते थे. शिकार के मामले में नागपुर गढ़ था, क्योंकि यहां पर शिकार के भी अलग-अलग तरीके हुआ करते थे. मगर उस दौर में शिकारी गिनती के ही हुआ करते थे. नागपुर में तो शिकार के लिए बकायदा हंटिंग ब्लॉक थे. उस दौर में 1 महीने के लिए 50 रुपये में इस ब्लॉग को बुक किया जाता था. इसके अलावा बाघ को मारने में एक शिकारी को 500 रुपये मिलते थे.
ऐसे करते थे शिकार
1970 के समय में शिकारी एक जीप में बैठकर जंगल में घूमा करते थे. जब जीप लौटकर आती थी तो गली में खेल रहे बच्चे जीप के पास जमा हो जाते थे और ट्रेलर में एक विशाल बाग को देख चौक जाते थे. थिएटर डायरेक्टर विकास खुराना उस वक्त को याद करते हुए बताते हैं कि 5 दशक से अधिक समय के बाद इलाके के दूसरे लोग जो 60 के पास वाले पड़ाव में है. अब भी बाघ देखने के लिए खुराना के घर जाना याद करते हैं.
लाइसेंसी हथियार डीलर चंद्रकांत देशमुख बताते हैं कि उनके पिता ने नागपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर कोंधली के पास एक बाघ को मार डाला था और इसका प्रदर्शन करने के लिए शहर के चारों और गाड़ी चला रहे थे. ये दौर 1972 का था. वही एजाज समी कहते हैं कि मेरे चाचा हाजी अब्दुल हमीद एक उत्साहित शिकारी थे. एक बार उन्होंने एक हिरण को गोली मारी थी.
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