31 जुलाई: ऊधम सिंह को शहीद का दर्जा देने की उठी पुरजोर मांग
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31 जुलाई: ऊधम सिंह को शहीद का दर्जा देने की उठी पुरजोर मांग

कंबोज समाज ने केंद्र सरकार से जल्द उन्हें शहीद का दर्जा देने की मांग की है.

ऊधम सिंह को 31 जुलाई 1940 को पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई. (फाइल फोटो)

यमुनानगर: 31 जुलाई को शहीद ऊधम सिंह का शहीदी दिवस है. शहीदी दिवस पर उनको शहीद का दर्जा देने की मांग पुरजोर तरीके से उठ रही है. कंबोज समाज ने केंद्र सरकार से जल्द उन्हें शहीद का दर्जा देने की मांग की है. वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता रोशन लाल कंबोज ने इसके साथ ही शहीद ऊधम सिंह के वस्त्र और पिस्टल को इंग्लैंड से वापस लाने की मांग की है. इसके साथ ही सर्वसमाज से मांग की है कि शहीद ऊधम सिंह को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए आगे आएं.

शहीद उधम सिंह
पंजाब के जालियांवाला बाग हत्याकांड का नाम सुनकर किस भारतीय का खून नहीं खौल उठता. आज भी उस नरसंहार का जिक्र होता है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. लेकिन अंग्रेजों की इस क्रूरता का जवाब एक क्रांतिकारी ने दिया था, जिसका नाम था सरदार ऊधम सिंह. ये ऐसे वीर सपूत थे जिन्होंने 21 साल बाद ही सही लेकिन अंग्रेजों से उनकी सरजमीं पर ही इस घटना बदला लिया और 1940 में उन्हें आज ही के दिन फांसी दे दी गई. 

शहीद ऊधम सिंह जिन्होंने लंदन जाकर डायर से लिया था जालियांवाला बाग हत्याकांड का बदला

अमर शहीद सरदार उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था. सन 1901 में उधम सिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया. इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी. उधम सिंह का बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था जिन्हें अनाथालय में ऊधम सिंह और साधु सिंह नाम दिया गया. बाद में सरदार ऊधम सिंह ने भारतीय समाज की एकता के लिए अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है.

जालियांवाला बाग हत्याकांड
सरदार ऊधम सिंह 13 अप्रैल 1919 को हुए जालियांवाला बाग हत्याकांड के प्रत्यक्षदर्शी थे. उन्होंने उसी वक्त ये प्रतिज्ञा ले ली कि वे इस हत्याकांड का बदला माइकल ओ डायर से लेकर रहेंगे. ओडवायर उस समय पंजाब का गवर्नर था और उसी के आदेश पर जनरल रेजीनॉल्ड एडवर्ड डायर ने निहत्थे भारतीयों पर गोलियों चलाई थीं. सरदार ऊधम सिंह इस घटना के बाद क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए. क्रांतिकारियों से ही चंदा इकट्ठा कर वे लंदन पहुंचे और यहां 9 एल्डर स्ट्रीट कॉमर्शियल पर रहने लगे. यहां उन्होंने एक कार और रिवॉल्वर खरीदने के बाद डायर को मारने की रणनीति शुरू कर दी. 

आखिर 13 मार्च 1940 में वो दिन भी आ गया. लंदन के काक्सटन हॉल में एक बैठक चल रही थी. इसमें डायर वक्ता था. ऊधम सिंह इस बैठक में किसी तरह शामिल हो गए. इस दौरान उनके हाथ में एक किताब थी, जिसके पन्नों को काटकर उन्होंने उसमें रिवॉल्वर छुपा रखी थी. बैठक खत्म होने के बाद मौका मिलते ही ऊधम सिंह ने रिवाल्वर से डायर के सीने में दो गोलियां उतार दी. डायर की मौके पर ही मौत हो गई.  इसके बाद वे वहां से भागे नहीं और गिरफ्तार हो गए. 

इसके बाद मुकदमा चला. ऊधम सिंह से पूछा गया कि उन्होंने सिर्फ डायर को ही क्यों मारा उनकी रिवॉल्वर में और भी गोलियां थी वे चाहते थे वहां मौजूद बाकि लोगों को भी मार सकते थे. इस पर सरदार ऊधम सिंह ने कहा कि वहां कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं को मारना पाप होता है. 4 जून 1940 को ऊधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और इसके लिए 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई. 34 साल बाद 1974 में ब्रिटेन ने भारत सरकार को उनके अवशेष सौंप दिए.

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