खत्‍म हो जाएगी चीन की चालबाजी? समझिए पीछे हटने के समझौते का LAC पर क्‍या होगा असर
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खत्‍म हो जाएगी चीन की चालबाजी? समझिए पीछे हटने के समझौते का LAC पर क्‍या होगा असर

पैंगोंग झील के अलावा दोनों देश की सेना के बीच सबसे ज्‍यादा तनाव दौलत बेग ओल्डी तक जाने वाले रास्ते पर है और डेपसांग के मैदानों से लगे कई मोर्चे ऐसे हैं, जहां इस वक्त भी दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं

खत्‍म हो जाएगी चीन की चालबाजी? समझिए पीछे हटने के समझौते का LAC पर क्‍या होगा असर

नई दिल्‍ली: पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सीमा पर दोनों देशों के बीच 9 महीनों से चल रहा सबसे बड़ा तनाव खत्म हो गया है.  दोनों देशों ने तय किया है कि पूर्वी लद्दाख में मई 2020 से पहले की स्थिति बहाल की जाएगी और समझौते का जमीन पर असर भी दिखना शुरू हो गया है.  भारत और चीन की सेनाएं पीछे हटने लगी हैं. भारत ने हमेशा से हर समझौते का सम्मान किया है और हमें उम्मीद है कि हर बार धोखा देने वाला चीन इस बार ईमानदारी दिखाएगा. 

10 फरवरी को चीन के रक्षा मंत्रालय ने अपनी सेना की वापसी की घोषणा की. जिसके बाद 11 फरवरी को भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद को बताया कि दोनों देशों की सेना के पीछे हटने पर समझौता हो गया है और पूर्वी लद्दाख में मई 2020 से पहले की स्थिति बहाल हो रही है. 

तनाव कम करने के लिए भारत और चीन की सेनाओं के बीच जिन जिन मुद्दों पर सहमति बनी है. आपको ये भी जानना चाहिए. चीन की सेना पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर, जो कि फिंगर एरिया है, उसमें फिंगर 8 तक वापस चली जाएगी. इस जगह पर चीन की सिरिजाप 2 नाम की पोस्‍ट है.  फिंगर 4 से सिरिजाप 2 पोस्ट के बीच की दूरी 8 किलोमीटर है.

भारत की सेना भी अपनी पहले की स्थिति में लौट जाएगी. यानी भारतीय सैनिक पैंगोंग झील के पास फिंगर 3 और फिंगर 2 के बीच के अपने परमानेंट बेस धन सिंह थापा पोस्ट तक वापस लौट आएंगे. भारत इस विवाद की शुरुआत से ही कहता रहा है कि चीन पहले फिंगर 8 के पीछे जाए तभी दूसरे मुद्दों पर बात आगे बढ़ेगी. 

सबसे ज्‍यादा तनाव इस मुद्दे पर

- फिंगर 3 से लेकर फिंगर 8 तक के इलाके में पेट्रोलिंग पर फैसले के लिए भी भारत और चीन के कमांडर चर्चा करेंगे. तब तक दोनों ही देशों की सेना इस इलाके में पेट्रोलिंग नहीं करेगी. 

- दोनों देश अपनी सेना को चरणबद्ध तरीके से हटाएंगे.  इसका मतलब ये है कि इंफेंट्री यानी पैदल सैनिक, टैंक, बख्तरबंद गाड़ियां, तोपखाना,  इन सभी को सिलसिलेवार तरीके से पीछे हटाया जाएगा. 

- अप्रैल 2020 के बाद से पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिण किनारे पर बनाए गए सभी मोर्चे और अस्थाई ठिकाने भी हटाए जाएंगे. 

- पैंगोंग झील के अलावा दोनों देशों की सेना के बीच सबसे ज्‍यादा तनाव दौलत बेग ओल्डी तक जाने वाले रास्ते पर है और डेपसांग के मैदानों से लगे कई मोर्चे ऐसे हैं, जहां इस वक्त भी दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं. ये तय किया गया है कि इन जगहों पर भी समझौते के लिए 48 घंटे के भीतर दोनों देशों के कमांडर बातचीत शुरू करेंगे.

LAC पर क्या असर होगा?

इस समझौते के बाद LAC पर क्या असर होगा. ये हम आपको समझाते हैं-

पैंगोंग झील के पास फिंगर इलाका है. फिंगर ऊंची चोटियों को कहते हैं. एक से लेकर 8 तक इन चोटियों के नाम हैं.  भारत के अनुसार फिंगर 8 तक का इलाका उसका है.  लेकिन उसका नियंत्रण फिंगर 3 तक है.  पहले भारतीय सैनिक फिंगर 8 तक पेट्रोलिंग करते थे. 

क्‍या खत्‍म हो जाएगी चीन की चालबाजी?

अगर आप टैंकों की वापसी की तस्वीरें देखकर ये उम्मीद लगा रहे हैं कि चीन की चालबाजी खत्म हो जाएगी और वो इस समझौते का सम्मान करेगा, तो हम आपसे ये कहना चाहते हैं कि ऐसी सोच बनाने से पहले आप थोड़ा चीन के चरित्र की जांच जरूर कर लें. आपको ये भी जानना चाहिए कौन-कौन सी तारीखें भारत और चीन के बीच तनाव में अहम रहीं. 

पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन की सेना के बीच 282 दिन तक तनाव रहा. इसकी शुरुआत 5 मई 2020 को हुई थी. 15 और 16 जून की रात भर चली खूनी मुठभेड़ में भारत के 20 और चीन के 45 सैनिक मारे गए थे. 

29-30 अगस्त को भारतीय सेना ने पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर लगभग 70 किलोमीटर इलाके में फैली रणनीतिक चोटियों पर कब्जा करके अपने मोर्चे बना लिए.  इनमें रेज़ांग ला, रेचिन ला और मुखपरी शामिल थीं. 

सितंबर 2020 में ही भारत की सेना ने 17000 फीट की ऊंचाई पर टैंकों की तैनाती कर चीनी सेना को पूरी तरह से रोक दिया.  इतनी ऊंचाई पर टैंकों की तैनाती की दुनिया में ये पहली कार्रवाई थी.  वायुसेना ने लगातार उड़ान भर कर सेना के लिए पूरी सर्दी तैनाती के लिए जरूरी साजो-सामान की सप्लाई सुनिश्चित कर दी. 

6 नवंबर 2020 को भारत-चीन के कोर कमांडर्स के बीच 8वें दौर की बातचीत हुई थी.  तब दोनों देशों के सेनाओं के पीछे हटने की उम्मीदें दिखी थी. लेकिन उस वक्त चीन तैयार नहीं हुआ था. 

पिछले महीने 24 तारीख को दोनों देशों के कमांडर्स के बीच 9वें दौर की बातचीत हुई, जिसमें सेनाओं की वापसी पर सहमति बनी. 

10 फरवरी को चीन के रक्षा मंत्रालय ने पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से सेना के पीछे हटने की घोषणा की. 

11 फरवरी यानी आज संसद में भारत के रक्षा मंत्री ने भारत-चीन के बीच तनाव ख़त्म करने के समझौते की जानकारी दी. 

सेना वापसी के हर कदम पर नजर

पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन दोनों के 50-50 हज़ार से ज्यादा सैनिक आमने-सामने खड़े हो गए थे.  सोचिए, माइनस 40 डिग्री के तापमान में जहां सब कुछ जम जाता है, वहां पर दोनों की सेना युद्ध जैसे हालात के लिए तैयार खड़ी थी.  लेकिन ये स्थिति शायद जल्द बदलने वाली है. आपको भारत और चीन के बीच की सीमा के बारे में भी हम थोड़ी जानकारी देना चाहते हैं. 

भारत और चीन की सीमा की लंबाई 3488 किलोमीटर है. जहां पर भारत और चीन की सीमा मिलती है, वो अलग-अलग 3 बड़े हिस्सों में है. 

पहला हिस्सा भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख से जुड़ा है. इसको वेस्‍टर्न सेक्‍टर कहते हैं. यहां भारत और चीन सीमा की लंबाई 1597 किलोमीटर है.  लेकिन चीन ने अक्साई चिन पर कब्जा कर रखा है, इसलिए वास्तविक नियंत्रण रेखा केवल 823 किलोमीटर लंबी रह गई है. 

दूसरा बड़ा हिस्सा भारत के 2 राज्य हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड से जुड़ा है. इसको मिडल सेक्‍टर कहते हैं. इन दोनों राज्यों की 545 किलोमीटर सीमा चीन से लगती है. 

तीसरे हिस्से को ईस्‍टर्न सेक्‍टर कहते हैं और यहां पर भारत के 2 राज्य सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सीमाएं, दक्षिण तिब्बत से मिलती हैं.  जिस पर चीन ने वर्ष 1959 से कब्जा कर रखा है. 

सेना वापसी के हर कदम पर भारतीय सेना की नजर रहेगी.  चीन के पीछे हटने की पूरी प्रक्रिया को भारतीय सेना देखेगी, उसे वेरिफाई करेगी और जब भारतीय सेना को पूरा भरोसा होगा कि चीन पूरी ईमानदारी से समझौते का पालन करते हुए पीछे हट रहा है, उसके बाद ही भारत की सेना चरणबद्ध तरीके से पीछे हटेगी. 

चीन पर कितना भरोसा?

हम आपको कुछ पुरानी बातें याद कराएंगे,  जिसके बाद आप खुद ये फैसला कर सकते हैं कि चीन कितना भरोसे के लायक है. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जब हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा दे रहे थे, तब चीन भारत के अक्साई चिन पर धोखे से कब्जा कर रहा था. 

जवाहर लाल नेहरू ने सुरक्षा परिषद में चीन को स्थायी सदस्यता दिलाने में मदद की थी. लेकिन भारत के साथ चीन ने फिर धोखा किया. 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया और लद्दाख में भारत के बड़े इलाके पर कब्जा भी कर लिया. 

हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए ये वही चीन है, जो हमारे दुश्मन पाकिस्तान का कितना बड़ा मददगार है. भारत में कई आतंकी हमलों का आरोपी मसूद अजहर की आर्थिक आजादी जारी रहे, इसके लिए चीन सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर के अकाउंट्स फ्रीज करने की मांग पर वीटो कर चुका है.  डोकलाम में भी चीन ने भारत को धोखा दिया है, यहां भी धोखे से घुस गया था. 

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