DNA ANALYSIS: आजादी के दिन जानिए अफगानिस्तान की गुलामी का दर्द
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DNA ANALYSIS: आजादी के दिन जानिए अफगानिस्तान की गुलामी का दर्द

लोगों ने काबुल के अब्दुल हक स्क्वायर (Abdul Haq Square) पर लगा तालिबान का इस्लामिक झंडा हटा कर, अफगानिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज भी फहरा दिया. यही किसी भी देश के राष्ट्रीय ध्वज की असली ताकत होती है.

DNA ANALYSIS: आजादी के दिन जानिए अफगानिस्तान की गुलामी का दर्द

नई दिल्ली: 19 अगस्त को अफगानिस्तान (Afghanistan) का स्वतंत्रता दिवस है, विश्व मानवता दिवस है और वर्ल्ड फोटोग्राफी डे भी है. इन तीनों में एक गहरा रिश्ता है. अपने स्वतंत्रता दिवस पर अफगानिस्तान के लोग कट्टरपंथियों के गुलाम बन गए हैं. मानवता सिर्फ एक सुंदर शब्द बन कर रह गया है. ये एक उद्योग बन गया है, और इस समय पूरी दुनिया में मानवता की बड़ी-बड़ी दुकानें चल रही हैं, जिनका मानवता को कोई फायदा नहीं है. जबकि फोटोग्राफी यानी कैमरे का इस्तेमाल अब सिर्फ नेताओं और सेलेब्रिटी की छवि चमकाने के लिए और सेल्फी लेने के लिए होता है.

  1. अपनी आजादी के दिन फिर से गुलाम बन गया अफगानिसस्तान
  2. 26 साल पहले अफगानिस्तान को मिली थी अंग्रेजों से आजादी
  3. आजादी के बाद लोकतांत्रिक नहीं राजशाही शासन की स्थापना

तालिबान का राष्ट्रीय ध्वज उतारा

आज हम आपको बताएंगे कि अफगानिस्तान में आजादी, मानवता और फोटोग्राफी कैसे कमजोर होती जा रही है, और पूरी दुनिया चुपचाप ये सबकुछ होते हुए देख रही है. अफगानिस्तान में वहां की सेना ने तो हार मान ली, लेकिन वहां के आम लोग अब भी हार मानने के लिए तैयार नहीं है. गुरुवार को अफगानिस्तान की आजादी के 102 साल पूरे होने पर काबुल (Kabul) समेत कई शहरों में लोगों ने अफगानिस्तान के राष्ट्रीय ध्वज के साथ रैलियां निकाली. इन लोगों ने काबुल के अब्दुल हक स्क्वायर (Abdul Haq Square) पर लगा तालिबान का इस्लामिक झंडा हटा कर, अफगानिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज भी फहरा दिया.

पत्रकारों के कैमरे छीनकर तोड़ दिए

ये लोग कितना गौरवानवित महसूस करते हुए शिद्दत से अपना झंडा लहरा रहे हैं. यही किसी भी देश के राष्ट्रीय ध्वज की असली ताकत होती है. काबुल में कुछ और जगहों पर इस तरह के प्रदर्शन हुए. लेकिन तालिबान ने अफगानिस्तान का झंडा फहराने वाले इन लोगों पर गोलियां चलाईं और इन प्रदर्शनों की कवरेज करने गए पत्रकारों के साथ मारपीट भी की. कुल मिलाकर जहां-जहां सच दिखाया जाता है, वहां कैमरे छीनकर उन्हें नष्ट कर दिया जाता है या उन्हें खरीद लिया जाता है. आज की दुनिया में जब सब लोग आजादी की तरफ जा रहे हैं और भारत जैसे देशों में अनलिमिटेड आजादी है, तब तालिबान की वजह से अफगानिस्तान एक ऐसा देश बन रहा है, जहां का मीडिया स्वतंत्रता दिवस की भी कवरेज नहीं कर सकता. ये स्थिति अमेरिका जैसे उन देशों को भी आज शर्मिंदा करेगी. जो खुद को पूरी दुनिया के लोकतंत्र का ठेकेदार बताते हैं.

एकजुटता से बड़ा कोई हथियार नहीं

दुनिया के अफगानिस्तान के लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया, लेकिन वहां के आम लोग अब भी तालिबान के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. आज काबुल में ही अफगानिस्तान के 200 मीटर लंबे राष्ट्रीय ध्वज के साथ लोगों ने एक रैली निकाली और तालिबान को ये संदेश दिया कि अभी लड़ाई खत्म नहीं हुई है. इन तस्वीरों से पता चलता है कि बंदूक उठाने वाले शक्तिशाली नहीं होते, शक्तिशाली लोग वो होते हैं जो अपने देश का राष्ट्रीय ध्वज उठा कर लोगों को एकजुट करते हैं. क्योंकि एकजुटता से बड़ा कोई हथियार नहीं है.

काबुल से 150 किलोमीटर दूर जलालाबाद में जहां कल तीन लोगों की तालिबान ने हत्या कर दी थी, वहां भी आज प्रदर्शन हुए और ये प्रदर्शन तालिबान के खिलाफ नई क्रान्ति की आग को भी भड़का सकते हैं. 19 अगस्त 1919 यानी आज ही के दिन अफगानिस्तान को ब्रिटेन से आजादी मिली थी. अफगानिस्तान, भारत की तरह अंग्रेजों का गुलाम तो नहीं था, लेकिन 1878 के दूसरे आंग्ल अफगान युद्ध (Anglo Afghan War) में ब्रिटेन ने उसे अपना संरक्षित राज्य (Protectorate State) घोषित कर दिया था. इसी के बाद अफगानिस्तान के विदेश मामले ब्रिटेन के पास चले गए थे और वो ब्रिटेन की कठपुतली बन गया था.

26 साल पहले मिली थी अंग्रेजों से आजादी

1914 से 1919 के बीच जब पहला विश्व युद्ध हुआ तो अफगानिस्तान जानता था कि ब्रिटेन से आजादी के लिए उसे इससे अच्छा समय कभी नहीं मिलेगा. इसके लिए 1919 में तीसरा आंग्ल अफगान युद्ध लड़ा गया और आज ही के दिन 19 अगस्त को अफगानिस्तान अंग्रेजों से आजाद हो गया. अफगानिस्तान को भारत से लगभग 26 साल पहले ही अंग्रेजों से आजादी मिल गई थी. लेकिन इसके बावजूद अफगानिस्तान भारत से काफी पीछे रह गया और इसका कारण है, वहां कट्टरपंथी इस्लामिक ताकतों का विस्तार.

आजादी के बाद राजशाही शासन की स्थापना

आजादी के बाद अफगानिस्तान ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाने के बजाय राजशाही शासन की स्थापना की. अमानुल्लाह खान अफगानिस्तान के शासक बन गए. 1928 में उन्होंने आधुनिक सुधारों की भी शुरुआत की और महिलाओं को वहां की काउंसिल के चुनाव में वोट का अधिकार भी दिया. उनके बाद 1933 में मोहम्मद जहीर शाह अफगानिस्तान के राजा बने, और लगभग 40 साल तक अफगानिस्तान के लोगों पर राज किया. उनके शासनकाल में महिलाओं को कई अधिकार मिले. जैसे घर से बाहर जाकर काम करने की इजाजत मिली, फिल्मों में काम करने के अवसर दिए गए, स्कूल और कॉलेज भी उन्हीं के कार्यकाल में सबसे ज्यादा बने और महिलाओं को इस्लामिक कानूनों के चश्मे से नहीं देखा गया. 

...जब अफगानिस्तान में गृह युद्ध छिड़ गया

लेकिन सोवियत संघ के दखल के बाद अफगानिस्तान में गृह युद्ध छिड़ गया और अलग-अलग मुजाहिदीन संगठन मजबूत होते चले गए. तालिबान भी उन्हीं में से एक था. लेकिन फिर तालिबान ने अफगानिस्तान में क्या किया, ये पूरी दुनिया जानती है. अफगानिस्तान के 4 करोड़ों लोगों के लिए सबसे दुर्भाग्यपूर्ण ये है कि आज आजादी का ऐतिहासिक दिन ही उनकी गुलामी का दिन भी बन गया है. जो लोग आजादी का महत्व नहीं समझते, उन्हें अफगानिस्तान के इन 4 करोड़ों लोगों का दर्द आज समझना चाहिए.

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