LG VK Saxena vs Medha Patkar: मेधा पाटकर के वकील श्रीदेवी कन्नीकर ने एलजी सक्सेना की याचिका का विरोध किया और तर्क दिया कि वह दिल्ली में एक सार्वजनिक अधिकारी हैं और अदालत में पेश होने में कोई बाधा नहीं है.
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दिल्ली की एक अदालत ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर (Medha Patkar) से जुड़े मानहानि मामले में दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) वीके सक्सेना (VK Saxena) को अगले आदेश तक व्यक्तिगत तौर पर पेशी से छूट दे दी है. इस मामले में एलजी वीके सक्सेना ने वकील के माध्यम से कोर्ट से स्थायी छूट की मांग की थी और कहा था कि वह महत्वपूर्ण संवैधानिक कर्तव्यों की देखरेख करने वाले एक सार्वजनिक पद पर हैं. ऐसे में प्रत्येक डेट पर कोर्ट में उनका मौजूद होना संभव नहीं है.
एलजी सक्सेना ने संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत प्रतिरक्षा की मांग करते हुए याचिका भी दायर की थी. हालांकि, उनके वकील ने यह कहते हुए इस आवेदन को आगे बढ़ाने से रोक दिया कि इससे दोनों पक्षों के बीच और मुकदमेबाजी होगी और मामले की सुनवाई बाधित होगी.
एलजी सक्सेना की तरफ से दिए गए आवेदन में तर्क दिया था कि मामला शिकायतकर्ता मेधा पाटकर के सबूत के लिए सूचीबद्ध है और अगर मामले की सुनवाई व्यक्तिगत उपस्थिति के बजाय आरोपी (एलजी सक्सेना) के वकील गजिंदर कुमार, चंद्रशेखर और सोम्या आर्या के माध्यम से आगे बढ़ने की अनुमति दी जाती है, तो इससे शिकायतकर्ता को कोई नुकसान नहीं होगा.
मेधा पाटकर के वकील श्रीदेवी कन्नीकर ने एलजी सक्सेना की याचिका का विरोध किया और तर्क दिया कि वह दिल्ली में एक सार्वजनिक अधिकारी हैं और अदालत में पेश होने में कोई बाधा नहीं है.
मजिस्ट्रेट गौरव दहिया ने अपने आदेश में कहा कि वर्तमान मामले में आरोपी (एलजी सक्सेना) दिल्ली के एलजी के रूप में प्रतिष्ठित सार्वजनिक पद पर हैं और वो महत्वपूर्ण संवैधानिक कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं. अदालत ने इस मामले में एलजी सक्सेना के वकील के हर तारीख पर नियमित रूप से पेश होने की दलील पर भी गौर किया.
अदालत ने आगे कहा कि शिकायतकर्ता की दलीलें मानने योग्य नहीं हैं क्योंकि अगर एलजी सक्सेना के आवेदन को मान लिया जाता है तो इस स्थिति में शिकायतकर्ता को कोई नुकसान नहीं होगा. कोर्ट ने आगे कहा कि इस स्तर पर पक्षकारों को बिना किसी पूर्वाग्रह के मुकदमे को आगे बढ़ाना अदालत के सबसे प्रासंगिक विचारों में से एक है. अदालत ने कहा, 'आरोपी सक्सेना को अगले आदेश तक अपने वकील के माध्यम से व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी जाती है.'