Omicron वैरिएंट में अब तक हो चुके हैं 50 म्यूटेशन, कोरोना वैक्सीन की 2 डोज पर भी है भारी
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Omicron वैरिएंट में अब तक हो चुके हैं 50 म्यूटेशन, कोरोना वैक्सीन की 2 डोज पर भी है भारी

एक नए अध्ययन में कहा गया कि कोरोना वायरस का Omicron वैरिएंट वैक्सीन के असर को भी बेअसर कर सकता है और जिन लोगों ने वैक्सीन की दोनों डोज लगवा ली हैं, वो भी इससे सुरक्षित नहीं है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह इस वैरिएंट में आसामान्य रूप से हुए लगातार म्यूटेशन है.

Omicron वैरिएंट में अब तक हो चुके हैं 50 म्यूटेशन, कोरोना वैक्सीन की 2 डोज पर भी है भारी

नई दिल्ली: कोरोना वायरस के नए वैरिएंट Omicron के बारे में ताजा खबर ये आई है कि ये वायरस वैक्सीन (Corona Vaccine) के कवच को भी भेद सकता है. एक नए अध्ययन में कहा गया कि ये वैरिएंट वैक्सीन के असर को भी बेअसर कर सकता है और जिन लोगों ने वैक्सीन की दोनों डोज लगवा ली हैं, वो भी इससे सुरक्षित नहीं है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है, इस वैरिएंट में आसामान्य रूप से हुए लगातार म्यूटेशन, जिसका मतलब है कि ये वैरिएंट कैसे अपना रूप बदल रहा है. अब तक इस वैरिएंट में कुल 50 म्यूटेशन हो चुके हैं, जिनमें अकेले 32 म्यूटेशन इसके स्पाइक प्रोटीन (Spike Protein) में हुए हैं.

  1. नए वैरिएंट पर वैक्सीन के कम प्रभावी होने की आशंका
  2. वैक्सीन को लेकर काफी अहम है आईसीएमआर का बयान
  3. 22 देशों में प्रवेश कर चुका है Omicron वैरिएंट

क्या होता है स्पाइक प्रोटीन?

मान लीजिए अगर वायरस गोल आकार का है और उस पर जो कांटे लगे हैं, वो स्पाइक प्रोटीन हैं. अब वैज्ञानिकों की चिंता ये है कि ज्यादातर mRNA और Vector Based Vaccines वायरस के स्पाइक प्रोटीन पर ही हमला करती है. ये वायरस का वो हिस्सा होता है, जिसका उपयोग वो इंसानों की कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिए करता है. यानी आपके शरीर में वायरस इन्हीं स्पाइक प्रोटीन के जरिए प्रवेश करता है. अब वैक्सीन का काम ये होता है कि वो इन स्पाइक प्रोटीन की पहचान करने के लिए शरीर के इम्यून सिस्टम (Immune System) को मजबूत करती हैं. और जब कभी वायरस वैक्सीन युक्त उस शरीर में प्रवेश करता है. तो इम्यून सिस्टम इसके खिलाफ लड़ाई शुरू देता है.

भारत में लगाई जा रही हैं ये वैक्सीन

अब चुनौती ये है कि दुनिया में कोरोना की जिन वैक्सीन का ज्यादा उपयोग हो रहा है, वो mRNA और Vector Based Vaccines हैं. इनमें अमेरिका की फाइजर और मॉडर्ना वैक्सीन है. ब्रिटेन की एस्ट्राजेनेका है, जिसे भारत में कोविशील्ड के नाम से लगाया जा रहा है और रूस की स्पूतनिक वैक्सीन भी इसमें शामिल है. ये वो सारी वैक्सीन हैं, जो वायरस के स्पाइक प्रोटीन (Spike Protein) पर हमला करके वायरस को हराती हैं. अब जब म्यूटेशन की वजह से वायरस के स्पाइक प्रोटीन का स्ट्रक्चर बदल चुका है, तो इन वैक्सीन को भी बदलना होगा.

नए वैरिएंट पर वैक्सीन के कम प्रभावी होने की आशंका

ऐसी आशंका है कि कि ये वैक्सीन इस वैरिएंट पर कम प्रभावी या बिल्कुल भी प्रभावी ना हों. हालांकि राहत की बात ये है कि इस तकनीक पर आधारिक Vaccines के Structure को बदलने में ज्यादा लंबा समय नहीं लगता. आप कह सकते हैं कि कुछ महीनों में ये काम हो सकता है. इसे ही देखते हुए अमेरिका की मॉडर्ना कंपनी ने वर्ष 2022 तक नई वैक्सीन लाने की बात कही है और ये भी माना है कि उसकी मौजूदा वैक्सीन Omicron वैरिएंट पर कम प्रभावी हो सकती है. ऐसा करने वाली वो पहली कंपनी है.

वैक्सीन को लेकर काफी अहम है आईसीएमआर का बयान

इस विषय में आईसीएमआर (ICMR) का ताजा बयान भी बहुत अहम है. ICMR ने कहा है कि कोवैक्सीन Omicron वैरिएंट के खिलाफ प्रभावशाली साबित हो सकती है, क्योंकि ये वैक्सीन वायरस के निष्क्रिय सेल (Inactivated Cells) की तकनीक पर आधारित है और ये सिर्फ उसके स्वाइक प्रोटीन पर हमला ना करके, पूरे वायरस को ही नष्ट करने का काम करती है. हम यहां एक बात आपको स्पष्ट कर दें कि ये सारे अनुमान गलत भी हो सकते हैं, क्योंकि अभी तक किसी भी देश को इस वायरस के बारे में कोई सही जानकारी नहीं है और WHO ने भी कहा है कि लोगों को इस वायरस से बचने के लिए वैक्सीन जरूर लगवानी चाहिए.

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भारत में लग चुकी है वैक्सीन की 124 करोड़ डोज

भारत में अब तक कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) की लगभग 124 करोड़ डोज लग चुकी हैं. इनमें कोविशील्ड (Covishield) की 99 करोड़ 54 लाख डोज हैं, जबकि कोवैक्सीन (Covaxin) की 12 करोड़ 68 लाख और स्पूतनिक (Sputnik) की 11 लाख डोज हैं.

22 देशों में प्रवेश कर चुका है Omicron

अब तक Omicron वैरिएंट दुनिया के 22 देशों में प्रवेश कर चुका है और यहां लगभग 170 लोग इससे संक्रमित हुए हैं. हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि संक्रमित मरीजों की असली संख्या इससे ज्यादा हो सकती है, क्योंकि बहुत सारे देशों में अब भी वायरस के सभी सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग (Genome Sequencing) नहीं हो रही है. हालांकि भारत में इसकी स्पीड जरूर बढ़ाई गई है.

पहली बार ये वैरिएंट कहां मिला?

Omicron वैरिएंट को लेकर एक और सवाल दुनिया में काफी पूछा जा रहा है और वो ये कि इस वैरिएंट का जन्म कहां हुआ? यानी पहली बार ये वैरिएंट कहां मिला? साउथ अफ्रीका ने 24 नवंबर को दुनिया को पहली बार ये बताया था कि वहां कुछ लोग कोरोना के नए वैरिएंट से संक्रमित हुए है. इसी के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इसकी आधिकारिक पुष्टि की और इसे चिंता का प्रकार (Variant of Concern) घोषित किया गया.

साउथ अफ्रीका नहीं, नीदरलैंड्स से हुई शुरुआत?

दक्षिण अफ्रीका की इस ईमानदारी का नतीजा ये हुआ कि यूरोप के देशों ने उस पर कड़ा ट्रैवल बैन लगा दिया और बाकी अफ्रीकी देशों को भी अलग थलग कर दिया गया, लेकिन अब खुद यूरोपीय देश नीदरलैंड्स ने ये कहा है कि Omicron वैरिएंट का पहला मामला दक्षिण अफ्रीका में नहीं, बल्कि उनके देश में मिला था. डच स्वास्थ्य प्राधिकरण (Dutch Health Authorities) ने अपने बयान में कहा है कि उसने 19 नवंबर को कोरोना से संक्रमित मरीजों के सैंपल लिए थे, जिनकी जांच में ये पता चला कि ये सैंपल इसी वैरिएंट के थे. कुछ इसी तरह का दावा बेल्जियम और जर्मनी की तरफ से भी किया गया है. इन दोनों देशों का कहना है कि Omicron वैरिएंट साउथ अफ्रीका से पहले उनके देशों में मौजूदा था. यानी इस थ्योरी के हिसाब से Omicron अफ्रीकी देशों से नहीं बल्कि यूरोप से दुनिया में फैला है.

क्या अब पश्चिमी देश मांगेंगे अफ्रीकी देशों से माफी?

अब इसके बाद दो बातें महत्वपूर्ण हो जाती हैं. पहली बात ये कि अगर वाकई ये वैरिएंट पश्चिमी देशों से फैला है तो क्या पश्चिमी देश इसके लिए अफ्रीकी देशों से माफी मांगेंगे? क्योंकि दक्षिण अफ्रीका का आरोप है कि उसने तो ईमानदारी से दुनिया तो इस वायरस के बारे में सबकुछ बता दिया, लेकिन इसके बाद यूरोप के देशों ने उसके साथ भेदभाव किया और मनमाने ढंग से उस पर कड़े यात्रा प्रतिबंध लगा दिए, जिससे वहां की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है. जब किसी गरीब अफ्रीकी देश में कोई वायरस या उसका नया वैरिएंट मिलता है तो ये पश्चिमी देश उन पर ट्रैवल बैन लगा देते हैं, लेकिन अपने मामले में ये ऐसा कभी नहीं करते. और दूसरी बात ये कि अगर ये वैरिएंट पहले से ही यूरोप में मौजूद था तो ये देश तमाम संसाधन होते हुए भी इसके बारे में समय से दुनिया और WHO को सूचित करने में नाकाम क्यों रहे? अगर इस वैरिएंट से भविष्य में लाखों लोगों की जानें जाती हैं, तो क्या ये देश इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेंगे?

अफ्रीका में सिर्फ 6 प्रतिशत हुआ है वैक्सीनेशन

बड़ी बात ये है कि अफ्रीका में अब तक केवल 6 प्रतिशत ही वैक्सीनेशन हुआ है, क्योंकि उनके हिस्से की वैक्सीनेशन पर अमीर देशों ने कब्जा कर लिया है. इसे आप इस बात से समझ सकते हैं कि इस समय जितनी वैक्सीन गरीब देशों में लग रही हैं, उससे 6 गुना ज्यादा बूस्टर डोज अमीर देशों में लगाई जा रही हैं. इससे आप इन अमीर देशों का असली चरित्र समझ सकते हैं. 

Omicron वैरिएंट के बारे में 5 जरूरी बातें

पहली बात- केंद्र सरकार ने कहा है कि ये वैरिएंट कोरोना के RT-PCR टेस्ट से छिप नहीं सकता. Delta वैरिएंट के काफी मामलों में ये देखा गया था कि ये RT-PCR टेस्ट को भी आसानी से चकमा दे देता था, जिससे इसकी ट्रैकिंग मुश्किल हो गई थी.

दूसरी बात- 30 नवंबर तक दुनिया में इस वैरिएंट से 170 लोग संक्रमित हो चुके हैं, लेकिन किसी भी मरीज में गंभीर लक्षण नहीं देखे गए हैं. सबसे बड़ी बात, किसी भी मरीज ने अब तक सांस में तकलीफ की शिकायत नहीं की है. ज्यादातर मरीजों को मांसपेशियों में दर्द, थकान, तेज बुखार, खांसी, सिरदर्द और हाई पल्स रेट के लक्षण दिखे हैं.

तीसरी बात- अब तक कोई भी देश इस बात का अनुमान नहीं लगा पाया है कि ये वायरस कितना खतरनाक होगा, लेकिन इटली में हुए अध्ययन में पता चला है कि ये वैरिएंट, डेल्टा वैरिएंट की तुलना में 7 गुना ज्यादा संक्रामक है. इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका के एक वैज्ञानिक ने कहा है कि ये वैरिएंट दुनिया में डेल्टा वैरिएंट से ज्यादा तबाही मचा सकता है.

चौथी बात- भारत में अब तक Omicron का एक भी मामला नहीं मिला है. हालांकि दक्षिण अफ्रीका और दूसरे देशों से जो यात्री लौटे थे, उनके सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग (Genome Sequencing) की जा रही है.

आखिरी बात- कोई भी ठोस रिसर्च आने तक वैक्सीन जरूर लगवाएं और मास्क और सोशल डिस्टेसिंग का भी पालन करें.

Omicron वैरिएंट को लेकर ट्रैवल गाइडलाइन

1 दिसंबर से केंद्र सरकार की नई ट्रैवल गाइडलाइन (Travel Guidelines) भी लागू हो गईं है, लेकिन इसके साथ ही इन पर टकराव भी शुरू हो गया है. इसलिए अगर आप भी यात्रा करने के बारे में सोच रहे हैं तो आपको गाइडलाइन जान लेना चाहिए. इसके साथ ही 1 दिसंबर को महाराष्ट्र सरकार की तरफ से नई ट्रैवल गाइडलाइन जारी की गई. इसके तहत अब महाराष्ट्र में हाई रिस्क वाले देशों से आने वाले यात्रियों के लिए सात दिन का इंस्टीट्यूशनल क्वारंटीन अनिवार्य कर दिया गया है. यानी अगर एयरपोर्ट पर किसी यात्री की रिपोर्ट निगेटिव आती है तो उसे एयरपोर्ट या सरकार द्वारा निर्धारित किसी तय स्थान पर क्वारंटीन में रखा जाएगा.

जबकि भारत सरकार ने अपनी गाइडलाइन में कहा था कि अगर इन देशों से आने वाले यात्रियों की एयरपोर्ट पर RT-PCR जांच निगेटिव आती है तो उन्हें 7 + 7 के होम क्वारंटीन फॉर्मुले का पालन करना होगा. यानी यात्री अपनी जगह पर क्वारंटीन हो सकते हैं, लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने इसे बदल दिया है और नियम और भी कड़े कर दिए हैं.

महाराष्ट्र सरकार ने ये भी कहा है कि सात दिन के इंस्टीट्यूशनल क्वारंटीन में यात्रियों का तीन बार RT-PCR टेस्ट होगा. पहला टेस्ट दूसरे दिन, दूसरा टेस्ट चौथे दिन और तीसरा टेस्ट सातवें दिन. अगर जांच में कोई यात्री पॉजिटिव मिलता है तो उसे अस्पताल में कोविड वॉर्ड में भर्ती कराया जाएगा, जबकि केंद्र सरकार ने अपनी गाइडलाइन में कहा था कि हाई रिस्क वाले देशों के यात्रियों को होम क्वारंटीन में केवल एक टेस्ट कराना होगा और ये टेस्ट भी सातवें दिन होगा. महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र से अपील की है कि वो भी अपनी गाइडलाइन में इन संसोधन को जगह दे.

इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार ने भारत के दूसरे राज्यों से भी आने वाले यात्रियों पर कड़े नियम लागू किए हैं. इसके तहत महाराष्ट्र जाने वाले लोगों को यात्रा से 48 घंटे के अंदर कोरोना का RT-PCR टेस्ट कराना होगा. फिर चाहे वो वैक्सीन की दोनों डोज क्यों ना ले लिया हो. इसके अलावा अगर किसी यात्री की कनेक्टिंग फ्लाइट है और उसे महाराष्ट्र होते हुए जाना पड़ता है तो उसे भी इस नियम का पालन करना होगा.

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