ZEE जानकारी: मुंबई में पानीपुरी बेचने वाला बच्चा आज बना भारत का हीरो
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ZEE जानकारी: मुंबई में पानीपुरी बेचने वाला बच्चा आज बना भारत का हीरो

यह रिपोर्ट आपके और आपके घर के बच्चों के लिए प्रेरक और उत्साह बढ़ाने वाली रिपोर्ट है.

ZEE जानकारी: मुंबई में पानीपुरी बेचने वाला बच्चा आज बना भारत का हीरो

आज की अगली रिपोर्ट आपके और आपके घर के बच्चों के लिए प्रेरक और उत्साह बढ़ाने वाली रिपोर्ट है, इसलिए हम आपसे आग्रह करेंगे कि अगर परिवार के सभी लोग इस वक्त DNA नहीं देख रहे हैं, तो सबको बुला लें और इसे सपरिवार देखें. ये कहानी साबित करती है कि कामयाब होने के लिए किसी खास परिवार का होना ज़रूरी नहीं है, आपके नाम के साथ कोई खास टाइटल जुड़ा होना ज़रूरी नहीं है.
 
ये कहानी है 18 साल के यशस्वी जायसवाल की. कल तक मुंबई में पानीपुरी या गोलगप्पे बेचने वाला ये बच्चा आज क्रिकेट की दुनिया में भारत का हीरो कहा जा रहा है. साउथ अफ्रीका में अंडर-19 वर्ल्ड कप क्रिकेट के सेमीफाइनल में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की विजय के नायक यशस्वी ही थे. यशस्वी ने उस मैच में 105 रन बनाए और छक्का मारकर अपना शतक पूरा करते हुए, टीम को जिता दिया. इतना ही नहीं, यशस्वी ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान 156 की एवरेज से सबसे ज्यादा रन बनाए हैं. अब पूरे देश को 9 फरवरी का इंतज़ार है. उस दिन भारत और बांग्लादेश के बीच अंडर-19 वर्ल्ड कप क्रिकेट का फाइनल मैच खेला जाएगा.
 
लेकिन, यशस्वी की इस कहानी में सबसे ध्यान देने की बात ये है कि उन्होंने अपना सफर कहां से शुरू किया. 18 साल का ये लड़का आज से 8 साल पहले अपने पिता के साथ मुंबई गया था. बच्चे को क्रिकेट खेलने की धुन सवार थी. पिता मुंबई गए, लेकिन वहां के हालात देखकर घबरा गए. क्रिकेटर बनने का शौक बहुत महंगा था. कोचिंग की फीस तो दूर की बात थी, रहने और खाने के पैसे का इंतज़ाम करना भी मुश्किल था. लेकिन यशस्वी के पिता ने अपने 10 साल के बच्चे को एक रिश्तेदार के घर रखा और वापस उत्तर प्रदेश के भदोही यानी अपने घर लौट गए. अब यशस्वी मुंबई के आज़ाद मैदान में जाकर क्रिकेट खेलने लगा. वहां एक टूर्नामेंट के दौरान उसने कई बच्चों के बीच अपनी अलग पहचान बना ली . यशस्वी का बढ़िया खेल देख कर एक क्लब के मैनेजर उससे प्रभावित हुए और मुंबई के आज़ाद मैदान में वहां के ground की देखभाल करने वालों के साथ यशस्वी के रहने का इंतज़ाम हो गया.

ज़रा सोचिए एक 10 साल के बच्चे की क्या समझ होती है ? आप अपने घर में भी 10 साल के बच्चे से क्या उम्मीद करते होंगे ? लेकिन, 10 साल का यशस्वी अपने माता-पिता से दूर मुंबई में अकेले रहने लगा, क्योंकि उसे क्रिकेटर बनना था. इस बच्चे को अपने खाने की व्यवस्था भी खुद करनी थी, अपने रहने का इंतज़ाम भी देखना था और अपना लक्ष्य भी नहीं भूलना था. टेंट में तकलीफ होती थी. गर्मी, सर्दी, बरसात, मच्छर, भूख सबका सामना करना होता था. लेकिन यशस्वी ने इस डर से अपने घरवालों को परेशानियों के बारे में नहीं बताया कि कहीं वो घबराकर उसे वापस ना बुला लें. यशस्वी ने खर्च निकालने के लिए आज़ाद मैदान में ही पानी-पुरी बेचना शुरू किया और पानीपुरी बेचने वाला ये बच्चा धीरे-धीरे क्रिकेट में आगे बढ़ने लगा.
 
ये तमाम ट्रॉफी और मेडल एक खिलाड़ी की मेहनत और लगन के गवाह हैं. यशस्वी ने विजय हज़ारे ट्रॉफी में डबल सेंचुरी बनाई थी, जो कि इतनी कम उम्र में कोई क्रिकेटर नहीं कर सका. संघर्ष से सफलता की मंजिल तय करने वाले इस लड़के के पास सचिन तेंदुलकर के सिगनेचर वाला एक बल्ला भी है, जो उसके लिए अनमोल है. लेकिन, पानीपुरी बेचने वाले इस लड़के के हौसलों की असली उड़ान अभी बाकी है.  

आपने यशस्वी की बात सुनी, उसके दोस्तों, उसके घरवालों की बात भी सुनी . इन सारी बातों से हमने कुछ खास बातें निकाली हैं, जो आज आपको नोट कर लेनी चाहिए. यशस्वी तकलीफ सहता रहा लेकिन उसने इसके बारे में किसी को बताया नहीं, क्योंकि उसे पता था मंज़िल तक पहुंचना है तो परेशानियों को बर्दाश्त करना होगा. यशस्वी को adjustment आता था, यानी वो अभाव के बीच भी किसी तरह गुज़ारा करना जानता था और इसके लिए उसने किसी भी काम को छोटा नहीं समझा. यशस्वी के साथ रहने वाले दोस्त ने उसके बारे में बताया कि यशस्वी कभी Negative बातें नहीं करता था, वो हमेशा अपने सपनों का पीछा करता था.

और अंतिम बात आज भी यशस्वी खुद को स्टार नहीं मानता, वो पानीपुरी बेचने वाले अपने दोस्तों से, अपने साथ रह चुके पुराने दोस्तों से समय निकालकर मिलता है. यानी इस उभरते सितारे ने सफलता को दिमाग पर चढ़ने नहीं दिया है. सौ बात की एक बात ये है कि अगर आप मेहनत से नहीं घबराते, किसी काम को छोटा नहीं मानते हैं और विनम्रता बनाए रखते हैं तो ज़िंदगी की पिच पर एक शानदार पारी खेल सकते हैं.

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