हमारी इस ख़बर को देख कर आप समझ जाएंगे कि वैक्सीन कैसे लगाई जाएगी, इसे लगाने के बाद क्या साइड इफेक्ट्स होंगे, आपको दूसरी डोज़ कब लगेगी और वैक्सीन पर राजनीति क्यों हो रही है? इस विश्लेषण से आज आपको सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे.
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नई दिल्ली: आज हम सबसे पहले कोरोना वायरस (Coronavirus) की वैक्सीन (Vaccine) पर विश्वास की कमी का विश्लेषण करेंगे. इसलिए वैक्सीन को लेकर आपके मन में किसी तरह का कोई डर है, कोई सवाल है, या वैक्सीन पर आप विश्वास नहीं कर पा रहे हैं तो आज आपको हमारी ये ख़बर मिस नहीं करनी चाहिए. आज हमने आपके लिए एक वीडियो विश्लेषण भी तैयार किया है, जो वैक्सीन पर आपके मन में विश्वास की मात्रा बढ़ाने का काम करेगा. भारत की जिस स्वदेशी वैक्सीन पर कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों ने शक जताया है, आज वही वैक्सीन हमारी रिपोर्टर पूजा मक्कड़ ने लगवाई है.
हमारी इस ख़बर को देख कर आप समझ जाएंगे कि वैक्सीन कैसे लगाई जाएगी, इसे लगाने के बाद क्या साइड इफेक्ट्स होंगे, आपको दूसरी डोज़ कब लगेगी और वैक्सीन पर राजनीति क्यों हो रही है. इस विश्लेषण से आज आपको सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे. लेकिन सबसे पहले हम आपको उन दो वैक्सीन्स (Vaccines) के बारे में बताना चाहते हैं, जिन्हें Drug Controller General of India ने अलग अलग श्रेणी में मंज़ूरी दी है.
पहली वैक्सीन का नाम है कोविशील्ड (Covishield) . कोविशील्ड को ब्रिटेन की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और Astrazeneca नाम की कम्पनी ने मिल कर बनाया है. भारत की Serum Institute of India कम्पनी भी इसकी रिसर्च का हिस्सा थी और इसका उत्पादन भी यही कम्पनी कर रही है. इसे इमरजेंसी यूज की मंज़ूरी मिल गई है. जब किसी वैक्सीन के ट्रायल पूरे होने से पहले ही उसे इस्तेमाल की मंज़ूरी मिल जाती है तो इसे Emergency Use Authorisation कहते हैं. इस वैक्सीन के तीसरे यानी अंतिम ट्रायल के नतीजे अभी सार्वजनिक नहीं हुए हैं, लेकिन ये वैक्सीन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने बनाई है, इसलिए इस पर किसी को शक नहीं है. कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को भी यही लगता है कि ये वैक्सीन विदेश में बनी है तो सही ही होगी.
दूसरी वैक्सीन के साथ ऐसा नहीं है. इसका नाम है कोवैक्सीन (COVAXIN) . स्वदेशी कम्पनी Bharat Biotech ने ये वैक्सीन बनाई है. आप चाहें तो इसे भारत की अपनी Made In India वैक्सीन भी कह सकते हैं. इस वैक्सीन को शर्तों के साथ Emergency Use की मंज़ूरी दी गई है. शर्त ये है कि इस वैक्सीन को क्लिनिकल ट्रायल मोड में ही लोगों को लगाया जाएगा. जिन लोगों को ये वैक्सीन लगाई जाएगी, उनकी निगरानी होगी, वैक्सीन का उन पर क्या असर हुआ, ये देखा जाएगा. हालांकि अहम बात ये है कि इस वैक्सीन के तीसरे ट्रायल के नतीजे अभी DCGI को नहीं दिए गए हैं, और इस प्रक्रिया में अभी एक दो दिन का और समय लग सकता है. यही वजह है कि कोवैक्सीन (COVAXIN) को शक की नज़रों से देखा जा रहा है. कांग्रेस और दूसरी पार्टियों को शक सिर्फ़ कोवैक्सीन पर है क्योंकि, ये वैक्सीन में भारत में बनी है और भारत की ही एक कम्पनी ने विकसित की है.
ये ठीक उसी तरह है, जब कोई व्यक्ति विदेश से घूम कर आता है और उसे अपने देश में सिर्फ़ कमियां नज़र आने लगती हैं. ऐसे व्यक्ति को अगर कोई चीज़ ये कह कर दी जाए कि ये तो अमेरिका से आई है या ये ब्रिटेन में बनी है तो वो खुशी-खुशी इसे खरीद लेगा. संभव है वो इसके लिए ज़्यादा पैसे खर्च करने के लिए भी तैयार हो जाए. लेकिन जब भारत में ही बनी कोई चीज़ उसे दी जाए, जो क्वालिटी में भी अच्छी हो, जिसकी कीमत भी कम हो, तो वो उसे देखने से पहले ही रिजेक्ट कर देगा. हम मानते हैं अपने देश की चीज़ों को कम करके आंकने वाली ये सोच अच्छी नहीं है और हमें लगता है कि कोवैक्सीन के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है.
कोवैक्सीन भारत में बनी है और कीमत के मामले में भी ये सस्ती हो सकती है, इसलिए इस पर कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों को शक है, ये पार्टियां अब इस शक को किसी वायरस की तरह कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहती हैं, ताकि शक वाले इस वायरस से संक्रमित होने वाले लोग भारत में बनी वैक्सीन को लगवाने से मना कर दें. यानी एक तरफ़ सरकार है, जो आपको वैक्सीन देना चाहती है ताकि कोरोना वायरस को हराया जा सके और दूसरी तरफ़ विपक्षी पार्टियां हैं, जो भ्रम की स्थिति पैदा करके वैक्सीन को ख़तरनाक बता रही हैं.
भारत में चाहे कोई भी विषय हो, उसमें राजनीति का प्रवेश हो ही जाता है. आप कह सकते हैं कि हमारे देश के नेताओं को जनहित के मुद्दों पर राजनीति करने की बुरी लत लग चुकी है और लत की कोई वैक्सीन नहीं होती. जिस वैक्सीन को लगा कर लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है, उसे भी कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टिय़ों ने राजनीतिक मुद्दा बना दिया है और आजकल ये विषय सभी पार्टियों के लिए फेवरेट बन गया है.
लेकिन आपके लिए क्या सही है, इस समझाने के लिए हमने कुछ ऐसा किया है, जो कोई और न्यूज़ चैनल नहीं करेगा. हमारी रिपोर्टर पूजा मक्कड़ ने वैक्सीन पर आपके डर को दूर करने के लिए आज कोरोना का स्वदेशी टीका लगवाया है. हालांकि जब कोई वैक्सीन किसी Trial Volunteer को लगाई जाती है, तब ये जानकारी किसी को नहीं होती कि उसे Placebo लगाया गया है या टीका. डॉक्टर Placebo का इस्तेमाल ये जानने के लिए करते हैं कि किसी व्यक्ति पर दवा लेने का कितना और कैसा असर पड़ सकता है और ये जानकारी ट्रायल के नतीजों के बाद ही सामने आती है.
विरोधी दल कोरोना की वैक्सीन को बीजेपी की वैक्सीन कह रहे हैं. क्या इसका मतलब ये है कि पहले जिन भी सरकारों के समय में वैक्सीन्स आईं. उसे उस पार्टी की वैक्सीन का नाम दिया जाता था. इस आप कुछ उदाहरण से समझिए-
-वर्ष 1948 में BCG Vaccine भारत में लॉन्च की गई थी. ये वैक्सीन टीबी की बीमारी से बच्चों की रक्षा करती है. उस समय जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे.
-साल 1978 में Polio Vaccine की शुरुआत हुई थी. तब जनता पार्टी की सरकार थी, और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री थे.
-साल 2010 में Swine Flu की वैक्सीन लगाने की शुरुआत हुई थी और डॉक्टर मनमोहन सिंह तब देश के प्रधानमंत्री थे, लेकिन तब ऐसा कुछ नहीं हुआ. तब वैक्सीन पर राजनीति नहीं हुई और न ही वैक्सीन को किसी एक पार्टी का बताया गया.
ये सब केवल आज के समय में ही हो रहा है. वो भी तब जब कोरोना वायरस की वजह से लाखों लोगों की जान जा चुकी है. लेकिन हमें लगता है विपक्षी पार्टियों को न तो Vaccine से कोई लेना-देना है और न ही लोगों की जान से. वो तो बस इस विषय को राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहते हैं.
हमारे देश में नेताओं के लिए किसी भी विषय पर राजनीति करना इसलिए भी आसान हो जाता है, क्योंकि लोग ग़लत और भ्रामक जानकारियों पर आसानी से विश्वास कर लेते हैं और सही जानकारी का अर्थ नहीं समझते. सही जानकारी वो होती है, जो आपको सही दिशा में ले जाए. आप इसे एक उदाहरण से समझिए, रामायण में उल्लेख मिलता है कि जब रावण से युद्ध के दौरान लक्ष्मण घायल हो गए थे, तब हनुमानजी ने उनके प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी ढूंढी थी. हनुमान जी को ये नहीं पता था कि संजीवनी बूटी जिस पर्वत पर है, वो पर्वत किस दिशा में है. तब सुषेण वैद्य ने सही दिशा की जानकारी दी थी और इस सही जानकारी की वजह से ही हनुमानजी द्रोणागिरी पर्वत तक पहुंच पाए, जहां संजीवनी बूटी थी. यानी सही जानकारी का महत्व बहुत बड़ा है. अगर जानकारी ग़लत हो तो आप उस लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकते, जिसका आपने निश्चय किया है.
भारत की Made in India वैक्सीन पर भी ऐसा ही हो रहा है. इसलिए आज हम आपको इस वैक्सीन को बनाने वाली कम्पनी के बारे में कुछ बातें बताना चाहते हैं-
-इसे बनाने वाली कम्पनी का नाम Bharat Biotech है.
-ये कम्पनी इससे पहले H1N1 , Rotavirus, Japnese Encephalitis, Rabies, Chikungunya और Zika Virus की वैक्सीन बना चुकी है.
-इस कम्पनी ने ही दुनिया को Typhoid की पहली वैक्सीन भी मुहैया कराई.
-Rotavirus की 10 करोड़ वैक्सीन की सप्लाई की, जो 5 करोड़ लोगों को लगाई गईं.
-Japnese Encephalitis जिसे जापानी बुखार भी कहते हैं, उसकी कारगर वैक्सीन भी ये कम्पनी बना चुकी है.
इसलिए किसी भी जानकारी पर आंखें बंद करके विश्वास करने से पहले, ये ज़रूर जानने की कोशिश करें कि आपको मिली जानकारी कितनी सही है.
अब हम आपको जल्दी से वैक्सीन से जुड़ी सही और कीमती बातें बताएंगे, जिन्हें आप चाहें तो नोट भी कर सकते हैं-
-भारत में जिन दो Vaccines को मंज़ूरी मिली है, उनकी दो डोज़ आपको लगवानी होंगी.
-उम्मीद है कि अगले 7 से 14 दिनों में भारत में कोरोना का टीकाकरण अभियान शुरू हो जाएगा, जो एक वर्ल्ड रिकॉर्ड होगा.
-वैक्सीन लगवाने से पहले आपसे एक फॉर्म भरवाया जाएगा.
-दोनों ही वैक्सीन को स्टोर करके रखने के लिए इंतज़ाम किए जा चुके हैं.
-ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन रेफ्रिजरेटर में 6 महीने तक सुरक्षित रह सकती है.
-Bharat Biotech की Covaxin को Room Temperature पर स्टोर किया जा सकता है.
-हालांकि इसका Efficacy रेट यानी ट्रायल में इससे कितने लोग सही हुए, उसकी जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं की गई है.
-जबकि Covishield वैक्सीन का Efficacy रेट 70 से 90 प्रतिशत बताया जा रहा है.