दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ गए हैं. आम आदमी पार्टी अब तक 35 सीटें जीत चुकी है और 28 पर बढ़त बनाए हुए है. कुल मिलाकर पार्टी के खाते में 63 सीटें जाती नजर आ रही हैं.
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नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ गए हैं. आम आदमी पार्टी अब तक 46 सीटें जीत चुकी है और 16 पर बढ़त बनाए हुए है. कुल मिलाकर पार्टी के खाते में 62 सीटें जाती नजर आ रही हैं. बीजेपी 5 सीटें जीत चुकी है, 3 पर बढ़त बनाए हुए है. कांग्रेस कोई चमत्कार नहीं दिखा सकी. पांच साल बाद भी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई है. इस हार के साथ ही, दिल्ली में बीजेपी का वनवास काल और बढ़ गया है. बीजेपी दिल्ली की सत्ता से पिछले 21 साल से दूर है. ये वनवास काल 5 साल के लिए और बढ़ गया है. बीजेपी की हार के कारणों पर नजर डालेंगे तो आपको साफ पता चलेगा कि पार्टी ने जो गलतियां 2015 में की थीं, वहीं गलतियां 2020 के विधानसभा चुनाव में दोहराईं. नतीजा पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. आइये बीजेपी की हार के अन्य कारणों पर एक नजर डाल लेते हैं.
1. बीजेपी का नकारात्मक प्रचार
बीजेपी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के खिलाफ नकारात्मक प्रचार किया था. अखबारों में विज्ञापन देकर अरविंद केजरीवाल पर व्यक्तिगत हमले किए थे. इस नकारात्मक प्रचार से बीजेपी को खास फायदा नहीं हुआ था. पार्टी को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं. 2015 के विधानसभा चुनाव के दिल्ली बीजेपी के कड़े नेताओं ने स्वीकार किया था कि नकारात्मक प्रचार से उन्हें नुकसान हुआ. बीजेपी ने 2015 की इस गलती से कोई सबक नहीं लिया. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी दिल्ली बीजेपी के नेताओं ने जमकर नकारात्मक प्रचार किया. पार्टी को सिर्फ 7 सीटों पर संतोष करना पड़ा है.
2. सीएम का चेहरा घोषित न करना
बीजेपी ने 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में किरण बेदी को अपना सीएम कैंडीडेट घोषित किया था. हालांकि पार्टी को इससे कोई लाभ नहीं हुआ था. पार्टी ने इस बार रणनीति बदली और अपना सीएम कैंडिडेट घोषित नहीं किया. वहीं, आम आदमी पार्टी ने पूरे प्रचार के दौरान सवाल किया कि अरविंद केजरीवाल के सामने बीजेपी से सीएम का उम्मीदवार कौन है?, बीजेपी ने हमेशा इस सवाल को टाला. कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया. चुनाव से पहले, एक बार केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने दबी जुबान से कहा भी कि दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी सीएम का चेहरा होंगे, लेकिन हाईकमान के दबाव के चलते तत्काल अपने बयान से पलट गए.
3. दिल्ली बीजेपी में आंतरिक गुटबाजी
दिल्ली बीजेपी के नेताओं में एकजुटता का अभाव पूरे चुनाव के दौरान नजर आया. 2015 के विधानसभा चुनाव में मिली हार से बीजेपी ने कोई सबक नहीं लिया. दिल्ली में पार्टी में नेतृत्व क्षमता का विकास नहीं किया. शायद यही वजह रही कि पार्टी अपना सीएम चेहरा भी घोषित नहीं कर पाई. दिल्ली बीजेपी में केंद्रीय मंत्री हर्ष वर्धन, केंद्रीय मंत्री विजय गोयल और प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी के गुट में बंटी नजर आई. पार्टी के पास पूरे 5 साल का समय था लेकिन पार्टी कोई अपना बड़ा स्वीकार्य चेहरा तैयार नहीं कर पाई. नतीजतन पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.
4. स्थानीय मुद्दों से दूरी बनाना
दिल्ली बीजेपी यह भली भांति जानती थी कि उसे केजरीवाल के मुफ्त मॉडल से पार पाना है. पार्टी को चाहिए था कि वह शिक्षा-स्वास्थ्य, बिजली-पानी के मुद्दे पर बात करती. लोगों को लुभाती लेकिन पार्टी राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों पर चुनाव प्रचार करती रही. पार्टी को यही भूल भारी पड़ी. लोगों ने आम आदमी पार्टी के शिक्षा-स्वास्थ्य, बिजली-पानी के मुद्दे पर वोट किया.
5. आखिरी मौके पर प्रचार
आम आदमी पार्टी ने करीब सालभर पहले से चुनाव की तैयारी कर ली थी. आम आदमी पार्टी की चुनावी तैयारी के मुकाबले बीजेपी कहीं नहीं टिकी. पार्टी ने बमुश्किल से एक माह पहले चुनाव के लिए ताकत झोंकी. अपने सभी नेताओं को चुनाव प्रचार में उतारा. पार्टी को इसका फायदा मिला लेकिन बहुत कम.