शरीर पर 76 जख्म देकर शख्स को उतारा था मौत के घाट, अब कोर्ट ने कही ये बात
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शरीर पर 76 जख्म देकर शख्स को उतारा था मौत के घाट, अब कोर्ट ने कही ये बात

उच्च न्यायालय का यह आदेश मामले की त्वरित सुनवाई के लिए मृतक उमेश सिंह के पिता की ओर से दायर याचिका पर आया है . इस संबंध में आठ साल पहले आरोप पत्र दायर किया गया था लेकिन निचली अदालत का फैसला अबतक नहीं आया है .

सांकेतिक तस्वीर

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक निचली अदालत को 2010 में हुई हत्या के एक मामले में सुनवाई में ‘‘अनावश्यक देरी’’ नहीं करने का आदेश दिया. इस मामले में शरीर पर 76 जख्म होने के बाद 22 वर्षीय एक युवक की मौत हो गई थी. न्यायमूर्ति ए के चावला ने निचली अदालत के जज से यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि लगभग नौ साल पुराने मामले में कोई अनावश्यक विलंब नहीं किया जाए.

मृतक के पिता की ओर से दायर की गई थी याचिका
उच्च न्यायालय का यह आदेश मामले की त्वरित सुनवाई के लिए मृतक उमेश सिंह के पिता की ओर से दायर याचिका पर आया है . इस संबंध में आठ साल पहले आरोप पत्र दायर किया गया था लेकिन निचली अदालत का फैसला अबतक नहीं आया है .

पहले 37 बार सूचीबद्ध हुआ था केस
बलवंत सिंह रावत की ओर से पेश वकील प्रीतिश सभरवाल ने बताया कि निचली अदालत में मामला पहले 37 बार सूचीबद्ध हुआ है और आरोपी व्यक्तियों के वकील या विशेष सरकारी वकील की अनुपलब्धता के कारण इसमें देरी हो रही है. न्यायमूर्ति चावला ने बताया, ‘‘इस कार्यवाही की कॉपी निचली अदालत को भेजा जा रहा है जो यह सुनिश्चित करेगा कि अनावश्यक विलंब सुनिश्चित नहीं किया जाए. निचली अदालत को सुनिश्चित करना चाहिए कि सुनवाई में अनावश्यक देरी ना हो.’’ 

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