दिल्ली हाई कोर्ट ने CBI से पूछा, 'रोहिणी आश्रम का संस्थापक कहां है बताएं, रिपोर्ट दें'
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दिल्ली हाई कोर्ट ने CBI से पूछा, 'रोहिणी आश्रम का संस्थापक कहां है बताएं, रिपोर्ट दें'

अदालत ने सीबीआई से पूछा कि आश्रम का संस्थापक अब कहां हैं और उसे इस बारे में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है.

(फाइल फोटो)

नई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने उत्तरी दिल्ली के उस आश्रम के संस्थापक की हरकतों को ‘‘अत्यधिक संदेहास्पद’’ बताया जहां लड़कियों को कथित तौर पर बंधक बनाकर रखा गया था. अदालत ने सीबीआई से पूछा कि आश्रम का संस्थापक अब कहां हैं और उसे इस बारे में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने कहा कि अगर आश्रम ‘‘आध्यात्मिक’’ जगह थी तो फिर लड़कियों और महिलाओं को बंद दरवाजे में क्यों रखा जाता था? इसने कहा कि आश्रम के संस्थापक वीरेन्द्र देव दीक्षित अगर आध्यात्मिक प्रवचन देते थे तो उन्हें आगे आना चाहिए और सीबीआई को उनको तलाशने की जरूरत नहीं है.

पीठ ने आश्रम को निर्देश दिया कि एक गैर सरकारी संगठन फाउण्डेशन फार सोशल एम्पावरमेन्ट की जनहित याचिका में उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों के बारे में उसे हलफनामा दायर कर अपना पक्ष रखना चाहिए. इस संगठन ने दावा किया है कि उत्तरी दिल्ली के रोहिणी इलाके में ‘‘आध्यात्मिक विश्वविद्यालय’’ में लड़कियों और महिलाओं को अवैध रूप से रखा गया था.

इससे पहले, पीठ ने जांच ब्यूरो को एक विशेष जांच दल के जरिये आश्रम और इसके संस्थाक की जांच का आदेश दिया था. विशेष जांच दल को आश्रम उसके संस्थापक के खिलाफ दर्ज तमाम शिकायतों की भी जांच का आदेश दिया गया था.

रोहिणी आश्रम तथा इसकी अन्य शाखाओं की जांच के लिए अदालत की तरफ से नियुक्त तीन सदस्यीय समिति ने दावा किया कि आश्रम यहां रहने वाली महिलाओं से पत्र लिखवाता था और अपने परिवार के सदस्यों पर यौन उत्पीड़न के आरोप वाली शिकायतें दर्ज करवाता था.

समिति में दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल और वकील नंदिता राव तथा अजय वर्मा हैं. समिति ने कहा कि इन पत्रों और शिकायतों का इस्तेमाल कर परिवार के सदस्यों पर आश्रम या दीक्षित के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने का दबाव बनाया जा रहा है.

पीठ ने कहा कि ‘‘समिति के हलफनामे में प्रथमदृष्ट्या तथ्य प्रतीत होता है’’ कि आश्रम और दीक्षित इन शिकायतों का इस्तेमाल परिवार के सदस्यों के खिलाफ ऐसे आरोप लगाने में कर सकते हैं. अदालत का प्रथमदृष्ट्या मानना था कि शिकायतें और पत्र ‘‘निहित स्वार्थ’’ के तहत हैं और इनका उद्देश्य परिवार के सदस्यों द्वारा जनहित याचिका या आपराधिक मामला दर्ज कराने से ‘‘रोकना’’ और वर्तमान मामले में जारी कार्यवाही में बाधा डालना हो सकता है.

पीठ ने आश्रम को चेतावनी दी, ‘‘अभिभावकों को धमकाने के लिए इन युक्तियों का सहारा नहीं लें. अगर हमें इनमें कोई भी नाबालिग लड़की मिलती है तो हम सीबीआई को आपके खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज करने के लिए कहेंगे.’’ अदालत ने कहा कि वह किसी भी वैध, ईमानदार या वास्तविक आध्यात्मिक कार्य में बाधा नहीं डालेगी लेकिन वह किसी ‘‘धोखाधड़ी या अवैध गतिविधि को जारी नहीं रहने देगी.’’ अदालत ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख 17 जनवरी तय की.

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