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पटना: क्या पार्टी की छवि बदलना भी चिराग पासवान (Chirag Paswan) को भारी पड़ा? आज की तारीख में पशुपति पारस (Pashupati Paras) के साथ सूरजभान सिंह और सुनील पांडेय जैसे बाहुबली है. सूरजभान सिंह के भाई चंदन सिंह जैसे लोग है तो सवाल उठता है कि चिराग के साथ कौन है?
एक वक्त था, जब बिहार (Bihar) के बाहुबलियों की शरणस्थली लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) हुआ करती थी. जिस भी बाहुबली को राजनीति में अपना भाग्य आजमाना होता था. वो सीधे LJP की शरण में आ जाता और पार्टी में उनका स्वागत भी जोर शोर से होता. सूरजभान सिंह, रामा सिंह, मुन्ना शुक्ला, राजन तिवारी, सुनील पांडेय, हुलास पांडे, ललन सिंह जैसे बाहुबली और दागी नेता LJP की शोभा बढ़ाते थे.
इसमें से कई पार्टी में इतने ताकवर थे कि उनका विरोध राम विलास पासवान भी नहीं कर पाते थे. इसकी वजह ये थी कि अपने धनबल और बाहुबल से वो पार्टी का दिल जीत चुके थे. चुनाव में कभी दूसरे के लिये वोट मैनेज करने वाले ये बाहुबली राजनीति में आकर खुद के लिए वोट बटोरने लगे.
चिराग (Chirag Paswan) ने पार्टी की कमाल संभालने के बाद सबसे पहले पार्टी की सूरत बदलनी चाही. चिराग का मानना है कि बिहार की राजनीति अब बदल चुकी है. लोग बाहुबलियों से ऊब चुके हैं, लिहाजा उन्होंने सीधे तौर पर दागी और बाहुबलियों से किनारा करना शुरू कर दिया. हालांकि बाहुबलियों के परिवार से उनको कोई परहेज नहीं था. यानी गुड़ खाए और गुल्गुल्ला से परहेज़.
सूरजभान सिंह चुनाव नहीं लड़ सकते तो उनके भाई चंदन सिंह को नवादा से टिकट दिया. बाहुबली राजन तिवारी से दूरी बनाई लेकिन उनके भाई राजू तिवारी को पास रखा. विधानसभा चुनाव में RJD के बाहुबली रीतलाल यादव भी टिकट के लिए चिराग के पास पहुंचे थे. चिराग ने साफ कहा कि आपको नहीं, आपके परिवार में किसी को टिकट दे सकते हैं.
चिराग पासवान (Chirag Paswan) का मानना है कि अभी उनके पास 40 से 50 साल तक राजनीति करने की उम्र बची है. पिता रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) ने जो राजनीति की, वो बिहार में उस वक़्त की मांग थी. अब देश की और बिहार की राजनीति भी बदल चुकी है. इस लिए उन्होंने नया बिहार, युवा बिहार और बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट का नया नारा दिया. यानी बिहारी प्राइड को फिर से उभारना. इसलिए उन्होंने युवा नेताओं को तरजीह देनी शुरू की. ऐसे लोग जो मैदान में अपना खून पसीना बहा सकें.
चिराग (Chirag Paswan) की इस सोच को रामविलास पासवान का भी समर्थन था. वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद को लेकर जब नरेंद्र मोदी का पार्टी के अंदर और NDA में खासकर नीतीश कुमार का विरोध था. चिराग पासवान पासवान ने न सिर्फ नरेंद्र मोदी का समर्थन किया बल्कि अपने इस फैसले में भी रामविलास पासवान को लेते आए. नतीजा सब के सामने था. चिराग, खुद को नरेंद्र मोदी के हनुमान ऐसे ही नहीं कहते.
जानकर भी मानते हैं कि आज चिराग पासवान (Chirag Paswan) के पास ना ही परिवार बचा और ना ही बाहुबलियों की ताकत. चिराग के पास इस वक्त सिर्फ एक चीज़ बची है और वो है रामविलास पासवान की विरासत और नई सोच. नई सोच को समाज में पनपने में वक़्त ज़रूर लगता है. लेकिन मेहनत करने पर वो पेड़ भी बनता है और फल भी देता है.
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चिराग (Chirag Paswan) के लिए आने वाला वक़्त मुश्किल भरा होगा. लुटियन ज़ोन से निकलकर जनता ज़ोन में जाना होगा. पसीना भी कुछ ज़्यादा ही बहाना पड़ेगा क्योंकि इस बार यहां उनके दोस्त कम और दुश्मन ज़्यादा हैं.
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