कौन हैं एच एस फुल्का जिन्होंने दिलाया 1984 के दंगों में न्याय
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कौन हैं एच एस फुल्का जिन्होंने दिलाया 1984 के दंगों में न्याय

वकील के रूप में उनकी कानूनी लड़ाई लगातार आगे बढ़ती रही. लेकिन न्याय उनसे बहुत दूर था. 21वीं सदी आ गई और इंटरनेट सूचना का प्रमुख माध्यम बन गया.

जगदीश टाइटलर को दोषी साबित कराने की लड़ाई भी फुल्का लड़ ही रहे हैं. (फोटो - एएनआई)

नई दिल्लीः आम दिनों की तरह दिसंबर की उस ठिठुरते दिन को भी वह युवा सिख जोड़ा खुश था. उनके घर में संतान का आगमन होना था. अपनी पत्नी का चैकअप कराकर वह मोटरसाइकल से घर वापस आ रहे थे. तभी पता चला कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में सिखों का कत्लेआम शुरू हो गया है. उन्हें लगा कि दक्षिण दिल्ली में अपने घर अगर मेन रोड से जाएंगे तो दंगाइयों के हत्थे चढ़ सकते हैं. इसलिए उन्होंने अपनी गाड़ी अंदर वाली सड़कों और कोटला मुबारकपुर की झुग्गियों में घुसा दी.

जैसे-तैसे वह अपने किराए के घर पहुंचे तो वहां भी दंगाइयों की भीड़ हमला करने को तैयार थी. लेकिन उनके मकान मालिक ने भीड़ को बताया कि सिख दंपति यहां से भाग गए हैं. दो दिन तक उस भले आदमी ने उस दंपति को अपने यहां छुपा कर रखा. जैसे ही थोड़ी गुंजाइश हुई वे हवाई जहाज की कॉकपिट में बैठकर दिल्ली से चंडीगढ़ चले गए.

उनकी जान बच चुकी की थी. वे खतरे से बाहर थे, लेकिन दिल्ली में हजारों सिखों की त्रासदी तो अभी शुरू हुई थी, उन्हें मदद और इंसाफ की जरूरत थी. इसलिए एच एस फुल्का और उनकी पत्नी मनिदंर कौर दिल्ली वापस लौट आए. उसके बाद से एक लंबी लड़ाई चली और 17 दिसंबर 2018 की सुबह सबने टीवी पर देखा कि दिल्ली हाइकोर्ट से सिख विरोधी दंगों के आरोपी कांग्रेस नेता सज्जन कुमार को जब उम्र कैद की सजा सुनाई गई तो सफेद दाढ़ी वाले बुजुर्ग फुल्का वकील के काले चोगे में खुश नजर आए.

1984 की सर्दियों से 2018 की सर्दियों तक 34 साल गुजर गए. आज उनकी पहचान दंगों के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले प्रमुख वकील के रूप में बन चुकी है. इस दौरान एच एस फुल्का का सफर संघषों से भरा रहा.  

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इस सफर की शुरुआत उनके चंडीगढ़ से दिल्ली वापस आते ही हो गई थी. उन्होंने सबसे पहले दिल्ली के अनाथाश्रयों में रह रहे दंगा पीड़ितों की फरियादों को ड्राफ्ट की शक्ल दी, ताकि कानूनी लड़ाई शुरू हो सके. उसके बाद फुल्का ने सीटीजन जस्टिस कमेटी का गठन किया. सिख विरोधी दंगों के मामले में इस कमेटी ने एक ऐसी संस्था की भूमिका निभाई जो अलग-अलग पीड़ितों और मामलों को एक छत के नीचे ले आई. मई 1985 में बनी इस कमेटी ने दंगों की जांच के लिए बनी कमेटियों और आयोगों में दंगा पीड़ितों का पक्ष रखा. इसमें जस्टिस रंजीत सिंह नरुला, सोली सोराबजी, जनरल जगजीत सिंह अरोरा, जस्टिस वी एम तारकुंडे और खुशवंत सिंह जैसे लोग शामिल हुए. कमेटी के वकील की हैसियत से फुल्का सबसे पहले 29 जुलाई 1985 को मिश्रा कमीशन के सामने पेश हुए.

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वकील के रूप में उनकी कानूनी लड़ाई लगातार आगे बढ़ती रही. लेकिन न्याय उनसे बहुत दूर था. 21वीं सदी आ गई और इंटरनेट सूचना का प्रमुख माध्यम बन गया. तब फुल्का ने 10 जुलाई 2001 को दंगा पीड़ितों के लिए कारनेज1984 नाम से एक वेबसाइट लॉन्च की. वेबसाइट ने सिख विरोधी दंगों की लड़ाई को नया रूप दिया और पोर्टल शुरू होने के पहले 10 दिन में 30 देशों के डेढ़ लाख लोग इस वेबसाइट पर आए. बाद में फुल्काडॉटऑर्ग नाम से उन्होंने अपनी वेबसाइट शुरू की.

फुल्का की इस कानूनी लड़ाई को तब बड़ा झटका लगा जब 2013 में निचली अदालत ने सज्जन कुमार को दंगों के आरोप से बरी कर दिया. यहां तक आते-आते फुल्का वकालत के अलावा राजनीति की तरफ भी देखने लगे. इस समय तक दिल्ली में अन्ना हजारे का आंदोलन हो चुका था और आम आदमी पार्टी एक आंदोलन के रूप में सामने आ रही थी. बदलाव के नारे के साथ आई पार्टी से फुल्का जुड़ गए और 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ा. वह पंजाब की लुधियाना लोकसभा सीट से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी बने, लेकिन चुनाव हार गए.

उसके बाद 2017 में पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी बने. इस बार वे चुनाव जीत गए. वे न सिर्फ विधायक बने बल्कि विधानसभा में आम आदमी पार्टी की तरफ से विपक्ष के नेता भी बने.

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लेकिन जब फुल्का ने देखा कि उनक राजनीतिक कैरियर 1984 के दंगों में न्याय दिलाने के रास्ते में आ रहा है तो उन्होंने विधायकी से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने पूरी ताकत न्याय की लड़ाई में लगाई. पिछले एक-दो महीने से सिख दंगों के मामले में फैसले आने लगे हैं. एक मामले में एक व्यक्ति को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है. अब सज्जन कुमार को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है. फुल्का लगातार ट्वीट करके कांग्रेस नेता और अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं. वे उन रिपोर्ट्स को बाहर ला रहे हैं जो 1984 के दंगों में कमलनाथ की भूमिका संदिग्ध बनाती हैं. जगदीश टाइटलर को दोषी साबित कराने की लड़ाई भी फुल्का लड़ ही रहे हैं.

उनकी लंबी लड़ाई में यह न्याय की शुरुआत भर है. न्याय की जंग जाहिर है अभी जारी रहेगी. जो बातें वे हाई कोर्ट को समझा सके हैं, आगे जाकर सुप्रीम कोर्ट और जरूरत पड़ी तो राष्ट्रपति को भी समझानी पड़ेंगीं. लेकिन वह यही करने के लिए तो चंडीगढ़ से दिल्ली आए थे. यही करने के लिए तो उनकी पत्नी ने अमेरिका में शानदार कैरियर की संभावनाओं को छोड़ दिया था. फुल्का की लड़ाई के बारे में एक बार कहा गया था कि वे चींटियों का दल बनाकर एक चट्टान को खिसकाने की कोशिश कर रहे हैं. उनकी सतत कोशिश के बाद चट्टान न सिर्फ खिसकी है, बल्कि लुढ़कने लगी है. अगर वे रुक गए तो चट्टान का लुढ़कना बंद हो जाएगा और नए सिरे से कोशिश करनी होगी. इसलिए वे रुक नहीं सकते जब तक कि चट्टान चकनाचूर न हो जाए.

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