वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण का काम पिछले सात वर्षों से चल रहा है, लेकिन अब तक 3.3 लाख से अधिक संपत्तियों का ही ऑनलाइन ब्यौरा जमा करने में सफलता मिल पाई है.
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नई दिल्ली: वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण का काम पिछले सात वर्षों से चल रहा है, लेकिन अब तक 3.3 लाख से अधिक संपत्तियों का ही ऑनलाइन ब्यौरा जमा करने में सफलता मिल पाई है, जबकि देश में करीब पांच लाख वक्फ संपत्तियां हैं केंद्रीय वक्फ परिषद का कहना है कि वक्फ बोर्डों के पास मानव संसाधन की कमी के कारण विलंब हुआ है, लेकिन जिन वक्फ संपत्तियों का रिकॉर्ड उपलब्ध है, उनके डिजिटलीकरण का काम लगभग पूरा हो गया है और आने वाले समय में सर्वेक्षणों के बाद दूसरी संपत्तियों के रिकॉर्ड भी ऑनलाइन उपलब्ध करा दिए जाएंगे.
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अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय ने वक्फ संपत्तियों का रिकॉर्ड एक स्थान पर ऑनलाइन उपलब्ध कराने के लिए भारतीय वक्फ प्रबंधन सिस्टम (वामसी) की शुरुआत की. वामसी की वेबसाइट पर अक्तूबर, 2011 से तकरीबन हर महीने वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण के काम को अपडेट किया जाता रहा है. वामसी की वेबसाइट पर उपलब्ध सितंबर, 2017 के आंकड़ों के अनुसार देश के 32 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की 3,32,976 संपत्तियों के रिकॉर्ड उपलब्ध हैं और करीब 94 फीसदी संपत्तियों का डिजिटलीकरण हो गया है.
केंद्रीय वक्फ परिषद के सचिव बी एम जमाल ने भाषा से कहा, वक्फ बोर्डों के पास पर्याप्त मानव संसाधन की कमी है. इससे विलंब हो गया. वैसे काम लगातार जारी है. उन्होंने कहा, पहले दौर के सर्वेक्षण के आधार पर जिन संपत्तियों का रिकॉर्ड उपलब्ध है, उनके डिजिटलीकरण का काम तकरीबन पूरा हो गया है. हम दूसरे और तीसरे दौर के सर्वेक्षण की तैयारी कर रहे हैं. वैसे, वक्फ संपत्तियों का पता लगाना और उनके रिकॉर्ड को ऑनलाइन करना, निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है.
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जमाल ने कहा, एक अनुमान के मुताबिक देश में करीब पांच लाख वक्फ संपत्तियां हैं. इनके रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण और इन संपत्तियों के विकास के लिए हम प्रतिबद्ध हैं. गौरतलब है कि वक्फ पर संयुक्त संसदीय समिति ने संसद को अपनी एक रिपोर्ट 23-10-2008 को सौंपी थीं जिसमें अन्य सिफारिशों के अलावा 25 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से राज्य वक्फ बोर्डों के रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण की सिफारिश की गई थी.
डिजिटलीकरण से संबंधित सिफारिशों को भारत सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया. साल 2009-10 में तत्कालीन सरकार की ओर से इस काम के लिए 10 करोड़ रुपये की एक शुरुआती टोकन रकम प्रदान की गई.