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नई दिल्ली: दिवाली (Diwali) खत्म होते ही दिल्ली (Delhi) गैस चैंबर (Gas Chamber) में तब्दील हो गई है. चारों ओर धुआं ही धुआं नजर आ रहा है. हवा जहरीली हो चुकी है. इसका सबसे बड़ा कारण पराली का जलना (Stubble Burning) है. पराली का धुआं पूरे दिल्ली-एनसीआर की हवा को प्रदूषित कर चुका है. सरकार भी पराली जलाने पर रोक लगाने और बायो डिकंपोज (Bio Decompose) का इस्तेमाल करने के लिए लगातार जागरूक कर रही है, लेकिन बायो डिकंपोज विधि से खेतों में ही पराली से खाद बनाने की प्रक्रिया में 25 से 30 दिन का वक्त लगता है. इतने समय तक किसान अपने खेतों को खाली नहीं रख सकते हैं. लिहाजा दूसरी फसल लगाने के लिए किसान तमाम सख्ती के बावजूद पराली जलाते हैं. जिसके चलते हर साल दिवाली के बाद प्रदूषण स्तर अपने मानक से काफी ज्यादा हो जाता है.
लेकिन ज़ी न्यूज़ आपको एक ऐसे जागरूक किसान से मिलवाएगा जो पराली न जलाकर उसके जरिए लाखों रुपये की कमाई करता है. इसी सिलसिले में ज़ी न्यूज़ की टीम आज दिल्ली के तिग्गीपुर गांव पहुंची. तिग्गीपुर गांव में रहने वाले पप्पन पिछले 28 सालों से खेती कर रहे हैं. पप्पन 100 एकड़ से ज्यादा जमीन पर खेती करते हैं. पप्पन अपने खेतों की पराली को जलाते नहीं हैं, बल्कि पराली से खाद बनाकर उसका इस्तेमाल मशरूम की खेती के लिए करते हैं.
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पप्पन ने बताया कि वो पराली से जैविक खाद तैयार करते हैं. फिर उस जैविक खाद का इस्तेमाल मशरूम की खेती में करते हैं और हर साल लाखों की कमाई करते हैं. पप्पन पराली से ही एक झोपड़ीनुमा डार्क रूम बनाते हैं और फिर रैक बनाकर उस जैविक खाद के जरिए मशरूम की खेती करते हैं.
किसान पप्पन के मुताबिक, छोटे किसान ही पराली जलाते हैं. पप्पन जैसे किसान कृषि यंत्र किराए पर लेकर उससे जैविक खाद बनाते हैं. पप्पन के मुताबिक, बायो डिकंपोज जैविक खाद छोटे किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं है. वो 24 से 25 दिनों के लंबे अंतराल तक खेत को खाली नहीं रख सकते हैं.
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उन्होंने आगे कहा कि वाकई अगर सरकार प्रदूषण को लेकर गंभीर है तो उन्हें कृषि यंत्रों में सब्सिडी देनी चाहिए ताकि किसान पराली न जलाकर पराली का फायदा उठाए. अगर ऐसा नहीं होता है तो किसान के पास पराली जलाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. हालांकि सरकारी महकमा बायो डिकंपोज इस्तेमाल करने के लिए जागरूकता फैलाने की कोशिश में जुटा है.
पप्पन ने कहा कि दिल्ली सरकार हर साल पराली न जलाने का जागरूकता अभियान चलाने के लिए विज्ञापन में करोड़ों खर्च करती है. उसी पैसे का इस्तेमाल खेती से जुड़ी मशीनों के लिए करें तो इस पराली का उपाय भी निकल जाएगा.
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